क्या
आप जानते हैं कि.... आजकल दिल्ली में हम जिसे कुतुबमीनार कहते हैं ...और .... उसे
लूले कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाया गया समझते हैं.... दरअसल वह...... महाराजा विक्रमादित्य
के राज्यकाल में.... राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया .... ""हिन्दू
नक्षत्र निरीक्षण केंद्र"" है..... जिसका ""असली नाम ध्रुव
स्तम्भ"" है...!
परन्तु
... प्राचीन इतिहासकारों द्वारा मूर्खतावश.... और, आधुनिक काल में ""मुस्लिम तुष्टिकरण हेतु"" ....
कुतुबमीनार को .... उस लूले कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाया गया.... कहा जाता
है.....!
प्राचीन
इतिहासकारों द्वारा .... बिना तथ्यों की जानकारी जुटाए ही .... कतिपय नामों की
समानता के कारण ... ऐसा मान लिया गया कि..... कुतुबमीनार ... कुतुबुद्दीन ऐबक
द्वारा बनवाया गया है...!
यह
बहुत कुछ इसी प्रकार की मूर्खता है .... जैसे कि... कोई यह कहना शुरू कर दे
कि..... आर्यभट्ट नामक उपग्रह .... आर्यभट्ट ने ही भेजा था.... अथवा .... सभी
शहरों में मौजूद ... MG
ROAD (महात्मा गाँधी
रोड )... महात्मा गाँधी ने बनवाया था....!
जहाँ
तक.... उस लूले गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक की बात है तो..... वो लुटेरा और जेहादी गोरी
का गुलाम था.... और, वो गोरी के साथ ही भारत में जिहाद
चलाने आया था..... जिसे बाद में भारत का प्रभारी बना कर ...स्थायी तौर पर भारत में
जिहाद चलाने की अनुमति दे दी गयी थी..... जिस दौरान उसने .... भारत में सिर्फ
लूट-पाट मचाई और.. मंदिरों को तोडा...!
हुआ
दरअसल ये था कि.... जब वो लूला कुतुबुद्दीन .... जिहाद करते करते दिल्ली पहुंचा
तो....... वहां इतना बड़ा और खुबसूरत स्तम्भ देखकर ..... उस लूले का मुंह खुला का
खुला रह गया.... और, उसने अपने साथियों से पूछा कि .... ये
क्या है...?????
इस
पर.... उस लूले को अरबी में बताया गया ( क्योंकि, उस लूले को निपट मूर्ख होने के कारण हिंदी नहीं आती थी ) कि.....
हुजुर ... ये ""क़ुतुब मीनार""" ... अर्थात , उत्तरी धुव का निरीक्षण केंद्र है ...!
बस
यहीं से..... वो लूला और उसके उज्जड साथी इसे ... क़ुतुबमीनार- कुतुबमीनार कहने लगे
.... !
उस
पर भी ..... उस लूले कुतुबुद्दीन ऐबक ने ... ये बात खुद से कहीं भी नहीं कहा है
कि..... कुतुबमीनार उसने बनवाया है..... लेकिन.... उसने ये जरुर कबूल किया है
कि..... उसने इस स्तम्भ के चारों और बनी 27
मंदिरों को ध्वस्त कर दिया है !
लेकिन....
बाद के इतिहासकारों ने नामों में समानता देख कर .... बिना कुछ सोचे समझे ही ये
नतीजा निकल लिया कि..... इस कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही बनवाया होगा....!
अब
अगर...... इतिहासकारों की बातों को छीलना शुरू किया जाए तो..... सबसे पहला प्रश्न
यही है कि.....
अगर
.... उस लूले कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई..... तो कब ... क्योंकि....
कुतुबुद्दीन तो मात्र 4 साल ही भारत में जिहाद कर पाया
था..... और...क्या कुतुबुद्दीन ने अपने निहायत ही छोटे राज्यकाल (1206 से 1210 ) में ... इतने बड़े मीनार का निर्माण करा सकता था .... जबकि पहले के दो
वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये .....और, 1210 में भी मरने के पहले भी वह लाहौर में
था ?????
फिर
भी कुछ लोग अपनी थेथारोलोजी का इस्तेमाल करते हुए बोलते हैं कि.... लूले ने इसे 1193 AD में बनाना शुरू किया और कुतुबुद्दीन ने
सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं .. जबकि, उसके
ऊपर के तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और ...... उसके ऊपर की
शेष मंजिलें बाद में बनी....!
यदि
उनकी ही बातों को माना जाए तो....अगर.... 1193
में कुतुबुद्दीन ने .....मीनार बनवाना शुरू किया होता तो ..... उसका नाम
"बादशाह गोरी " के नाम पर.... "गोरी मीनार", या "गजनी मीनार " ऐसा ही कुछ
होता ......... या कि ........ एक "लूले गुलाम कुतुबुद्दीन" के नाम पर
.......क़ुतुब मीनार....????
अब
कुछ लोगों ने ये भी कहना शुरू कर दिया है कि..... ऐबक ने नमाज़ समय अजान देने
केलिए यह मीनार बनवाई थी...... तो क्या उतनी ऊंचाई से किसी की आवाज़ नीचे तक आ भी
सकती है ?????
और
फिर क्या.... बगल में ही मौजूद लौह स्तम्भ को ..... अजान के समय .... अल्लाह को
बैठने के लिए बनाया गया था....??????
असल
में.....सच तो यह है कि.... जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है ....... उसे मेहरौली
कहा जाता है,..... और यह मेहरौली ........वराहमिहिर के
नाम पर बसाया गया था .....जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक
और .. एक बहुत बड़े खगोलशास्त्री एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ थे !
उन्होंने
इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन के लिए........ 27 कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया
था.... और, .इन परिपथों के स्तंभों पर
सूक्ष्मकारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये
जाने के बाद भी कहीं कहीं दिख ही जाती हैं... ( चित्र संलग्न )
इसका
दूसरा सबसे बड़ा प्रमाण..... उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है........जिस पर खुदा
हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख.........जिसमे लिखा है कि..... यह स्तम्भ जिसे गरुड़
ध्वज कहा गया है... सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414 ईसवीं ) द्वारा स्थापित किया गया
था..... और, यह लौहस्तम्भ आज भी विज्ञान के लिए
आश्चर्य की बात है ... क्योंकि... आज तक इसमें जंग नहीं लगा...
उसी
महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट.......खगोल शास्त्री एवं भवन
निर्माण विशेषज्ञ वराह मिहिर......वैद्य राजब्रम्हगुप्त आदि हुए.......!
तो
ये बहुत ही सामान्य ज्ञान कि बात है कि....ऐसे प्रतापी राजा के राज्य काल .......
जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ ..........तो क्या जंगल में बिना कारण के सिर्फ
अकेला स्तम्भ बना दिया गया होगा......??????
सोचो
हिन्दुओं ...... आपके साथ क्या खेल खेला जा रहा है...... कि.... विध्वंसक को ही
आपका निर्माता बना कर प्रस्तुत किया जा रहा है....!
क्या....
तुष्टिकरण का इस से भी ज्यादा घिनौना खेल ... दुनिया के किसी भाग में खेला जा सकता
है....?????
जागो
हिन्दुओं.... और, पहचानो अपने आपको ......
अन्यथा
अभी तक तुम्हारा तो सिर्फ ऐतिहासिक धरोहर ही लूटा गया है..... .. कल तुम्हारे घर
को लूटने की तैयारी है ....!
जय
महाकाल...!!!
नोट
: इस्लामिक मान्यता के अनुसार किसी भी स्थान अथवा महल में .... मनुष्यों का फोटो
बनाना हराम है और उसे बुतपूजा माना जाता है.... जबकि, कुतुबमीनार के संलग्न चित्र में....
कुछ अप्सराओं की मूर्ति स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है...!!
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