^ कन्या पूजन के येहिक - अद्यात्मिक लाभ
ये भारतीया संस्कृति है यहा अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन में तीन से लेकर नौ साल तक की कन्याओं का ही पूजन करना चाहिए। इससे कम या ज्यादा उम्र वाली कन्याओं का पूजन वर्जित है। अपने सामर्थ्य के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों तक अथवा नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत पैरों में आलता और माथे पर कुमकुम से तिलक करें और आसन पर एक पंक्ति में बैठाएं। कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद उन्हें उनकी पसंद का भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें। कन्याओं को सौन्दर्य सामग्री या कोई भेंट, फल और दक्षिणा देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करें।
अलग-अलग वर्ष की कन्या पूजन के अलग-अलग फायदे हैं। कितने वर्ष की कन्या का पूजन आपके लिए किस तरह से हितकर हो सकता है-
> दो वर्ष की कन्या को कौमारी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
> तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
> चार वर्ष की कन्या कल्याणी नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है।
> पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
> छह वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है।
> सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
> आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है।
> नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु पर विजय मिलती है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
> दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है।
यह भी विधान है कि पहले दिन एक कन्या और इस तरह बढ़ते क्रम में नवें दिन नौ कन्याओं को नौ दिनों में भोजन करवाने से मां आदि शक्ति की कृपा प्राप्त होती है।
ये भारतीया संस्कृति है यहा अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन में तीन से लेकर नौ साल तक की कन्याओं का ही पूजन करना चाहिए। इससे कम या ज्यादा उम्र वाली कन्याओं का पूजन वर्जित है। अपने सामर्थ्य के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों तक अथवा नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत पैरों में आलता और माथे पर कुमकुम से तिलक करें और आसन पर एक पंक्ति में बैठाएं। कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद उन्हें उनकी पसंद का भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें। कन्याओं को सौन्दर्य सामग्री या कोई भेंट, फल और दक्षिणा देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करें।
अलग-अलग वर्ष की कन्या पूजन के अलग-अलग फायदे हैं। कितने वर्ष की कन्या का पूजन आपके लिए किस तरह से हितकर हो सकता है-
> दो वर्ष की कन्या को कौमारी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
> तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
> चार वर्ष की कन्या कल्याणी नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है।
> पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
> छह वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है।
> सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
> आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है।
> नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु पर विजय मिलती है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
> दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है।
यह भी विधान है कि पहले दिन एक कन्या और इस तरह बढ़ते क्रम में नवें दिन नौ कन्याओं को नौ दिनों में भोजन करवाने से मां आदि शक्ति की कृपा प्राप्त होती है।
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