Thursday, 11 December 2014

एक ऐसा गांव, जहां घर-घर बनती है रसोई गैस


राजस्थान का तेंदूवाही गांव न सिर्फ गैस सिलेंडर की किल्लत से दूर है, बल्कि लगभग मुफ्त या बहुत कम पैसों में रसोई पका रहा है. गांव में मवेशियों के गोबर से लगभग हर घर में गोबर गैस प्लांट लगाया गया है. गैस मिलने की बढती दिक्कत को देखते हुए गांव वालों ने कुछ अलग करने की सोचा. गांव में काफी मवेशी हैं. लगभग हर घर में. इन मवेशियों के गोबर से गैस प्लांट की योजना बनाई गई. पहले पहल एक- दो घर से काम शुरू किया गया. सफल होने पर धीरे-धीरे पूरे गांव ने इसे अपना लिया. आज गांव के हर घर की रसोई गोबर गैस प्लांट से बन रही है.


सरकारी अनुदान के कारण बायो गैस का सेट-अप लगाना अब काफी सस्ता हो गया है. करीब हजार रुपए की लागत से प्लांट तैयार हो जाता है. रोज तीन से चार घमेला गोबर डालने से ही एक-दो घरों के लिए पर्याप्त गैस मिल जाती है. गोबर किसानों को मवेशियों से मिल ही जाता है. अब गांव में सिलेंडर की खपत भी कम होने लगी है. आज गांव के 42 घरों में बड़े गोबर गैस प्लांट हैं. इन प्लांटों से आसपास के घरों को भी गैस सप्लाई से जोड़ दिया गया है.

जैविक खेती की भी पहल

ज्यादा उत्पादन के लिए इस गांव के किसान हर साल 25 लाख रुपए से भी अधिक के उर्वरक खरीद रहे थे. कीटनाशक दवाओं में भी खर्च ज्यादा होने लगा था, इसलिए अब वे जैविक खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. अब वह ज्यादा उत्पादन को छोड़कर धान को पौष्टिक बनाने की दिशा में उर्वरक और कीटनाशक के उपयोग से तौबा कर रहे हैं और जैविक खेती अपना रहे हैं.

आवश्यकता आविष्कार की जननी है. जिस किसी ने भी यह कहा है, कुछ गलत नहीं कहा. कभी-कभी हमारा कोई काम किसी वजह से या किसा पर डिपेंड हो जाने की वजह से रुक जाता है. रसोई के लिए गैस कितनी जरूरी है, यह हम और आप बखूबी जानते हैं. रसोई गैस की किल्लत, रोज-रोज उसके बढते दाम और आवश्यकता को देखते हुए तेंदूवाही गांव के लोगों ने एक ऐसा रास्ता निकाला कि आज पूरा गांव न सिर्फ गैस सिलेंडर की किल्लत से दूर है बल्कि कम खर्चे में वातावरण को शुद्ध रखने का काम भी कर रहा है.

जय श्रीराम


वन्देमातरम् |

No comments:

Post a Comment