Monday, 12 January 2015

इस्लाम में नमाज और जुम्मे अर्थात शुक्रवार क्या है ...?



क्या आप जानते हैं कि.... इस्लाम में नमाज और जुम्मे अर्थात शुक्रवार का क्या महत्व है ...?????
दरअसल यह जानना इसीलिए जरुरी है क्योंकि... आज दुनिया में हर जगह मुसलमान ""धार्मिक स्वतंत्रता"" का नाम लेकर नमाज़ पढने को लेकर तूफ़ान मचाए हुए हैं.....
और. स्थिति तो यह है कि.... मुल्ले कहीं भी चादर बिछा कर नमाज पढ़ने बैठ जाते हैं.... चाहे वो व्यस्ततम सड़क ही क्यों ना हो....!
लेकिन, यह जानकर आपका मुँह खुला का खुला रह जाएगा कि.....
इस्लाम के धार्मिक ग्रन्थ कहे जाने वाले तथाकथित किताब कुरान में .... ""नमाज"" शब्द का कहीं "जिक्र तक नहीं" है...!
हालाँकि... मुझ समेत दुनिया के हरेक लोगों ने नमाज के समय ""मुर्गे की बांग की तरह दिए जाने वाले अजान"" को सुना होगा.... लेकिन, यह जानकर आपके हैरानी की सीमा नहीं रहेगी कि....
उस "अजान में भी" नमाज शब्द का कहीं कोई जिक्र नहीं है... बल्कि... उसमे "हय्या अलस्-सलात" कहा जाता है...जिसका अर्थ होता है .... "खुदा की इबादत के लिए आओ"

तो, सबसे बड़ा सवाल ये ही उठता है कि..... आखिर ये नमाज है किस बला का नाम और ... ये शब्द आया कहाँ से ....??????
कुछ कूढ़मगज किस्म के लोगों का मानना है कि.... नमाज एक ""फारसी शब्द"" है.... और, फारसी शब्द का मूल यानी धातु "मसदर" कही जाती है,
लेकिन, मजे की बात यह है कि..... नमाज का मसदर नम हो तो....... नम का अर्थ गीला या भीगा हुआ होता है... मतलब कि .... नहाना या भीग जाना हो गया ....!
परन्तु.... यदि आप इसी ""नम शब्द"" का अर्थ संस्कृत में ढूँढोगे तो.....
संस्कृत में इसी नम का अर्थ है .......""झुकना""
लेकिन... फिर सवाल वहीँ आ खड़ा होता है कि..... झुकना.... लेकिन किसके लिए और क्यों...??????
तो.... इसका जबाब जाहिर है ..... इबादत के लिए.......
लेकिन, किसकी इबादत के लिए......??????
तो जबाब होगा..... खुदा की इबादत के लिए....!!
परन्तु.... इसके बाद तो..... और भी बड़ी समस्या हो जाती है..... क्योंकि...
इस्लाम कि मान्यता के अनुसार तो खुदा ""अज यानी अजन्मा है"".... और, अजन्मा का जब आकार ही नहीं तो इबादत किस ओर .....और... कैसे करें....???
अब मुल्ले कहेंगे कि.... मक्का मदीना की ओर...!!
तो ....
तथ्यों से अब ये स्थापित हो चुका है कि.....
जिसे आज मुसलमान ....मक्का मदीना के नाम से जानते हैं..... उस मक्का मदीना का प्राचीन नाम मख-मेदीनी है....वहां गुरू शुक्राचार्य का मठ था..., जिसे मोहम्मद ने तोड़ दिया....!
और.... अगर मुसलमानों को ये बात नहीं मालूम है तो मैं उन्हें बता दूँ कि....
उस ज़माने में गुरू शुक्राचार्य के मठ में पूजा तथा यज्ञ "अज" अर्थात भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए होता था..... एवं...... यज्ञों में पूजा आहुति देकर होती ही होती है ...
और, यह हम सभी जानते हैं कि..... किसी भी यज्ञ मे आहुति हमेशा ही बैठ कर या झुक कर ही प्रदान की जाती है... इसीलिए , मुसलमान उसी तर्ज़ पर झुक कर ही नमाज पढ़ते हैं....!
और, वहां के गुरु शुक्राचार्य थे..... इसीलिए, शुक्राचार्य के नाम पर ""शुक्र"" का दिन मुसलमानों के लिए ""बड़ा"" हो गया ....
और, ""शुक्र"" का फ़ारसी अनुवाद ""जुम्मा"" होता है ... इसीलिए, मुसलमानों के लिए ""जुम्मे का दिन भी बड़ा"" हो गया ....!!
और, जहाँ तक बात रह गई नमाज के दौरान दिए जाने वाले अजान की तो......
अब अजान की क्या कहानी है... और.. इसकी शुरुआत कैसे हुई.... जरा इसे भी समझ लें...!
हुआ कुछ यूँ कि..... जब मुहम्मद मक्का से मदीना आए, तो एक रोज़ इकठ्ठा हो कर सलाह मशविरा किया कि ... नमाज़ियों को नमाज़ का वक्त बताने के लिए कि क्या तरीका अपनाया जाए ...!
इसपर... सभी ने अपनी-अपनी राय पेश कीं....
और, किसी ने राय दी कि.. यहूदियों की तर्ज़ पर सींग बजाई जाए... तो किसी ने हिन्दू की तर्ज़ पर नाक़ूश (शंख) फूंकने की राय दी.. तो किसी ने कुछ किसी ने कुछ....!
मुहम्मद चुपचाप सब की राय को सुनते रहे.... मगर अंत में उनको उमर की ये राय पसंद आई कि...... अज़ान के बाकायदा एक बोल बनाए जाएँ.... और, उस बोल को बाआवाज़ बुलंद पुकारा जाए.....
इस पर मुहम्मद ने बिलाल को हुक्म दिया.... उठो बिलाल अज़ान दो." (बुखारी ३५३)
इस तरह ... अज़ान चन्द लोगों के बीच किया गया एक मजाकिया फैसला था ....जिस में मुहम्मद के जेहनी गुलामों की सियासी टोली थी...!!
जय महाकाल...!!!

नोट: यह लेख किसी भी समुदाय को आहत करने के लिए नहीं..... बल्कि, पूरे तथ्यात्मक रूप से सामाजिक चेतना के लिए लिखा गया है...!!


2 comments:

  1. अगर ये सच भी है तो कोइ बात नहीं क्योंकि सभी जानते हैं कि पवित्र कुरान मुहम्मद के द्वारा ही आया हुआ किताब है और हां मुहम्मद अन्पढ थे। ये जानके भी इस्लाम धर्म सबसे तेजी से फैला और सभी मुहम्मद को महान से भी ऊंचा दर्जा दिया है।
    अज़ान के जगह, सींग बजाई जाए या तो किसी हिन्दू की तर्ज़ पर नाक़ूश (शंख) फूंके जाए☺ ......तो आज के generation के लोगों को लगेगा कि ये वाहनो या जहाजों का होरन है। इसलिए मुहम्मद ने बिलाल को हुक्म दिया.... उठो बिलाल अज़ान दो...........हलांकी अज़ान देने का कारण तो बहुत है....लेकिन नासमझ लोगों के लिए यही काफी है।

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  2. Enter your comment... ओैर हां Friday या शुक्रवार से गुरु शुक्राचार्य से क्या मतलब....Friday को Arabic मे ﺍﻟﺠﻤﻌﺔ अलजुमा
    कहा जाता है। शुक्रवार नही

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