क्या आप जानते हैं कि .... हमारे हिन्दू सनातन धर्म में
नारियों का क्या स्थान है...?????
दरअसल....
घुसपैठिया मजहब ""इस्लाम''' ... एवं उनके सरपरस्त
दोगले किस्म के सेकुलर प्रजाति के लोग ..... ''वेदों और ग्रंथो '' का गलत उद्धरण देकर हिन्दुओ को गुमराह करते है.... और, हमें समझाने का प्रयास करते हैं कि..... हिन्दू धर्म में
नारियों को जगह जगह अपमानित किया गया है...!
हालाँकि उन्होंने
कभी कोई धर्मग्रन्थ नहीं पढ़ा होता है ..... फिर भी... उन्हें लगता है कि.... वे
अगर एक ही बात को बार बार बोलेंगे कि.... शायद लोग उबके झूठ को भी सच मान बैठेंगे
..!
जबकि.. ऐसा करते
समय वे ये बात भूल जाते हैं कि.... यहाँ सभी लोग उन जैसे मंदबुद्धि ही नहीं हैं
बल्कि.... दो-चार हैम जैसे लोग भी मौजूद हैं .... जो ठोस प्रमाणों के आधार पर उनके
झूठ की धज्जियाँ उड़ा सकते हैं...!
दहेज़ प्रथा , बाल विवाह, पर्दाप्रथा, भ्रूण हत्या, बलात्कार और
व्यवहार में अनाचरण ...... जैसी कुप्रथाएं.... हमारे हिंदुस्तान में मुस्लिमों के
सौजन्य से मुगलकाल में आया हैं..... !
यहाँ मैं एक बात
स्पष्ट कर दूँ कि..... कुरान में औरतो को कोई अधिकार नहीं दिए गए हैं बल्कि...
उन्हें मात्र बच्चा पैदा करने की एक मशीन बनाकर अपमानित किया गया है ... और, इस्लाम ने स्त्रियों कि वो हालत कर रखी है कि.....उन्हें
समाज में मुंह तक दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा है......
शायद यही कारण है
कि.... मुस्लिम महिलाएं काले बुरके से अपना मुंह छुपाए फिरती है .. क्योंकि, उनका हर कोई उनसे बच्चा पैदा करना चाहता है,....... जिसकी शुरुआत उनके घर से हो जाती है..क्योंकि.... कुरान ने
मुस्लिमों को ... उनकी माँ, बेटी, बहु, फूफी, मौसी, बहन, चाची, दादी, नानी... इत्यादि सब के साथ बच्चे पैदा करने कि इजाजत दे रखी
है....!
जबकि उसके उलट
.....वेदों में नारी का स्थान बहुत ऊँचा एवं सम्मानीय है.------
आप खुद ही देखें
और समझें कि हम हिंदुओं के धर्मग्रन्थ इस सम्बन्ध में क्या कहते हैं.....???????
यजुर्वेद 20.9 - स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है
यजुर्वेद 17.45 -स्त्रियों की भी सेना हो और, स्त्रियों को
युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें |
यजुर्वेद 10.26 -शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें | जैसे राजा, लोगों का न्याय
करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों |
अथर्ववेद 11.5.18 - ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी
ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है |
यह सूक्त लड़कों
के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है |
कन्याएं
ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें |
अथर्ववेद 14.1.6 - माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता
और विद्याबल का उपहार दें |
वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें |
जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य
दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे |
अथर्ववेद 14.1.20 -हे पत्नी... हमें ज्ञान का उपदेश कर |
वधू अपनी विद्वत्ता और शुभ गुणों से पति के घर में सब को
प्रसन्न कर दे |
अथर्ववेद 7.46.3 -पति को संपत्ति कमाने के तरीके बता | संतानों को पालने वाली, निश्चित ज्ञान
वाली, सह्त्रों स्तुति वाली और चारों ओर प्रभाव डालने वाली
स्त्री, तुम ऐश्वर्य पाती हो |
हे सुयोग्य पति की पत्नी, अपने पति को
संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ |
अथर्ववेद 7.47.1 -हे स्त्री ... तुम सभी कर्मों को जानती हो |
हे स्त्री ... तुम हमें ऐश्वर्य और समृद्धि दो |
अथर्ववेद 7.47.2-तुम सब कुछ जानने वाली हमें धन – धान्य से समर्थ कर दो |
हे स्त्री ... तुम हमारे धन और समृद्धि को बढ़ाओ |
अथर्ववेद 7.48.2 - तुम हमें बुद्धि से धन दो | विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और
घर में सुख़ लाती है
अथर्ववेद 14.1.64 -हे स्त्री .... तुम हमारे घर की प्रत्येक दिशा में ब्रह्म
अर्थात् वैदिक ज्ञान का प्रयोग करो |
हे वधू ... विद्वानों के घर में पहुंच कर कल्याणकारिणी और
सुखदायिनी होकर तुम विराजमान हो |
अथर्ववेद 2.36.5 -हे वधू ! तुम ऐश्वर्य की नौका पर चढ़ो और अपने पति को जो कि
तुमने स्वयं पसंद किया है, संसार – सागर के पार
पहुंचा दो |
हे वधू ...
ऐश्वर्य की अटूट नाव पर चढ़ और अपने पति को सफ़लता के तट पर ले चल |
अथर्ववेद 1.14.3 -हे वर... यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है | हे वर ! यह कन्या तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है |
यह बहुत काल तक तुम्हारे घर में निवास करे और बुद्धिमत्ता
के बीज बोये |
अथर्ववेद 2.36.3 -यह वधू पति के घर जा कर रानी बने और वहां प्रकाशित हो |
अथर्ववेद 11.1.17 -ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय
( यज्ञ समान पूजनीय ) हैं, ये प्रजा, पशु और अन्न
देतीं हैं | यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय, सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली
और विद्वत्तापूर्ण हैं | यह समाज को प्रजा, पशु और सुख़
पहुँचाती हैं |
अथर्ववेद 12.1.25 -हे मातृभूमि ! कन्याओं में जो तेज होता है, वह हमें दो | स्त्रियों में जो
सेवनीय ऐश्वर्य और कांति है, हे भूमि ! उस के
साथ हमें भी मिला |
अथर्ववेद 12.1.31 -स्त्रियां कभी दुख से रोयें नहीं, इन्हें निरोग रखा जाए और रत्न, आभूषण इत्यादि पहनने को दिए जाएं |
अथर्ववेद 14.1.20 -हे वधू ! तुम पति के घर में जा कर गृहपत्नी और सब को वश में
रखने वाली बनों |
अथर्ववेद 14.1.50 -हे पत्नी ! अपने सौभाग्य के लिए मैं तेरा हाथ पकड़ता हूं |
अथर्ववेद 14.2.26 -हे वधू ! तुम कल्याण करने वाली हो और घरों को उद्देश्य तक
पहुंचाने वाली हो |
अथर्ववेद 14.2.71 -हे पत्नी ! मैं ज्ञानवान हूं तू भी ज्ञानवती है, मैं सामवेद हूं तो तू ऋग्वेद है |
अथर्ववेद 14.2.74 -यह वधू विराट अर्थात् चमकने वाली है, इस ने सब को जीत लिया है | यह वधू बड़े
ऐश्वर्य वाली और पुरुषार्थिनी हो |
अथर्ववेद 7.38.4 और 12.3.52 -सभा और समिति में जा कर स्त्रियां भाग लें और अपने
विचार प्रकट करें |
ऋग्वेद 10.85.7 -माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता
और विद्याबल उपहार में दें | माता- पिता को
चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो |
ऋग्वेद 3.31.1 -पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में
समान रूप से उत्तराधिकारी है |
ऋग्वेद के कई
सूक्त उषा का देवता के रूप में वर्णन करते हैं और इस उषा को एक आदर्श स्त्री के
रूप में माना गया है | कृपया पं श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा लिखित ” उषा देवता “, ऋग्वेद का सुबोध
भाष्य देखें |
सारांश (पृ १२१ – १४७ ) -
१. स्त्रियां वीर
हों | ( पृ १२२, १२८)
२. स्त्रियां सुविज्ञ हों | ( पृ १२२)
३. स्त्रियां यशस्वी हों | (पृ १२३)
४. स्त्रियां रथ पर सवारी करें | ( पृ १२३)
५. स्त्रियां विदुषी हों | ( पृ १२३)
६. स्त्रियां संपदा शाली और धनाढ्य हों | ( पृ १२५)
७.स्त्रियां बुद्धिमती और ज्ञानवती हों | ( पृ १२६)
८. स्त्रियां परिवार ,समाज की रक्षक
हों और सेना में जाएं | (पृ १३४, १३६ )
९. स्त्रियां तेजोमयी हों | ( पृ १३७)
१०.स्त्रियां धन-धान्य और वैभव देने वाली हों | ( पृ १४१-१४६)
अथर्ववेद १४. १.
४७ – हे नारी, तू समाज की
आधारशिला है| तेरे लिये हम सुखदायक अचल शिलाखंड को रखते हैं |
इस शिलाखंड के
ऊपर खड़ी हो, यह तुझे दृढ़ता का पाठ पढ़ायेगा |
इस शिलाखंड के
अनुरूप तू भी वर्चस्विनी बन जिससे संसार में आनंदपूर्वक रह सके| तेरी आयु सुदीर्घ हो ताकि हम तेरे तेज को पा सकें|
यजुर्वेद ५.१० – हे नारी, तू स्वयं को
पहचान| तू शेरनी है| हे नारी, तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटनेवाली है, तू दिव्य गुणों के प्रचार के लिए स्वयं को शुद्ध कर |
हे नारी, तू दुष्कर्मों एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विध्वस्त
करने वाली है, सभी के हित के लिए तू दिव्य गुणों को धारण कर|
यजुर्वेद ५.१२ – हे नारी तू शेरनी है, तू आदित्य
ब्रह्मचारियों को जन्म देती है, हम तेरी पूजा करते
हैं |
हे नारी, तू शेरनी है, तू समाज में
महापुरुषों को जन्म देती है, हम तेरा यशोगान
करते हैं| हे नारी, तू शेरनी है, तू श्रेष्ट संतान को देनेवाली है, तू धन की पुष्टि को देनेवाली है, हम तेरा जयजयकार करते हैं, हे नारी, तू शेरनी है, तू समाज को आनंद
और समृद्धि देती है, हम तेरा गुणगान करते हैं |
हे नारी, सभी प्राणियों के हित के लिए हम तुझे नियुक्त करते हैं|
यजुर्वेद १०.२६ – हे नारी, तू सुख़देनेवाली
है, तू सुदृढ़ स्थितिवाली है, तू क्षात्र बल की भंडार है, तू साहसका उद्गम
है| तेरा स्थान समाज में गौरवशाली है|
यजुर्वेद १३.१६ – हे नारी, तू ध्रुव है, अटल निश्चयवाली है, सुदृढ़ है, तू हम सब का आधार है |
परमपिता परमेश्वर
ने तुझे विद्या, वीरता आदि गुणों से भरा है |
समुद्र के समान
उमड़ने वाली शत्रु सेनाएं भी तुझे हानि न पहुंचा सकें, गिद्ध केसमान आक्रान्ता तुझे हानि न पहुंचा सकें |
किसी से पीड़ित न
होती हुई तू विश्व को समृद्ध कर | (अर्थात् पूरे
समाज को नारी की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, ताकि वह समाज में अपना योगदान दे सके| नारी के गौरव के लिए अपने प्राण तक उत्सर्ग करने वाले वीरों
का यह प्रेरणा सन्देश है|)
यजुर्वेद १३.१८ – हे नारी, तू अद्भुत
सामर्थ्य वाली है| तू भूमि के समान दृढ़ है| तू समस्त विश्व के लिए मां है |
तू सकल लोक का
आधार है |
तू विश्व को
कुमार्ग पर जाने से रोक, विश्व को दृढ़ कर और हिंसा मत होने दे| (हर स्त्री को मां के रूप में सम्मान देने से ही समाज में
शांति, स्थिरता और समृद्धि आएगी| इस के विपरीत स्त्रियों का भोगवादी चित्रण समाज में दुखों
और आपत्तियों का कारण है| आज आदर्श रूप में झाँसी की रानी, अहिल्याबाई आदि वीरांगनाओं को सामने रखना होगा|)
यजुर्वेद १३.२६ – हे नारी, तू विघ्न – बाधाओं से पराजित होने योग्य नहीं है बल्कि विघ्न- बाधाओं
को पराजित कर सकने वाली है |
तू शत्रुओं को
परास्त कर, सैन्य- बल को परास्त कर| तुझ में सहस्त्र पुरुषों का पराक्रम है |
अपने असली
सामर्थ्य को पहचान और अपनी वीरता प्रदर्शित कर के तू विश्व को प्रसन्नता प्रदान कर|
यजुर्वेद २१.५ – हे नारी, तू महाशाक्तिमती
है, तू श्रेष्ठ पुत्रों की माता है |
तू सत्यशील पति
की पत्नी है |
तू भरपूर
क्षात्रबल से युक्त है |
तू शत्रु के
आक्रमण से जीर्ण न होनेवाली है |
तू अतिशय कर्मण्य
है |
तू शुभ कल्याण
करनेवाली है |
तू शुभ नीति का
अनुसरण करनेवाली है |
हम तुझे रक्षा के
लिए पुकारते हैं| (अर्थात् गलत मार्ग पर चलने वाले पति का अन्धानुकरण न
करके पत्नी को सत्य और न्याय की स्थापना के लिए आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि नारी में
असीम शक्ति का निवास है|)
ऋग्वेद ८.६७.१० – हे खंडित न होने वाली, सदा अदीन बनी
रहने वाली पूजा योग्य नारी, हम तुझे परिवार एवं राष्ट्र में उत्कृष्ट सुख़ बरसाने
के लिए पुकारते हैं ताकि हम अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर सकें|
ऋग्वेद ८.१८.५ – हे नारी, जैसे तू शत्रु से
खंडित न होनेवाली, सदा अदीन रहनेवाली वीरांगना है वैसे ही तेरे पुत्र भी
अद्वितीय वीर हैं जो महान कार्यों का बीड़ा उठानेवाले हैं |
वे स्वप्न में भी
पाप का विचार अपने मन में नहीं आने देते, फ़िर पाप- आचरण
तो क्या ही करेंगे! वे द्वेषी शत्रु से भी लोहा लेना जानते हैं क्योंकि तुम मां हो|
यजुर्वेद १४.१३ – हे नारी, तू रानी है| तू सूर्योदय की पूर्व दिशा के समान तेजोमयी है! तू दक्षिण
दिशा के समान विशाल शक्तिवाली है |
तू सम्राज्ञी है, पश्चिम दिशा के समान आभामयी है| तू अपनी विशेष कांति से भासमान है, उत्तर दिशा के समान प्राणवती है |
तू विस्तीर्ण आकाश
के समान असीम गरिमावाली है|
ऋग्वेद १०.८६.१० – नारी तो आवश्यकता पड़ने पर बलिदान के स्थल संग्राम में भी
जाने से नहीं हिचकती |
जो नारी सत्य विधान करने वाली है, वीर पुत्रों की माता है, वीर की पत्नी है, वह म हिमा पाती है |
उसका वीर पति विश्व भर में प्रसिद्धि पाता है|
यजुर्वेद १७.४४
-हे वीर क्षत्रिय नारी, तू शत्रु की विशाल सेनाओं को परास्त कर दे |
शत्रुओं के लिए
प्रयाण कर, उनकेह्रदयों को शोक से दग्ध कर दे |
अधर्म से दूर रह
और शत्रुओं को निराशा रूपघोर अंधकार से ग्रस्त कर ताकि वो फ़िर सिर न उठा पाएँ|
यजुर्वेद १७.४५ – विद्वानों द्वारा शिक्षा से तीक्ष्ण हुई एवं प्रशंसित तथा
शस्त्र आदि चलाने में कुशल हे नारी, तू शत्रुओं पर
टूट पड़ |
शत्रुओं के पास पहुंचकर उन्हें पकड़ ले और किसी को भी छोड़
मत, कैद करके कारागार में डाल दे|
ऋग्वेद ६.७५.१५ – हे वीर स्त्री, अपराधियों के लिए
तुम विष बुझा तीर हो| तुम में अपार पराक्रमहै | उस बाण के समान गतिशील, कर्म कुशल, शूरवीर देवी को हम भूरि- भूरि नमस्कार करते हैं |
ऋग्वेद १०.८६.९ – यह घातक मुझे अवीरा समझ रहा है, मैं तो वीरांगना हूं, वीर पत्नी हूं, आंधी की तरह शत्रु पर टूट पडने वाले वीर मेरे सखा हैं | मेरा पति विश्वभर में वीरता में प्रसिद्ध है |
ऋग्वेद १०.१५९.२ – मैं राष्ट्र की ध्वजा हूं, मैं समाज का सिर
हूं | मैं उग्र हूं, मेरी वाणी में बल
है | शत्रु – सेनाओं का पराजय
करने वाली मैं युद्ध में वीर- कर्म दिखाने के पश्चात ही पति का प्रेम पाने की
अधिकारिणी हूं|
ऋग्वेद १०.१५९.३ – मेरे पुत्रों ने समस्त शत्रुओं का संहार कर दिया है| मेरी पुत्री विशेष तेजस्विनी है और मैं भी पूर्ण विजयिनी
हूं | मेरे पति में उत्तम कीर्ति का वास है|
ऋग्वेद १०.१५९.४ – मेरे पति ने आत्मोसर्ग की आहुति दे दी है, आज वही आहुति मैंने भी दे दी है| आज मैं निश्चय ही शत्रु रहित हो गई हूं |
ऋग्वेद १०.१५९.५ – मैं शत्रु रहित हो गई हूं, शत्रुओं का मैंने
वध कर दिया है, मैंने विजय पा ली है, वैरियों को
पराजित कर दिया है | शत्रु – सेनाओं के तेज को
मैंने ऐसे नष्ट कर दिया है, जैसे अस्थिर लोगों की संपत्तियां नष्ट हो जाती
हैं....|
और... ये बात तो
सभी जानते हैं कि.... जब तक किसी समाज में नारी का सम्मान नहीं किया जायेगा तब तक
... वो समाज पिछड़ा ही रहेगा क्योंकि... नारी ना सिर्फ समाज की आधी आबादी का
प्रतिनिधित्व करती है बल्कि.... बच्चों को प्राथमिक संस्कार अपनी माँ और बहनों से
ही प्राप्त होता है.....!
यही कारण है
कि.... दुनिया में 56 इस्लामिक देश होने के बावजूद भी मुस्लिम समाज काफी
पिछड़ा हुआ है और सूअर की संज्ञा पाता है जबकि.... एक ही हिंदुस्तान होने के बाद भी
हम उनसे लाखों कदम आगे एवं सुसंस्कृत हैं...!
गर्व से कहो हम
हिन्दू हैं....!
जय महाकाल...!!!
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