उत्तराखंड में 100 करोड़ का घोटला, पुल बना नहीं सरकार ने कर दी पेमेंट
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देश में घोटालों का रिकॉर्ड बना चुकी कांग्रेस के नाम एक और घोटाला
सामने आया है. उत्तराखंड में टिहरी बांध की झील के ऊपर पुल के
निर्माण में सौ करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का पता चला है.
खास बात यह है कि देश के इस सबसे बड़े सस्पेंशन पुल का निर्माण
अभी तक पूरा नहीं हुआ है, जबकि पुल बनाने वाली ठेकेदार कंपनी
को 120 करोड़ रुपये की लगभग पूरी लागत का भुगतान कर दिया गया है.
गौरतलब है कि टिहरी से प्रतापनगर की 4-5 किलोमीटर की दूरी पुल
के डूब क्षेत्र में आ जाने के बाद बढकर करीब 70 किलोमीटर हो गई थी.
जिसके बाद टिहरी बांध परियोजना पुर्नवास निदेशालय ने 440 मीटर
लंबे डोबराचांटी पुल की परियोजना तैयार की. पुल की लागत 129.43
करोड़ रुपये प्रस्तावित थी. जिसका ठेका चंडीगढ़ की मै.वीके गुप्ता एंड
एसोसिएट्स को दिया गया. लेकिन 2010 में निविदाएं आमंत्रित किए
जाने के बाद से अब तक पुल के दोनों छोर पर केवल पिलर ही बन पाये हैं.
जबकि ठेकेदार कंपनी को 120 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
आरटीआई से हुआ खुलासा
उत्तराखंड सरकार के इस गड़बड़झाले का खुलासा राजेश्वर नाम के एक
व्यक्ति द्वारा दायर आरटीआई के जरिए हुआ है. इस पुल के न होने से
टिहरी से प्रतापनगर और आसपास के दर्जनों गांवों को भारी परेशानी का
सामना करना करना पड़ रहा है. आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार
इस पुल के लिए कुल लागत का 50 फीसदी केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाना
था, जबकि बाकी 50 फीसदी राज्य सरकार द्वारा खर्च होना था. योजना के
लिए कुल 128.53 करोड़ की राशि टिहरी बांध परियोजना पुर्नवास निदेशालय
को दी गई थी. वहीं, 2010 में निविदा स्वीकृत होने के बाद से इस साल अप्रैल
तक निर्माता ठेकेदार ने 124.44 करोड़ रुपये खर्च कर दिये, जिसमें से उन्हें
120.80 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
अधिकारियों ने जमकर की विदेश यात्राएं
पुल भले ही नहीं बना हो, लेकिन इस पुल के लिए तकनीकी सहायता के
नाम पर अधिकारियों ने 10 से ज्यादा बार विदेश यात्राएं की हैं. यही नहीं,
इस पुल की तकनीक के लिए आईआईटी खड़गपुर से अनुबंध भी किया
गया था. जानकार बताते हैं कि यह पुल आम झूला पुल से काफी अलग है,
लेकिन सरकार इसे केवल एक इंजीनियर के भरोसे बना रही है, जबकि
इसके लिए अंतरराष्ट्रीय निविदाएं मंगाई जानी चाहिए थी.
अवैध रूप से लगाया स्टोन क्रेशर
पुल के निर्माण में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि यहां रेत बजरी तैयार
करने के लिए कंपनी द्वारा अवैध ढंग से स्टोन क्रेशर भी लगा लिया गया.
इस क्रेशर से पुल के निर्माण के लिए नाममात्र मैटेरियल तैयार किया जाता
और बाकी अवैध रूप से खुले बाजार में बेचा जा रहा था. जानकारी मांगने पर
अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि अवैध संचालन के
कारण क्रेशर सीज कर लिया गया.
अब सरकार ने किया जांच का वादा
राष्ट्रमंडल खेल से लेकर कोयला घोटाले का दंश झेल रही कांग्रेस सरकार
इस नए घोटाले से सकते में हैं. राज्य की कांग्रेस सरकार जो अब तक इस
पूरे मामले में आंखे मूंदी बैठी थी, आरटीआई से खुलासे के बाद हरकत में
आई है. उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर मंत्री प्रसाद नैथानी ने
मामले में सरकार द्वारा जांच करवाने की बात कही है.
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देश में घोटालों का रिकॉर्ड बना चुकी कांग्रेस के नाम एक और घोटाला
सामने आया है. उत्तराखंड में टिहरी बांध की झील के ऊपर पुल के
निर्माण में सौ करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का पता चला है.
खास बात यह है कि देश के इस सबसे बड़े सस्पेंशन पुल का निर्माण
अभी तक पूरा नहीं हुआ है, जबकि पुल बनाने वाली ठेकेदार कंपनी
को 120 करोड़ रुपये की लगभग पूरी लागत का भुगतान कर दिया गया है.
गौरतलब है कि टिहरी से प्रतापनगर की 4-5 किलोमीटर की दूरी पुल
के डूब क्षेत्र में आ जाने के बाद बढकर करीब 70 किलोमीटर हो गई थी.
जिसके बाद टिहरी बांध परियोजना पुर्नवास निदेशालय ने 440 मीटर
लंबे डोबराचांटी पुल की परियोजना तैयार की. पुल की लागत 129.43
करोड़ रुपये प्रस्तावित थी. जिसका ठेका चंडीगढ़ की मै.वीके गुप्ता एंड
एसोसिएट्स को दिया गया. लेकिन 2010 में निविदाएं आमंत्रित किए
जाने के बाद से अब तक पुल के दोनों छोर पर केवल पिलर ही बन पाये हैं.
जबकि ठेकेदार कंपनी को 120 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
आरटीआई से हुआ खुलासा
उत्तराखंड सरकार के इस गड़बड़झाले का खुलासा राजेश्वर नाम के एक
व्यक्ति द्वारा दायर आरटीआई के जरिए हुआ है. इस पुल के न होने से
टिहरी से प्रतापनगर और आसपास के दर्जनों गांवों को भारी परेशानी का
सामना करना करना पड़ रहा है. आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार
इस पुल के लिए कुल लागत का 50 फीसदी केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाना
था, जबकि बाकी 50 फीसदी राज्य सरकार द्वारा खर्च होना था. योजना के
लिए कुल 128.53 करोड़ की राशि टिहरी बांध परियोजना पुर्नवास निदेशालय
को दी गई थी. वहीं, 2010 में निविदा स्वीकृत होने के बाद से इस साल अप्रैल
तक निर्माता ठेकेदार ने 124.44 करोड़ रुपये खर्च कर दिये, जिसमें से उन्हें
120.80 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
अधिकारियों ने जमकर की विदेश यात्राएं
पुल भले ही नहीं बना हो, लेकिन इस पुल के लिए तकनीकी सहायता के
नाम पर अधिकारियों ने 10 से ज्यादा बार विदेश यात्राएं की हैं. यही नहीं,
इस पुल की तकनीक के लिए आईआईटी खड़गपुर से अनुबंध भी किया
गया था. जानकार बताते हैं कि यह पुल आम झूला पुल से काफी अलग है,
लेकिन सरकार इसे केवल एक इंजीनियर के भरोसे बना रही है, जबकि
इसके लिए अंतरराष्ट्रीय निविदाएं मंगाई जानी चाहिए थी.
अवैध रूप से लगाया स्टोन क्रेशर
पुल के निर्माण में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि यहां रेत बजरी तैयार
करने के लिए कंपनी द्वारा अवैध ढंग से स्टोन क्रेशर भी लगा लिया गया.
इस क्रेशर से पुल के निर्माण के लिए नाममात्र मैटेरियल तैयार किया जाता
और बाकी अवैध रूप से खुले बाजार में बेचा जा रहा था. जानकारी मांगने पर
अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि अवैध संचालन के
कारण क्रेशर सीज कर लिया गया.
अब सरकार ने किया जांच का वादा
राष्ट्रमंडल खेल से लेकर कोयला घोटाले का दंश झेल रही कांग्रेस सरकार
इस नए घोटाले से सकते में हैं. राज्य की कांग्रेस सरकार जो अब तक इस
पूरे मामले में आंखे मूंदी बैठी थी, आरटीआई से खुलासे के बाद हरकत में
आई है. उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर मंत्री प्रसाद नैथानी ने
मामले में सरकार द्वारा जांच करवाने की बात कही है.
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