आजकल
हमारे ही हिन्दुस्थान में..... टीवी जैसे संचार के माध्यम से हम हिन्दुओं को कायर
और सेकुलर साबित करने की कोशिश की जा रही है.... और, वहां जोधा
अकबर जैसे मनहूस सीरियल दिखाए जा रहे है...!
हालाँकि....
जोधाबाई .. उस अफीमची अकबर की पत्नी थी या नहीं... यह एक विवाद का विषय है ...!
लेकिन.... गौर
करने वाली बात यह है कि...... हमारे हिन्दुस्थान में हिन्दुओं कि गौरव गाथा कि
कहानी कभी नहीं बताई जाती है.... क्योंकि, सरकारों
और सेकुलरों को लगता है कि.... अगर अपनी गौरवगाथा सुनकर यहाँ के सेकुलर अगर हिन्दू
बन गए ... फिर तो ... बाकी बचे सेकुलरों और बामपंथियों का खेल ही ख़त्म हो
जायेगा....!
ऐसी ही
एक महान गौरवगाथा और..... मुस्लिमों के जुल्म की कहानी महारानी पद्मिनी और
अलाउद्दीन खिलजी नामक कमीने की है....!
कहानी
कुछ यूँ है कि... रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रत्नसिंह चितौड़ की राजगद्दी पर
बैठे |
महाराज
रत्नसिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी तथा उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर दूर
तक फैली हुई थी |
उसकी
सुन्दरता के बारे में सुनकर ..... अपने मुस्लिम संस्कार के अनुसार .....दिल्ली का
तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी... महारानी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो
उठा और उसने रानी को पाने हेतु चितौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी |
हालाँकि....
उसने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत
सैनिको के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद
वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया |
तब उसने
अपने मुस्लिम नित कमीनेपन से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चितौड़
रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि........ “हम तो
आपसे मित्रता करना चाहते है... और, रानी की
सुन्दरता के बारे में हमने बहुत सुना है... इसीलिए हमें सिर्फ एक बार रानी का मुंह
दिखा दीजिये.... फिर हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे |
ऐसा
सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे........ पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर
दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि .... ”मेरे कारण
व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है | ”
रानी को
सिर्फ अपनी नहीं बल्कि.... पूरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थी कि .....
उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े
क्योंकि मेवाड़ की सेना.... अल्लाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी |
सो उसने
बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अल्लाउद्दीन चाहे तो रानी का मुख आईने में देख
सकता है |
इधर
.... अल्लाउद्दीन भी समझ रहा था कि ..... राजपूत वीरों को हराना बहुत कठिन काम है
और बिना जीत के घेरा उठाने से उसके सैनिको का मनोबल टूट सकता है .... साथ ही उसकी
बदनामी होगी वो अलग .... इसीलिए उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
फिर...
चितौड़ के किले में अल्लाउद्दीन का स्वागत रत्नसिंह ने किसी अतिथि की तरह किया |
रानी
पद्मिनी का महल सरोवर के बीचों बीच था...... सो दीवार पर एक बड़ा आइना लगाया गया
... और, रानी को आईने के सामने बिठाया गया |
आईने
से खिड़की के जरिये रानी के मुख की परछाई सरोवर के पानी में साफ़ पड़ती थी .....
सो वहीँ से उस कमीने अल्लाउद्दीन को रानी का मुखारविंद दिखाया गया |
सरोवर
के पानी में रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर अल्लाउद्दीन चकित
रह गया और उसने मन ही मन रानी को पाने के लिए कुटिल चाल चलने की सोच ली ..... और, जब
रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिए किले के द्वार तक छोड़ने आये तो
अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |
रत्नसिंह
को कैद करने के बाद अल्लाउद्दीन ने प्रस्ताव रखा कि...... रानी को उसे सौंपने के
बाद ही वह रत्नसिंह को कैद मुक्त करेगा |
यह सुनकर
ही रानी क्रोधित हो उठी और..... रानी ने भी कूटनीति का जबाब कूटनीति से देने का
निश्चय किया तथा.... उसने अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा कि -” मैं
मेवाड़ की महारानी अपनी सात सौ दासियों के साथ आपके सम्मुख उपस्थित होने से पूर्व
अपने पति के दर्शन करना चाहूंगी ......यदि आपको मेरी यह शर्त स्वीकार है तो मुझे
सूचित करे |
रानी का
ऐसा सन्देश पाकर ....... कामुक मियां अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा
.....और, उस अदभुत सुन्दर रानी को पाने के लिए बेताब उसने
तुरंत रानी की शर्त स्वीकार कर सन्देश भिजवा दिया |
उधर
रानी ने अपने काका गोरा व भाई बादल के साथ रणनीति तैयार कर....... सात सौ डोलियाँ
तैयार करवाई और इन डोलियों में हथियार बंद राजपूत वीर सैनिक बिठा दिए डोलियों को
उठाने के लिए भी कहारों के स्थान पर छांटे हुए वीर सैनिको को कहारों के वेश में
लगाया गया |
इस तरह
पूरी तैयारी कर रानी अल्लाउद्दीन के शिविर में अपने पति को छुड़ाने हेतु चली उसकी
डोली के साथ गोरा व बादल जैसे युद्ध कला में निपुण वीर चल रहे थे जिसे अल्लाउद्दीन
व उसके सैनिक रानी के काफिले को दूर से देख रहे थे ... और, मन ही
मन खुश हो रहे थे....!
जब सारी
पालकियां अल्लाउदीन के शिविर के पास आकर रुकीं और उनमे से राजपूत वीर अपनी तलवारे
सहित निकल कर यवन सेना पर अचानक टूट पड़े तो...... इस तरह अचानक हमले से
अल्लाउद्दीन की सेना हक्की बक्की रह गयी और गोरा बादल ने ...... तत्परता से
रत्नसिंह को अल्लाउद्दीन की कैद से मुक्त कर सकुशल चितौड़ के दुर्ग में पहुंचा
दिया |
इस हार
से अल्लाउद्दीन बहुत लज्जित हुआ और उसने अब चितौड़ विजय करने के लिए ठान ली |
आखिर
उसके छ:माह से ज्यादा चले घेरे व युद्ध के कारण... जब किले में खाद्य सामग्री अभाव
हो गया तब राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर जौहर और शाका करने का निश्चय
किया |
जौहर
के लिए गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया ... और, रानी
पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख
में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया |
थोडी
ही देर में ...... देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन
बन गया |
इधर....
जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया |
उसके
बाद..... महाराणा रत्न सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर 30000 राजपूत
सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति ... उस खिलजी की सेना पर टूट पड़े
... और उनमे भयंकर युद्ध हुआ
गोरा और
उसके भतीजे बादल ने ........ अद्भुत पराक्रम दिखाया
बादल की
आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन
किया -
बादल बारह
बरस रो,लड़ियों लाखां साथ |
सारी
दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ ||
इस
प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय
के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया ......लेकिन , उसे एक
भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी
हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके |
उसके
स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन
पर मंडराते गिद्ध और कौवे |
रत्नसिंह
युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी राजपूत नारियों की कुल
परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा
हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण
आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |
पाठक खुद
ही सोचें कि..... जो मुस्लिम अपनी बहन और मौसियों के भी सगे नहीं होते..... क्या
वे कभी हमारे भाई या भतीजे हो सकते हैं....?????
सोचो और
जागो हिन्दुओं.....
एक बात
हमेशा याद रखो.....
संघे
शक्ति कलयुगे !!
जय
महाकाल...!!!
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