Wednesday, 11 March 2015

डॉक्टर को दिखाने के पहले जरूर सोचें

health condition get effected by doctors behavior

इस जानकारी के बाद डॉक्टर को दिखाने के पहले जरूर सोचेंगे आप


अगर डॉक्टर आपसे शिष्टता से मिले, तो आप जल्दी स्वस्थ्य हो सकते हैं। लेकिन अगर डॉक्टर आपसे सही से बर्ताव नहीं करते, बात नहीं करते, तो आपकी तबीयत बिगड़ भी सकती है।

आप किसी ऐसे डॉक्टर के पास कभी गए हैं? क्या आपने ऐसा महसूस किया है कि आपको डॉक्टर के पास जाने से ज़्यादा फ़ायदा नहीं हुआ?

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के डिस्कवरी प्रोग्राम के प्रेजेंटर ज्यॉफ़ वाट्स ने घुटनों की समस्या के बारे में डॉक्टर मार्क पोर्टर से बात की। इस बातचीत में पोर्टर की बातों में मरीज़ के लिए केवल नाकारात्मक बातें ही निकलीं।

डॉक्टर ने कहा कि उनके पास कुछ खराब समाचार हैं - घुटने ऑस्टियो-आर्थराइटिस के चलते घिस जाते हैं और दवाओं से कुछ फ़ायदा तो होता है लेकिन इससे आंतों को नुकसान होता है।

वाट्स ने ये जानने की कोशिश की कि ऐसा होने का पता किन शारीरिक लक्षणों से लगता है?

कब बढ़ती है चिंता ?

पोर्टर ने बताया, "मैं जिस तरह से समस्या के बारे बात करता हूं, उससे आपके घुटने को लेकर चिंता बढ़ सकती है। आपको लगेगा कि ये बर्बाद हो चुका है। इसके साइड इफेक्ट्स के बारे में भी मैं सही अनुपात में बताता हूं।"

प्रयोगों से पता चला है कि लोगों को किसी भी साइड इफेक्टस के बारे में चेतावनी देने से मुश्किल बढ़ जाती है। उन्हें उल्टी, थकान, सिर दर्द और दस्त की शिकायत हो सकती है, भले उन्हें बाद में ऐसी दवाईयां दी जाएं, जिनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।

मेडिसीन की दुनिया में लंबे समय से प्लेसीबो इफेक्ट की बात होती रही है, अच्छी उम्मीदों का उपचार। इसी तरह का दूसरा पहलू भी होता है नोसेबो इफेक्ट, जो कहीं ज़्यादा शक्तिशाली होता है।

वाट्स कहते हैं, "नुकसान पहुंचाना कहीं ज्यादा आसान होता है। ये चिंतित करने वाला भी है क्योंकि नोसेबो का निगेटिव प्रभाव मेडिकल जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है।"

विकट परिस्थितियों में ये जानलेवा भी हो सकता है। कई बार तो सोच भी मौत का सबब बन सकती है।

जादुई असर का मंत्र

हालांकि इनमें अच्छी ख़बर ये है कि दिमाग और शरीर का कनेक्शन और डॉक्टरों का अच्छा व्यवहार इलाज में जादुई असर डाल सकता है।

एक अध्ययन के मुताबिक अवसाद से पीड़ित मरीज को डॉक्टर के सहानुभूति पूर्वक प्लेसीबो पिल्स देने पर बेहतर परिणाम मिलते हैं। जबकि ज्यादा एक्टिव दवाई भी डॉक्टर अगर तटस्थ भाव से देता है, तो उसका असर कम होता है।

कुछ वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि डॉक्टरों को प्लेसीबो इफेक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि मरीजों को कम दवाएँ दी जा सकें, मरीज अपने दिमाग का इस्तेमाल कर अंतर महसूस कर सकें।

एक्सेटर मेडिकल स्कूल की पॉल डायपे कहती हैं, "स्व-उपचार एक वास्तविकता है। हम सबमें ऐसी क्षमता होती है कि जिससे कई स्थितियों में हम खुद का उपचार कर सकते हैं। यह दूसरे लोगों से बातचीत करने से भी सक्रिय होता है।"

हर शब्द के मायने

पोर्टर के मुताबिक इलाज के दौरान मरीजों के साथ सहानुभूति पूर्वक बात करने से मरीज पर बेहतर असर पड़ता है। इलाज बताते वक्त अगर चिकित्सक दवाईयों के पॉजिटिव इफेक्ट के बारे में बताए, निगेटिव साइड इफेक्ट को कमतर करके बताए तो बेहतर होता है।

हारवर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टेड कापटचूक कहते हैं, "हर शब्द मायने रखता है, हर नजर मायने रखती है।" कापटचूक के मुताबिक ये अवसर जैसा है और इसे खोना नहीं चाहिए।

कापटचूक कहते हैं, "इससे डॉक्टर और नर्स पर बोझ बढ़ेगा, ऐसा मैं नहीं मानता। मेरे ख्याल से उन्हें इसे इलाज का हिस्सा बनाना चाहिए। स्वास्थ्य सेवा में ऐसी जागरुकता की शुरुआत होनी बाकी है।"


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