मुसलमान कुरआन को अल्लाह की किताब यानि ईश्वरीय पुस्तक
बताते हैं .और दावा करते हैं कि इसको बनाने वाला मुहम्मद या कोई इंसान नहीं है
.जबकि इस बात के कई प्रमाण है कि कुरान के अलग अलग हिस्सों की रचना कई लोगों के
द्वारा अलग अलग समय पर की गयी थी .उन्हीं में से एक व्यक्ति मुहम्मद का उस्ताद “वरका बिन नौफल “भी था .जिसने
कुरआन की कई सूरतें (अध्यायों )की रचना की थी .
ऐसी ही एक सूरा 19 मरियम भी है
.कुरान के गुप्त अक्षरों को खोलने (Decifer ) करने पर कुरान की इस सूरा के लेखक का पता चल
गया है .इसके सबूत दिए जा रहे हैं -
अक्सर देखा गया है कि,जब ऎसी किसी महत्वपूर्ण बात को छुपाने की जरूरत होती है तो
लोग तरह तरह के गुप्त संकेतों (Code Languages ) का प्रयोग करते हैं .कई बार इस विधि का उपयोग युद्ध के समय
किया जाता है ,या लोगों की
बुद्धि की परीक्षा के लिए पहेलियों की तरह प्रयोग किया जाता है .ग्रीक ,यहूदी ,ईसाई इस विधि का
प्रयोग अक्सर करते आये हैं .क्योंकि इनकी वर्णमाला (Alphabets ) हरेक अक्षर की एक
संख्यात्मक कीमत (Numerical
Value ) निर्धारित होती है .अर्थात हरेक अक्षर (letter ) एक संख्या (Number )को दर्शाता है
.और कई बार ऐसा भी होता है कि किसी अत्यंत बात को काफी समत तक गुप्त रखने के लिए
अक्षरों और संख्याओं के संयोजन से एक कूट शब्द (Code Word ) बना दिया जाता है .
कुरान
की कई ऐसी सूरा (Chapters
) हैं ,जिनके प्रारंभ
में कुछ अक्षर लिखे हुए हैं .जिनको अलग अलग पढ़ने का रिवाज है ,क्योंकि इन अक्षरों
को मिला कर पढ़ने से कोई शब्द नहीं बनता .इसलिए इनको “हुरुफे मुकत्तिआत
حُروف
مُقطعات Disjoined
Letters )कहा जाता है मुसलमान इन अक्षरों का अर्थ नहीं जानते हैं ,उन से कहा जाता
है कि वह केवल इन अक्षरों पर ईमान रखें .
इसी तरह कुरआन की सूरा संख्या 19 सूरा मरियम की
पहिली ही आयत पांच अक्षर लिखे गए है .हम उनकी चर्चा कर रहे है -
वह पांच अक्षरكهيعص इस प्रकार हैं
.सूरा -मरियम 19 :
इन अक्षरों को अलग अलग इस तरह पढ़ा जायेगा -
(Right to Left ( काफ ,हे ,ये ,ऐन,साद .
इन्हीं पांच गुप्त अक्षरों में सूरा मरियम के लेखक का रहस्य
छुपा हुआ है .क्योंकि इस सूरा का लेखक मुहमद का गुरु और मुहमद की प्रथम पत्नी
खदीजा का चचेरा भाई वर्का बिन नौफल ورقه بِن نوفل था .जो ईसाई था
मदीना का बिशप भी था .
यह बात लगभग सन 615 की है ,जब मुहम्मद के दुष्ट व्यवहार के कारण मदीना के लोग
मुसलमानों की जान के दुश्मन बन गए थे ,और मुसलमानों को मदीना में रहना मुश्किल हो गया था .वह अपनी
जान बचने लिए कोई सुरक्षित जगह तलाशने लगे .
उस समय अबीसीनिया (Ethopia ) पर “असमा बिन अल अबजार “का राज्य था जिसे अरबी में नज्जाशी نجّاشي या Negus भी कहा जाता है
नज्जाशी कट्टर ईसाई था .वह ईसा मसीह को खुदा का बेटा ,और इलाही الهي यानि अपना
प्रभु मनाता था .जबकि मुसलमान ईसा मसीह को सिर्फ एक साधारण सा नबी मानते थे .चूँकि
इथोपिया मदीना के पास था ,और वही एक ऐसी
जगह थी जहाँ मुसलमान अपनी जान बचा सकते थे .इसलए मुहमद ने कुछ लोगों को नज्जाशी के
पास भेजा ,और उस से
मुसलमानों को शरण देने का अनुरोध किया .
लेकिन नज्जाशी मुहमद के ईसा मसीह के बारे
में विचार जानना चाहता था ,इस लिए उसने
मुहम्मद के दूतों को यह कहकर लौटा दिया कि पहिले मुहमद से लिखवा कर लाओ ,कि उसकी किताब (कुरान
) में ईसा मसीह के बारे में क्या लिखा है .
इसलिए मुहम्मद ने अपने गुरु वर्का बिन नौफल से तुरंत एक ऎसी
सूरा लिखने को कहा जिसमे ईसा मसीह के बारे में लिखा हो .यह सुनकर वर्का के सामने
एक समस्या कड़ी हो गयी .वह ईसाई होने के कारण इसा मसीह को अपना प्रभु मनाता था
.वर्का मुहम्मद के क्रूर स्वभाव को जानता था .यदि वह ईसा मसीह को खुदा काबेटा या
प्रभु लिख देता तो ,मुहम्मद उसे
क़त्ल करा देता ,और अगर वह ईसा
मसीह को एक साधारण नबी लिख देता तो उसे ईसाई धर्म से निकाल दिया जाता.और बिशप का
पद छोड़ना पड़ता था ,यही नहीं मरने पर
ईसाई कब्रिस्तान में जगह भी नहीं मिलती.इसके लिए वर्का ने एक उपाय निकाल लिया
.पहिले उसने सूरा मरियम के पहिले पांच अक्षर लिख दिए .जिसे मुसलमान नहीं समझ सके
.फिर उसने उसी सूरा मरयमمريم में यह आयत भी
लिख दी -
“यह है मरयम के
बेटे इसा की सच्ची बात जिस पर यह लोग (मुसलमान ) झगडा करते हैं
“ذالك عيسي ابن مريم قول الحقّ الّذي
فيهِ يمترون सूरा -मरयम 19 :34
इसके बाद जब यह सूरा लेकर अली के भाई जफ़र बिन अबू तालिब और
दूसरे मुसलमान नज्जाशी के दरबार में गए और जफ़र ने सूरा मरियम को पढ़ा तो उपस्थित
पादरी नौफल के गुप्त अक्षरों का तोड़ (Decifer ) निकाल कर अर्थ समझ गए .कि जरुर यह सूरा (पत्र)
किसी अपने ही ईसाई व्यक्ति ने लिखा है .और नज्जाशी ने मुसलमानों को अपने यहाँ रहने
की अनुमति दे दी .
अब आपको क्रमश (step by step ) बताते है कि वर्का के दिए गए पांच अक्षरों को
किस तरह से खोला (decifer
)किया गया था और वर्का का असली सन्देश क्या था ,जो उसने नज्जाशी को भेजा था
जैसे ही जाफर ने नाज्जाशी के दरबार में सूरा मरियम की पहिली
आयत पढी ,तो दरबार में
मौजूद ईसाई विद्वान् समझ गए कि इस सूरा में कोई गुप्त सन्देश भेजा गया है .जिसका
रहस्य निकालना जरुरी है .इसके लिए अक्षरों की Numerical value निकालनी होगी
1 -यह अक्षर थे -काफ
ك
=20 +हे ه =5 +ये ي =10 + येन ع + 70 =साद ص =90 .कुल योग =.195
2 -इसके बाद
पादरियों ने पांच के दोगुने दस ऐसे अक्षर लिए जिनकी value भी 195 ही हो .और कोई
सार्थक शब्द भी बन जाये .
3 -इसके बाद यह दस
अक्षर – اअलिफ़ ل लाम م मीम سसीन ي ये ح हे अलिफ़ اलाम ل हे ه ये ي लिए .फिर इनके
अंक जोड़ लिए
जैसे -1 +30 +40 +60 +10 +8 +1 +30 +5 +10 =195
4 -अब इन दस अक्षरों
से यह शब्द المسيح الهي बन गया .”अल मसीह इलोही “अर्थात “Messiah is my Lord “मसीह मेरा प्रभु
है ! “
इलोही אלֺהיִ
हिब्रू शब्द है बाइबिल में इसका जगह जगह ईश्वर या प्रभु और स्वामी के लिए प्रयोग
किया जाता है .जैसे ईश्वर के के लिए भगवान भी कहा जाता है
.सूरा मरियम के इन
पांच अक्षरों रहस्य खुल जाने से यह बात सिद्ध होती है कि कुरान की सूरा मरियम
मुहमद के इसाई उस्ताद “वर्क बिन नौफल “द्वारा लिखी गयी
थी .जैसे उसने कुरान की दूसरी सूरतें और आयतें लिखी थीं .चूँकि वर्का बाइबिल का
विद्वान् था और बाइबिल की कहानियों को मुहम्मद की बोली यानि कुरैश की अरबी में
लिखा करता था .इस लिए नाज्जाशी को भिजवाने वाला पत्र (सूरा मरियम ) मुहमद ने वर्क
से लिखवाया था .
आज वर्का द्वारा अरबी में लिखी गयी बाइबिल के हिस्से इथोपिया में
मौजूद है
यह एक निर्विवाद सत्य है कि कुरान कोई ईश्वरीय किताब नहीं
है .बल्कि मनुष्यों द्वारा बनाई मनगढ़ंत किताब है .जिसे कई लोगों ने मिलकर बनाया
है .और कुछ हिस्से बाइबिल से नक़ल किये गए है .कुछ आयशा ने गढ़ी है .जल्द ही इस
विषय पर विस्तार से जानकारी दी जाएगी .
अतः कुरान को ईश्वरीय पुस्तक या आसमानी किताब मानने की भारी
भूल कदापि नहीं करें .
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