हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में एक है विवाह संस्कार। इस
संस्कार का एक नियम यह है कि जब वर-वधू विवाह मंडप में आते हैं तब पुरोहित ईश्वर
को साक्षी मानकर वर-वधू का विवाह संपन्न करवाते हैं।
लेकिन विवाह तब तक संपन्न नहीं माना जाता है जब तक कि वर-वधू
अग्नि के सामने सात फेरे लेकर सात वचन निभाने का वाद न कर लें।
लेकिन क्या आपके मन में यह सवाल नहीं उठता कि विवाह के समय
अग्नि के ही चारों ओर फेरे क्यों लगाए जाए जाते हैं। अग्नि के बदले किसी और चीज को
साक्षी मानकर क्यों फेरे नहीं लिए जाते हैं?
अग्नि के चारों तरफ फेरे लगाने के चार कारण
1. अग्नि को वेदों
और शास्त्रों में प्रमुख देवता के रुप में स्थान मिला है। अग्नि को विष्णु का
स्वरुप माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि अग्नि में सभी देवताओं की आत्मा
बसती है, इसलिए अग्नि में
हवन करने से हवन में डाली गई सामग्रियों का अंश सभी देवताओं तक पहुंच जाता है।
2. अग्नि के चारों
तरह फेरे लगाकर सात वचन लेने से यह माना जाता है कि वर-वधू ने सभी देवताओं को
साक्षी मानकर एक दूसरे को अपना जीवनसाथी स्वीकार किया है और विवाह की जिम्मेरियों
को निभाने का वचन लिया है।
3. अग्नि के सामने
फेरे लेना का तीसरा कारण यह भी है कि अग्नि को अशुद्घियों को दूर करके पवित्र करने
वाला माना गया है। अग्नि के फेरे लेने से यह माना जाता है कि वर-वधू ने सभी प्रकार
की अशुद्घियों को दूर करके शुद्घ भाव से एक दूसरे को स्वीकार किया है।
4. अग्नि के सामने
सात वचन के सात फेरे लेने का तीसरा कारण यह है कि वर वधू ने अग्नि में मौजूद
देवताओं को उपस्थित मानकर एक दूसरे को जीवनसाथी स्वीकार किया है। अगर वह अपने
वैवाहिक जीवन के धर्म का पालन नहीं करते हैं तो अग्नि ही उन्हें दंड देगी।
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