Saturday, 1 November 2014

नमाज या मुहम्मद वंदना ?

विश्व में जितने भी धर्म और संप्रदाय हैं . उन सभी में उनकी मान्यताओं के अनुसार उपासना करने की विधियां और उपासना के दिन या समय ये किये गए हैं . लगभग सभी धर्मों का विश्वास है कि उपासना का उद्देश्य ईश्वर की अनुकम्पा प्राप्त करना . और आत्मिक शांति प्राप्त होना है .यद्यपि सभी धर्म के लोग अपने रीति रिवाज के अनुसार ईश्वर ही की उपासना करते हैं

लेकिन मुसलमान उनको मुशरिक या काफ़िर समझते है .इसके पीछे यह कारण है कि मुसलमानों का दावा है कि वह केवल एकही अल्लाह को मानते है . इस सिद्धांत को " तौहीद " या एकेश्वरवाद (Monotheism )भी कहा जाता है .तौहीद के सिद्धांत के अनुसार मुसलमान अल्लाह के अतिरिक्त किसी व्यक्ति .की उपासना नहीं कर सकते और उसकी वंदना कर सकते हैं .

अरबी में उपासना ( Worship ) "इबादत " शब्द है . और इबादत करने वाले को " आबिद "कहा जाता है .कुरान में अल्लाह की इबादत करने के लिए जो तरीके बताये गए हैं , उनमे नमाज और तस्बीह अधिक प्रसिद्ध हैं .

इस विषय को और स्पष्ट करने के लिए हमें कुरान और हदीसों में प्रयुक्त कुछ मुख्य पारिभाषिक शब्दों के अर्थ समझना जरुरी है . जो मक्तबा अल हसनात रामपुर से प्रकाशित कुरान के हिंदी अनुवाद के अंत में दिए गए हैं.

1 - नमाज या सलात. 

नमाजنماز एक फारसी शब्द है . इसका अर्थ नमस्कार या प्रणाम करना होता है . अरबी में नमाज के लिए कुरान में और हदीसों " सलवात " शब्द प्रयुक्त किया गया है . जिसे " सलात صلوات" बोला जाता है . इसका अर्थ .उपासना करना , किसी के आगे गिड़ गिडाना,या झुकना होता है ( पेज 1234 )

2 - तसबीह  (  تسبيح ). 

यह अरबी भाषा के मूल शब्द " सबह سبح" से बना है . इसका अर्थ याद करना . जपना . तारीफ करना .और किसी की महानता के आगे झुक जाना . या उसके आगे बिछ जाना होता है ( पेज 1232 )आम तौर पर जप करने वाली माला को भी तसबीह कहा जाता है . और इस्लामी माला में सौ (100 ) मनके होते हैं 

1-नमाज या सलात किसके लिए 

कुरान के अनुसार नमाज या सलात सिर्फ अल्लाह के लिए होनी चाहिए .क्योंकि अल्लाह सब का स्वामी है .जैसा कि इन आयतों में कहा है

" कह दो मेरी सलात ( नमाज ) मेरी कुर्बानी ,मेरा जीना .मेरा मरना केवल अल्लाह के लिए है . जो सारे संसार का रब है " सूरा -अनआम 6 :163 
कुरान के अनुसार नमाज पढ़ना भी एक प्रकार की इबादत है . जैसा कि इस आयत में कहा गया है 
" बेशक अल्लाह मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है ,तो उसी की इबादत करो. यही सीधा रास्ता है "सूरा -आले इमरान 3 :51 

2-तस्बीह या जाप 

इस्लाम के पहले भी ईसाइयों .यहूदियों . और पारसियों में माला से जप करने , और सवेरे शाम ईश्वर के नाम का स्मरण करने की परंपरा थी .आज भी ईसाई पादरी जिस माला से जप करते हैं उसे " रोजरी ( Rosary "कहा जाता है . यही रिवाज इस्लाम ने अपना लिया है . जाप को ही तस्बीह कहा गया है . और कुरान में मुसलमानों को दौनों समय तस्बीह करने को कहा गया है .

हे मुहम्मद अपने रब की तस्बीह करो , सूर्य उदय होने के पहले और उसके अस्त होने से रात की घड़ियों में भी " सूरा - ता हा 20 :130 

" तुम अपने रब को बहुत ज्यादा याद करो .और सायंकाल और प्रातः उसी की तस्बीह करते रहो " सूरा -आले इमरान 3 :41 

" और जो लोग अपने रब को प्रातः काल और संध्या के समय पुकारते हैं . और चाहते हैं कि उसकी प्रसन्नता प्राप्त हो जाये . तो तुम ऐसे लोगों नहीं भगाओ
सूरा-अनआम 6 :52 

रसूल की बेटी फातिमा सुबह शाम तस्बीह ( माला ) लेकर अल्लाह के नामों का स्मरण करती थी .और माला में अल्लाहू अकबर 34 बार . अलहम्दु लिल्लाह 33 बार और सुबहान अल्लाह 33 बार नामों का जाप करती थी .
सही मुस्लिम -किताब 35 हदीस 6577 

" हमने तो पहाड़ों को उन लोगों के साथ लगा दिया है कि वे भी संध्या के समय और प्रातः काल " तस्बीह " करते रहें " सूरा-साद 38 :18 

3-अल्लाह से सौदेबाजी 

भले मुसलमान मुहम्मद को अनपढ़ कहते रहें , लेकिन वह एक चालाक चतुर सौदेबाज था . उसने बचपन में ही व्यापर और मोलभाव करने की तरकीब सीख ली थी .यही नहीं उसे लोगों की मुर्खता का फायदा उठाने की कला प्राप्त कर ली थी .दिखने के लिए वह लोगों से केवल अल्लाह की इबादत करने की शिक्षा देता था . लेकिन उसकी इच्छा थी कि लोग उसकी और उसकी संतानों की इबादत करते रहें .इसलिए उसने मुसलमानों को सदा के लिए अपना आभारी बनाने के लिए कल्पित कहानी सुना डाली . जिसमे उसने दावा किया कि वह सातवें आसमान पर अल्लाह से मिलने लिए गया था .और अल्लाह ने मुझे लिख कर दिन में पांच पर नमाज पढ़ने का आदेश दिया है .

4-पांच नमाजों का हुक्म 

अबू जर ने कहा कि रसूल ने कहा कि एक दिन मैं अपने घर के अन्दर था , तभी अचानक मेरे घर की छत खोल कर जिब्रईल अन्दर आगया . और उसने मेरा सीना खोल कर मेरे दिल को जमजम के पानी से धोकर साफ किया . फिर एक सोने के बर्तन में रखा हुआ ज्ञान मेरे दिल में भर दिया . फिर मुझे अपने साथ जन्नत ले गया .
और जब वहां के दरबान ने पूछा कि तुम्हारे साथ यह कौन है , तो जिब्राइल ने बताया यह मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं. और दरबान ने जन्नत का द्वार खोल दिया . जब मैं अन्दर गया तो देखा कि दायीं तरफ जन्नत के लोग थे और अगले हिस्से में आदम ,इदरीस , मूसा , ईसा ,और इब्राहिम थे . जिब्राइल ने मेरा सबाहे परिचय कराया और सबने मुझे सलाम किया . फिर जब मैं और आगे गया तो एक जगह से कलम से लिखने आवाज निकल रही थी

जिब्राइल ने बताया कि अल्लाह मुसलमानों के लिए रोज 50 नमाजें पढ़ने का हुक्म लिख रहा है . फिर अल्लाह ने वही आदेश लिख कर मेरे हाथों में दे दिया .जैसे ही वापिस रहा था . रस्ते में मूसा मिल गए .मूसा ने कहा कि 50 नमाजें तो बहुत जादा हैं . तुम अल्लाह से कुछ कम कराओ . तब अल्लाह ने नमाजों कि संख्या आधी कर दी . और जब मैं लौटने लगा तो मूसा ने कहा यह भी बहुत जादा है . तुम फिर अल्लाह से और कम करने को कहो . फिर अल्लाह ने उसकी संख्या आधी कर दी .

इसी तरह फिर से मूसा ने कहा कि अल्लाह से और कम करने को कहा . जब मैं तीसरी बार अल्लाह के पास गया , और नमाजों की संख्या कम करने को कहा तो अल्लाह ने कहा चलो हम सिर्फ पांच नमाजों का हुक्म देते हैं . लेकिन अब इसमे कोई कमी नहीं हो सकती.यह सुनते ही मैं मक्का वापिस गया . इस तरह मैंने अपनी उम्मत के लोगों को नमाजों के भारी बोझ से बचा लिया 

बुखारी -जिल्द 1 किताब 8 हदीस 345 

5-दुरूद 

मुहम्मद ने लोगों पर अपना अहसान जताकर नमाजों में अपनी और अपने परिवार की इबादत की तरकीब निकाली दुरुद कहते हैं

यह एक प्रकार प्रार्थना है . जो नमाज केसाथ पढ़ी जाती है . कुरान में " दुरुद  درود‎ " शब्द नहीं मिलता है . क्योंकि यह फारसी शब्द है .अरबी में दुरुद का वही अर्थ है जो नमाज या सलात"(صلوات  "का होता है .(corresponding to "durood" when used as a general term, is simply: "salawât" )दुरुद फारसी के दो शब्दों " दर " यानि द्वार और " वूद " यानि वंदन से बना है अर्थात किसी के द्वार पर जाकर उसकी वंदना करना . इसी लिए दुरुद को " सलात अलन्नबी الصلاة على النبي " भी कहते हैं .वास्तव में दुरुद के माध्यम से अल्लाह के द्वारा मुहम्मद की वंदना करवाई जाती है .दुरुद और उसका अर्थ देखिये .

  "अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन व् अला आले मुहम्मदिन कमा   सल्लैता अला इब्राहिम आले इब्राहीम . इन्नक हमीदुन मजीद .
"अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिन व् अला आले मुहम्मदिन कमा बारिकता अला इब्राहिम आले इब्राहीम . इन्नक हमीदुन मजीद 

अर्थ - हे अल्लाह मुहम्मद की वंदना कर , और उसकी संतानों की . जैसे तूने इब्राहीम और उसकी संतान की ,बेशक तू बहुत महान है . हे अल्लाह तू मुहम्मद और उसकी संतान को संपन्न कर जैसे तूने इब्राहीम की संतान को किया था . बेशक तू बड़ा महान है ."

आज जब भी मुसलमान नमाज के साथ दरूद पढ़ते हैं तो वह परोक्ष रूप से मुहम्मद की वंदना करते हैं . यही नहीं अल्लाह से भी मुहम्मद पर सलात भेजने ( वंदना करने ) का आग्रह करते हैं .और इसके पक्ष में कुरान की यह आयत बताते हैं

"निश्चय ही अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर सलात भेजते रहते हैं . और हे लोगो जो ईमान लाये हो तुम भी नबी पर सलात भेजा करो '

सूरा -अहजाब 33 :56 

6-सिर्फ दो नमाजों का आदेश 

यदि मुसलमान कुरान को अल्लाह की किताब मानते है . तो कुरान में दिन भर में केवल दो बार ही नमाज पढ़ने का हुक्म मिलता है .दिन में पांच बार नमाज पढ़ने नियम मुहम्मद साहब की दिमाग की उपज है .दो बार नमाज पढ़ने आदेश कुरान की इन आयतों में मिलता है .

"और दिन के दौनों समय नमाज कायम करो . कुछ दिन के हिस्से में और कुछ रात के हिस्से में "
सूरा -हूद 11 :114 

"नमाज कायम करो , जब सूरज ढल जाये . और तब से अँधेरा होने तक " सूरा - बनी इस्राइल 17 :78

यद्यपि मुल्ले मौलवी अच्छी तरह से जानते हैं कि कुरान में सवेरे और संध्या के बाद केवल दो ही बार नमाज पढ़ने का स्पष्ट आदेश दिया गया है . लेकिन वह बड़ी चालाकी से " सलात यानि नमाज ' और तस्बीह यानि जप " शब्दों में घालमेल करके मुहम्मद कि वंदना करते है .और अल्लाह से मुहम्मद और उसकी संतानों की रक्षा और सम्पनता के लिए दुआ करते है .

लेकिन इतिहास से साबित होचुका है कि अपने अत्याचारों और अपराधो के कारण मुहम्मद साहब और उनके वंशजों की निर्मम हत्याएं कर दी गयी थी . मुसलमानों का दुरूद भी उनको नहीं बचा सका .

यदि देश की वंदना करना पाप है तो मुहम्मद की वंदना महापाप है .



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