इस्लाम
को भारत में सफलता मिलने का ऐक कारण यहाँ के शासकों में परस्पर कलह, जातीय अहंकार, और राजपूतों में कूटनीति का आभाव
था। वह वीरता के साथ युद्ध में मरना तो जानते थे किन्तु देश के लिये संगठित हो कर
जीना नहीं जानते थे। युद्ध जीतने की चालों में पराजित हो जाते थे तथा भीतर छिपे
गद्दारों को पहचानने में चूकते रहै।
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1. राणा संग्राम सिहं कन्हुआ के
युद्ध में मुग़ल आक्रान्ता बाबर को पराजित करने के निकट थे। बाबर ने सुलह का समय
माँगा और मध्यस्थ बने राजा शिलादित्य को प्रलोभन दे कर उसी से राणा संग्राम सिहँ
के विरुद्ध गद्दारी करवाई जिस के कारण राणा संग्राम सिहँ की जीत पराजय में बदल
गयी। भारत में मुग़ल शासन स्थापित हो गया।
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2. हेम चन्द्र
विक्रमादितीय ने शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी से दिल्ली का शासन छीन कर भारत में
हिन्दू साम्राज्य स्थापित कर दिया था। अकबर की सैना को दिल्ली पर अधिकार करने से
रोकने के लिये उस ने राजपूतों से जब सहायता माँगी तो राजपूतों ने उस के आधीन रहकर
लडने से इनकार कर दिया था। पानीपत के दूसरे युद्ध में जब वह विजय के समीप था तो
दुर्भाग्य से ऐक तीर उस की आँख में जा लगा। पकडे जाने के पश्चात घायल अवस्था में ही
हेम चन्द्र विक्रमादितीय का सिर काट कर काबुल भेज दिया गया था और दिल्ली पर मुगल
शासन दोबारा स्थापित हो गया।
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3. महाराणा प्रताप ने
अकेले दम से स्वतन्त्रता की मशाल जवलन्त रखी किन्तु राजपूतों में ऐकता ना होने के
कारण वह सफल ना हो सके। अकबर और उस के पश्चात दूसरे मुगल बादशाहों ने भी राजपूतों
को राजपूतों के विरुद्ध लडवाया और युद्ध जीते। अपने ही अपनों को मारते रहै।
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4. महाराज कृष्ण देव राय
ने दक्षिण भारत के विजयनगर में ऐक सशक्त हिन्दू साम्राज्य स्थापित किया था किन्तु
बाहम्नी के छोटे छोटे सुलतानों ने ऐकता कर के विजयनगर पर आक्रमण किया। महाराज
कृष्ण देव राय अपने ही निकट सम्बन्धी की गद्दारी के कारण पराजित हो गये और विजयनगर
के सम्रद्ध साम्राज्य का अन्त हो गया।
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5. छत्रपति शिवाजी ने
दक्षिण भारत में हिन्दू साम्राज्य स्थापित किया। औरंगज़ेब ने मिर्जा राजा जयसिहँ
की सहायता से शिवा जी को सन्धि के बहाने दिल्ली बुलवा कर कैद कर लिया था। सौभागय
से शिवाजी कैदखाने से निकल गये और फिर उन्हों ने औरंगजेब को चैन से जीने नहीं
दिया। शिवाजी की मृत्यु पश्चात औरंगजेब ने शिवाजी के पुत्र शम्भा जी को भी धोखे से
परास्त किया और अपमान जनक ढंग से यातनायें दे कर मरवा दिया।
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6. गुरु गोबिन्द सिहं ने“सवा लाख से ऐक लडाऊँ” के मनोबल के साथ अकेले ही मुगलों
के अत्याचारों का सशस्त्र विरोध किया किन्तु उन्हें भी स्थानीय हिन्दू राजाओं का
सहयोग प्राप्त नही हुआ था। दक्षिण जाते समय ऐक पठान ने उन के ऊपर घातक प्रहार किया
जिस के ऊपर उन्हों ने पूर्व काल में दया की थी। उत्तरी भारत में सोये हुये
क्षत्रित्व को झकझोर कर जगानें और सभी वर्गों को वीरता के ऐक सूत्र में बाँधने की
दिशा में गुरु गोबिन्द सिहं का योगदान अदिूतीय था।
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अपने ही देश में आपसी
असहयोग और अदूरदर्शता के कारण हिन्दू बेघर और गुलाम होते रहै हैं। विश्व गुरु
कहलाने वाले देश के लिये यह शर्म की बात है कि समस्त विश्व में अकेला भारत ही ऐक
देश है जो हजार वर्ष तक निरन्तर गुलाम रहा था। गुलामी भरी मानसिक्ता आज भी हमारे
खून मे समाई हुयी है जिस कारण हम अपने पूर्व-गौरव को अब भी पहचान नहीं सकते।
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