श्री गणेशाय नम • गणपति बप्पा मोरया •
गणपति भगवान अपने श्री विग्रह से हमें प्रेरणा देते हैं और हमारा कल्याण करते हैं।
आइए आज हम इनका आध्यात्मिक अर्थ जाने।
उनकी सूँड लंबी होती है लंबी सूँड हमें यह संदेश देती है कि हमें विषय-विकारों की गँध दूर से ही आ जानी चाहिए ताकि विषय विकार हमारे जीवन को स्पर्श न कर पायें।
हाथी की आँखें छोटी-छोटी होती हैं, किंतु सुई जैसी बारीक चीज भी उठा लेता है, वैसे ही समाज आदि में आगे रहने वाले की, मुखिया की दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए।
गणेश जी के छोटे नेत्र हमें सूक्ष्म दृष्टि रखने का संकेत देते हैं, ताकि हमें अच्छे-बुरे तथा पुण्य-पाप में स्पष्ट रूप से अंतर दिखाई पड़े।
हाथी के कान सूपे जैसे होते हैं जो इस बात की ओर इंगित करते हैं कि जो बातें तो भले कई सुने किंतु उसमें से सार-सार उसी तरह अपना ले, जिस तरह सूपे से धान-धान बच जाता है और कचरा-कचरा उड़ जाता है।
उनके बड़े कर्ण हमें सत्संग तथा सत्शास्त्रों के श्रवण के लिए तत्पर होने की ओर भी संकेत करते हैं।
गणपति के दो दाँत हैं – एक बड़ा और एक छोटा। बड़ा दाँत दृढ़ श्रद्धा का और छोटा दाँत विवेक का प्रतीक है। अगर मनुष्य के पास दृढ़ श्रद्धा हो और विवेक की थोड़ी कमी हो, तब भी श्रद्धा के बल से वह तर जाता है।
गणपति के हाथ में मोदक और दंड है अर्थात् जो साधन-भजन करके उन्नत होते हैं, उन्हें वे मधुर प्रसाद देते हैं और जो चक्रदृष्टि रखते हैं, उन्हें वक्रदृष्टि दिखाकर दंड से उनका अनुशासन करके उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
गणेश जी के हाथ में शोभायमान मोदक (लड्डू) हमें यह भी शिक्षा देता है कि हमारे व्यवहार में, हमारे जीवन में सत्कर्म, सत्संग तथा साधना रूपी मिठास होनी चाहिए।
गणपति जी का पेट बड़ा है – वे लम्बोदर है। उनका बड़ा पेट यह प्रेरणा देता है कि इस-उसकी बात सुन ले किंतु जहाँ-तहाँ उसे कहे नहीं। अपने पेट में ही उसे समा ले।
गणेशजी
के पैर छोटे हैं जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि 'धीरा सो गंभीरा, उतावला सो बावला। कोई भी कार्य उतावलेपन से नहीं, बल्कि सोच-विचारकर करें, ताकि विफल न हों।
गणपति जी का वाहन है – चूहा। इतने बड़े गणपति जी और वाहन चूहा ! हाँ, माता पार्वती का सिंह जिस किसी से हार नहीं सकता, शिवजी का बैल नंदी भी जिस-किसी के घर नहीं जा सकता, परंतु चूहा तो हर जगह घुस कर भेद ला सकता है। छोटे-से-छोटे व्यक्ति से भी बड़े-बड़े काम हो सकते हैं क्योंकि छोटा व्यक्ति कहीं भी जाकर वहाँ की गंध ले आ सकता है।
उनका वाहन मूषक हमें यह भी बताता है कि जिस प्रकार मूषक की सर्वत्र गति होती है, उसी प्रकार भगवत्प्रेमियों को भी समाज में फैलकर समाज को सन्मार्ग की ओर अग्रसर करना चाहिए।
इस प्रकार गणपति का श्रीविग्रह समाज के, कुटुंब के गणपति अर्थात् मुखिया और सदस्यों के लिए प्रेरणा देता है कि जो भी कुटुंब का, समाज का अगुआ है, नेता है या सदस्य है उसे गणपति जी की तरह लंबोदर बनना चाहिए, उसकी दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए, कान विशाल होने चाहिए और गणपति की तरह वह अपनी इन्द्रियाँ पर (गणों पर) अनुशासन कर सके।'
गणेश जी का श्रीविग्रह मंगलकारी है। उनके श्रीविग्रह से मिलने वाले संदेशों को हम अपने जीवन में उतार लें तो हमारे द्वारा होने वाला प्रत्येक कार्य मंगलकारी होगा।
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