सियाचिन
दुनिया की सबसे ऊंची युद्धभूमि है। यहां सैनिक दुश्मन की गोलियों से ज्यादा मौसम
के कारण मारे जाते हैं।
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सियाचिन
का तापमान गिरकर (-60) डिग्री तक पहुंच जाता है। अगर कोई
सैनिक यहां नंगी उंगलियों से अधिक समय तक बंदूक के ट्रिगर, गन बैरल या किसी अन्य हिस्से को टच
करता है तो वह फ्रॉस्टबाइट (शीतदंश) का शिकार हो सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत
गरमाहट और उपचार न मिलने पर उंगली काटने तक की नौबत आ जाती है।
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ऊंचाई
के साथ हवा का दवाब घटता जाता है। 5400
मीटर ऊंचे सियाचिन में हवा का दवाब बहुत कम है। यहां मौजूद लोगों को सांस लेने में
तकलीफ होती है। मैदानी इलाके की तुलना में यहां सिर्फ 10 फीसदी ऑक्सीजन ही मिलता है। कम
ऑक्सीजन लेवल और खराब मौसम के बावजूद यहां जवान पूरी मुस्तैदी से सीमा की रक्षा
करते हैं।
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इंसान
का शरीर 5400 मीटर से अधिक की ऊंचाई के अनुसार ढलने
की क्षमता नहीं रखता। यही कारण है कि सियाचिन में तैनात सैनिकों की सेहत खराब हो
जाती है। यहां तैनात होने वाले जवान का वजन कम जाता है, उसे खाने का मन नहीं करता और सोने में
भी परेशानी होती है। कई जवान यहां तैनात होने पर भूलने की बीमारी के शिकार हो जाते
हैं। सियाचिन में तैनात होने वाले सैनिक अपने शरीर की सफाई भी बड़ी मुश्किल से कर
पाते हैं। जरा सा ध्यान भटका नहीं की टूथपेस्ट दांतों में जम जाता है।
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सियाचिन
का मौसम कब बिगड़ जाए यह कहा नहीं जा सकता। इस दौरान तापमान माइनस 60 तक पहुंच जाता है और हवा की रफ्तार 160 km/h तक हो सकती है।
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सियाचिन
में तैनात जवानों को खाने के लिए ताजे फल नहीं मिलते। अत्यधिक ठंड के कारण यहां हर
चीज तुरंत जम जाती है। संतरे और सेब जैसे फल यहां कुछ ही सेकंड्स में जम कर
क्रिकेट बॉल की तरह सख्त हो जाते हैं।
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सियाचिन
में पिछले 30 साल में 846 सैनिकों की मौत हुई है। ज्यादातर मौतें
अत्यधिक ठंड और खराब मौसम के कारण हुई हैं। पिछले तीन साल में 50 सैनिकों की मौत सियाचिन में हुई है।
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