बिहार
के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच टकराव के
कारण राजनीतिक तापमान गर्म है। मांझी को लेकर आम धारणा उनके बड़बोलेपन को लेकर बनी
है या फिर अल्पमत सरकार के दौरान हड़बड़ी में घोषणाएं करने वाली तुगलकी शैली को
लेकर।
समाचार
एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पटना हाईकोर्ट ने मांझी सरकार पर सामान्य सरकारी कामकाज
से जुड़े मामले छोड़कर वित्तीय असर वाले फैसले लेने पर रोक लगा दी है। मगर मांझी
सरकार ने कई ठोस काम किए हैं, जो
नीतीश कुमार नहीं कर सके। यह नीतीश कुमार की भविष्य की राजनीति के लिए चुनौती भी
हो सकती है।
मांझी
के ये हैं पांच बड़े हथियार
1- दलित एजेंडा
ठेकेदारी
की केंद्रीकृत व्यवस्था को विकेंद्रीकृत करते हुए बड़े निर्माण कार्यों की
ठेकेदारी टुकड़ों में बांटने की पहल मांझी के बड़े फैसलों में एक है। साथ ही
अनुसूचित जाति–जनजाति के लिए ठेकेदारी में चार फीसदी
आरक्षण देने का निर्णय लिया गया और अधिकारियों को इसके अनुपालन को सुनिश्चित करने
के निर्देश दिए गए हैं।
2- मुफ्त घर
नीतीश
कुमार के कार्यकाल के दौरान बेघर गरीबों को तीन डेसिमल जमीन देने का निर्णय लिया
गया था, जिसकी खरीद के लिए 20 हज़ार रुपए का प्रावधान किया गया था।
मांझी ने इस जमीन के रकबे को बढ़ाकर पांच डेसिमल कर दिया और खरीद के लिए 20 हजार की अधिकतम सीमा रेखा खत्म कर दी
ताकि गरीबों को बसाने की मानवीय व्यवस्था हो।
पिछले
दिनों बिहार में नीतीश के विकास कार्यों को देखने के क्रम मे मुझे कई इलाके मिले, जहां ग्रामीण गरीबों को गड्ढे मे
ज़मीनें दी गईं थीं।
3- पंचायती राज
संविधान
के 73वें संशोधन के अनुसार बिहार में
पंचायती राज कानून 2006 नीतीश कुमार के कार्यकाल में ही पारित
किया गया था पर स्थानीय स्वशासन को मज़बूत करने के लिए बनाए गए 29 प्रावधान कभी भी कार्यरूप नहीं ले
सके। पंचायत प्रतिनिधि अपने खिलाफ फर्जी मुकदमों को लेकर आंदोलन कर रहे थे।
मांझी
सरकार ने पंचायत प्रतिनिधियों के खिलाफ जांच एसडीओ स्तर के नीचे के पदाधिकारी से
करवाने पर रोक लगा दी और मुखिया आदि के ऊपर मुकदमे के लिए राज्य सरकार से अनुमति
अनिवार्य कर दिया। सूत्रों के अनुसार मांझी सरकार उन 29 प्रावधानों को अमल में लाने की पहल भी
करने जा रही है।
4-नरसंहार पीड़ितों का पुनर्वास
पिछली
सदी के अंत तक बिहार कई नरसंहारों का गवाह रहा। यह सिलसिला नई सदी में जारी रहा
था। नरसंहार पीड़ितों के पुनर्वास तो तवज्जो न देने का आरोप पिछली सरकारों पर लगता
रहा था। मांझी के कर्यकाल में पुनर्वास कार्य में तेजी लाई गई और इसके लिए सर्वे
शुरू किया गया है ।
5- अरबी–फारसी विश्वविद्यालय को जमीन
पटना
में 1993 में बने अरबी–फारसी विश्वविद्यालय को पिछ्ली कई
सरकारें जमीन दिलवाने में अक्षम रहीं थीं। हज भवन में फिलहाल यह विश्वविद्यालय चल
रहा है।मांझी के कार्यकाल में पिछले महीने जमीन दिलवाने का काम पूरा हुआ। यह पहले
भी मांझी की उपलब्धियों के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। जेडीयू के नए घटना
क्रम के कारण अल्पमत में आए मांझी लगातार लोक लुभावन फैसले ले रही है।
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