जिन्हें मुसलमान अल्लाह बोलते है ,वो मूलतः एक संस्कृत "अल्ल: " शब्द है,
जिसका अर्थ भगवती होता है।
कट्टर से कट्टर मुसलमान भी यही मानते है कि समस्त भाषाओं की जननी संस्कृत ही रही है, सारी भाषाएँ संस्कृत से ही बनी है।
मोहम्मद सल-अल-लाहू-अलेही -वस्सलम ने इस शिव पिंडी को खंडित कर, इसका आधा भाग काबा की दीवार के अंदर रखा ,और आधे भाग को सफेद संगमरमर की परत चढ़ा, बाहर रखा ।
जिससे कुछ लोग अंदर से चूम कर, कुछ बाहर से चूम कर, इस पवित्र शिव पिंडी को प्रणाम कर सके।
इस बात का उदाहरण उज्जैन स्थित कृष्ण की शिक्षा स्थली संदीपनी आश्रम में भी देखने को मिलता है जब आज से लगभग 5672 वर्ष पूर्व, छात्र कृष्ण और छात्र बलराम के आचार्य श्री संदीपनी जी ने जब उज्जैन में सूखा देखा ,और प्रजा को परेशान होते हुए देखा ,तब महाकाल की भक्ति कर महाकाल से सिर्फ एक ही आशीर्वाद माँगा कि उज्जैन में कभी भी अकाल नहीं पड़ना चाहिए , और आज भी इतने वर्षो के बाद भी भीषण गर्मी में भी अकाल नहीं पड़ता।
जो शिव पिंडी संदीपनी जी के आश्रम में है, उतनी ही लम्बी ,चौड़ी, व्यास युक्त शिव पिंडी काबा ,सऊदी की है।
उसका कारण भी यही है कि दोनों शिवपिंडी का समय महाभारत युग में ही हुआ है।
इतिहास गवाह है कि जब काल यवन
( जो वर्तमान के तमिलनाडु के मुदरे का रहने वाला था, जिसके पिताजी तमिलनाडु के काबालिश्वरम शिव मंदिर के उपासक थे, और यही कबालिश्वरम आज भी मुदरे में स्थित है ) ने कृष्ण से युद्ध करने के लिए शिव की भक्ति यवन देश में करी थी , वो यही शिव पिंडी थी जो सऊदी अरब के काबा में स्थित है।
अगर ये सारे तथ्य गलत है तो फिर ऐसा क्या कारण है कि पूरी दुनिया के 56 इस्लामिक मुल्को में कभी भी किसी भी मस्जिद में 7 बार Anti
Clock wise परिक्रमा नहीं लगती , सिर्फ काबा की इसी मस्जिद अल-हरम में लगती है ??
आखिर वो क्या कारण है कि हज की प्रक्रिया करने के लिए हर हाजी को अपने सर के बाल साफ़ करवान
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