क्या आप जानते हैं कि..... तथाकथित बाबरी मस्जिद को बाबर
के नाम पर नहीं बनाया गया ..... बल्कि, .... उसके कैम्प बाजार वाले
लौंडे .... "बाबरी"... के नाम पर बनाया गया था... जिसका कि बाबर दीवाना
था...!
हालाँकि
यह बात सुनने में थोड़ी अजीब लगती है.... परन्तु यही सत्य है....
और....
यह बात सुनका तो आप चकरा ही जायेंगे कि..... बाबर एक ""गे"" (
होमोसेक्सुअल अथवा समलैंगिक ) था.... और, ""बाबरी"" नामक
एक युवक के पीछे वो बुरी तरह पागल था...!!
हालाँकि, बाबर की शादी ... 17 साल की उम्र में ही (
मार्च 1500 में ) आयशा नामक स्त्री से हो गयी थी..... लेकिन, एक "गे" होने
के कारण .... बाबर को अपनी पत्नी में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी....!
बाबर
खुद अपने बाबरनामा में लिखता है कि....
"" मैं आयशा के पास 10 , 15 या 20 दिनों में एक बार जाता
था.... और, आयशा
के प्रति मेरा प्यार इतना कम हो गया था कि.... मेरी माँ खानम मुझे इसके लिए डांटा
करती थी..... और, 20 -40 दिनों में एक बार उसके पास भेजती थी..!
इसी
समय कैम्प बाजार में बाबरी नामक एक लड़का था... और, हमारे नामों में
समरूपता थी..!
मुझे
अपनी पत्नी से नहीं बल्कि, उस
लड़के से मुहब्बत थी.... और मैं उस लड़के को चाहने लगा था... यहाँ तक कि... उसके लिए
पागल हो गया था....! "" ( तारीख-ए शानी 125 -26 )
अब
आपको ऐसा लग सकता है कि..... बाबर ...... उस बाबरी से अपने भाई अथवा पुत्र की तरह
करता होगा.... इसीलिए उसने लिखा है....
लेकिन.....
आगे पढने पर..... आपका पूरा भ्रम उसी तरह ख़त्म हो जाएगा .... जिस तरह आज अयोध्या
से बाबरी मस्जिद ख़त्म हो चूका है....!
बाबर
आगे लिखता है कि.... इसके पहले तो मुझे किसी से इतना प्यार था ही नहीं.... और, ना कभी ऐसा अवसर आया था
जब, मैंने
इतने प्रीत भरे शब्द किसी से बोले या कहे हों....!
उस
बाबरी नामक लौंडे के प्यार में पागल होकर बाबर..... उसके बारे में फारसी में कुछ
तुकबन्दियाँ लिखता है...... जिसका हिंदी कुछ इस प्रकार है...
""मेरे सामान कोई भी प्रेमी जो इतना न दुखी था, ना आसक्त , ना ही असम्मानित ....और, मेरी मौत ना इतनी
दयाहीन ना ही तुझ जैसा हेय""
बाबरी
नामक लौंडे के प्यार में बाबर का ये हाल था कि.....
वो
कहता है.... एक बार मैं अपने नौकरों के साथ एक पतली गली से जा रहा था.... उसी समय
"" बाबरी "" मेरे सामने आ गया..... और, उसे देख कर मैं शरमा गया
...और, उससे
ना तो मैं एक शब्द बोल पाया ... ना ही, उससे आँखें ही मिला
पाया....!
बड़ी
हड़बड़ी और शर्मिंदगी के साथ मैं मुहम्मद के गीत गुनगुनाते आगे बढ़ गया कि....
मैं
अपने महबूब को देख कर शरमा जाता हूँ.... मेरे साथी मुझे, और मैं तुझे देखता
हूँ....!
भावारितेक
और यौनाधिक्य के कारण... मैं उस बाबरी की याद में नंगे सर, नंगे पैर... बाग़ , बगीचों .. सडकों और
महलों में ....... बिना किसी मित्र या परिवार की और देखे ही घूमा करता हूँ...!
मैं
उसकी याद और पागलपन में खुद को अथवा लोगों को उचित सम्मान नहीं दे पाता हूँ....ऐसा
विक्षिप्त हो गया हूँ मैं....! ( तारीख-ए शानी 125 -26 )
इसी
तरह..... बाबर नामक वो लौंडेबाज लुटेरा .... बाबरी नामक लौंडे के प्यार में पागल
होकर ढेरों अनप-शनाप लिखता जाता है....!
इसीलिए.....
बाबरी नामक उस लौंडे के प्यार में पागल...... बाबर से ये आशा करना भी बेवकूफी है
कि..... उसने ........ अयोध्या में मंदिर तोड़कर अपने नाम पर....... बाबरी मस्जिद
बनवाया होगा......
बल्कि....
इसकी जगह ...... निश्चय ही वो..... अपने प्रेमी लौंडे "" बाबरी
"" के नाम पर ही उस मस्जिद का नाम रखा होगा......!
लेकिन....
हमेशा की.... तरह बाबरी नाम देखते ही ....... इतिहासकारों ने बिना सोचे समझे
........ उसे बाबर के नाम के साथ जोड़ दिया......
जबकि, वो मस्जिद
""बाबर"" के नाम पर नहीं.......... बल्कि, उसके ""गे
साथी"" ....... बाबरी के नाम बनाया गया था........ जिसका कि बाबर दीवाना
था....!
हद
तो ये है कि..... मुस्लिम भी बिना जाने-समझे ........ एक अप्राकृतिक व्यभिचारी के
नाम पर बनाये गए मस्जिद पर गर्व करते हैं..... और, उसके टूटने पर शोक
मनाते हैं..... !
क्या
कोई मुस्लिम यह बता सकता है कि..... एक अप्राकृतिक व्यभिचारी के नाम पर अतिक्रमण
कर बनाया गया मस्जिद ........ मुस्लिमों को इतना प्रिय क्यों है...??????
कहीं
ऐसा तो नहीं कि...... मुस्लिम ...... बाबरी मस्जिद के बहाने ...... बाबर और उस
अप्राकृतिक व्यभिचारी बाबरी ........ के रिश्ते की याद में एक मस्जिद बनाकर .....
अपने लिए भी लौंडेबाजी... को हलाल साबित करने में जुटे हैं....?????
मुस्लिम
और सेकुलर ......... इस लेख का जबाब जरुर दें.....!
जय
महाकाल...!!!
नोट: यह लेख पूरी
प्रमाणिकता और इतिहास को अच्छी तरह से समझने के बाद ... बिना किसी विद्वेष अथवा
दुर्भावना के लिखा गया है....!
इतिहासपरक
कोई भी जबाब सादर आमंत्रित है.....
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