विवाह, मुंडन, संतान के जन्म और पूजा पाठ के विशेष अवसरों पर स्वस्तिक का
चिन्ह बनता है। स्वस्तिक की चार भुजाएं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की चारों पुरुषार्थ की प्रतीक है। मूलत: चारों
भुजाएं, आयाम और विस्तार
धर्म का ही फैलाव है। माना जाता है कि पंचतत्वों के, चावल, लाल डोरा, फूल,
पान और सुपारी के
साथ इसका पूजन करने से अपने आसपास शुभ और कल्याणकारी स्थितियां बनती हैं।
स्वतिक की पूजा के साथ स्वस्तिवाचन करने का विधान है।
स्वस्तिवाचन में स्वस्ति मंत्रो की प्रेरणा यही है कि मंत्रपाठ से ही केवल हमारा
हित नहीं हो सकता है। उस दिशा में आगे भी बढ़ना होगा। संकल्प और साहस का होना
आवश्यक है।
स्वस्तिवाचन के मंत्रों में कहा गया है कि हम सबके हित में
तो सोचें साथ ही अपनी बुद्धि और विवेक को भी दोषों से मुक्त करें। स्वस्तिवाचन के मंत्रों में सर्वस्थान कुषलता, मातृभूमि की रक्षा, उत्तम-कर्मों के प्रति प्रवृति और देवत्व की प्राप्ति की
कामना की गई है । कहा गया है-हम सभी सुखी हों, सब निरोग हों, धर्म का पालन करने वाले बनें। हमारे चारों ओर भद्र हो, और हम सदा भद्रता
से परिपूर्ण रहें।
हम कभी भी किसी से अहितकर व्यवहार न करें और जो अहितकर हो उसे
बढ़ाने से पहले नष्ट कर दें। मतलब स्वस्तिक रूपी कल्याणकारी चिन्ह हमारे
जीवन-प्रवाह का अमृत बने। हम अमृत-पथ के पथिक बने और अन्यों को भी इस ओर प्रेरित
करें।
http://www.amarujala.com/news/spirituality/religion-festivals/benefits-of-swastik-in-hindu-mythology-hindi-rj/
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