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रहन-सहन और पहनावे के कारण शास्त्रों में बताए गए कई चीजों को लोग अपने जीवनशैली से अलग करते जा रहे हैं इनमें एक है बैठकर लघुशंका करने का नियम।
शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को पशुओं की भांति खड़े होकर लघुशंका करने से बचना चाहिए। ईश्वर ने मनुष्य को बुद्घि, विवेक और ज्ञान दिया है इसलिए उन्हें इनका इस्तेमाल करते हुए कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जो मनुष्य के आचरण से मेल नहीं खाता हो।
खड़े होकर मूत्र विसर्जित करना भी इसी तरह का आचरण है क्योंकि जब खड़े होकर मूत्र विसर्जित करते हैं जो उसके छींटे वस्त्र और शरीर के अंगों पर भी पड़ते हैं जिससे वस्त्र और शरीर दोनों ही अशुद्घ होते हैं। और इनसे कई प्रकार के संक्रमण का भी खतरा रहता है।
खड़े होकर मूत्र विसर्जन करने का नुकसान
पारस्करगृह्यसूत्र में कहा गया है कि 'तिष्ठान न मूत्रपुरीषे कुर्यात्। यानी खड़े होकर मूत्र विसर्जन न करें। उच्चारे मौनं समाचरेत्। यानी मल मूत्र के समय मौन रहें किसी से बातचीत न करें।
ऐसा इसलिए कहा गया है कि जब आप बैठकर मूत्र विसर्जन करते हैं तब मूत्राशय पर दबाव पड़ने से मूत्र विसर्जन साफ से हो पाता है जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। मूत्र विसर्जन को लेकर शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि कभी भी सूर्य की ओर मुख करके मूत्र विसर्जन नहीं करना चाहिए।
इसका धार्मिक कारण यह है कि सूर्य देव है और पूजनीय हैं। जबकि आयुर्वेद की दृष्टि से सूर्य की ओर मुख करके मूत्र विसर्जन करने पर सूर्य की किरणें टकराकर मुख आदि अंगों पर पड़ने से त्वचा संबंधी रोग हो सकता है।
इन स्थानों पर नहीं करें मूत्र विसर्जन
शास्त्रों में मूत्र विसर्जन संबंधी खास नियम बताए गए हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को चाहिए कि राह में मूत्र विसर्जन नहीं करे क्योंकि यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
बिल में मूत्र विसर्जन करने से सांप, बिच्छू और जहरीले जीवों से खुद को और जीवों को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है। गोशाला, जल एवं भष्म में भी मूत्र विसर्जन करने से बचना चाहिए।
जल में मूत्र करने से जल दूषित होता है और इसका नुकसान जल में रहने वाले जीवों और मनुष्यों को भी उठाना पड़ता है।
एक बात और ध्यान रखें कि लघुशंका यानी मूत्र विसर्जन करते समय कान पर जनेऊ लपेटना चाहिए। इससे वीर्य का संरक्षण होता है।
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