गीता प्रेस गोरखपुर
से प्रकाशित प्रसिद्ध धार्मिक पत्रिका "कल्याण के फ़रवरी सन् 1960 के
अंक में
इस विषय पर एक लेख छपा था जो हम पाठकों के लाभार्थ यहां ज्यो का त्यों दे
रहे हैं !
सन् 1941 की
बात हैं , स्वतंत्रता
के संग्राम में मैं लखनऊ डिस्ट्रिक्ट जेल में था ! एक दिन हमारी बैरिक में
रहनेवाले हरदोई जिला के वयोवृद्ध सत्याग्रही ने (दुर्भाग्य से मैं उनका नाम भूल गया हूँ उन्हें अक्सर वैद्य जी कहा करते थे )
बैरिक में रहनेवाले 80-90 सत्याग्रही सज्जनों को एक जगह बैठाकर कहा -'आओ आज अपने साथियो को अपने अनुभवपूर्ण पीपल वृक्ष के चमत्कार की बात बताए !"
उन्होंने बताया कि संसार में आज तक काले नाग के काटे को अच्छा करने की कोई भी औषधि इतनी अच्छी नहीं ईजाद हुई जितना अच्छा पीपल हैं !
उन्होंने यह भी कहा कि यह बात मैं सुनी हुई नहीं कहता, बल्कि लगभग सौ आदमियों को अच्छा कर चूका हूँ ,तब बताता हूँ !
विधि ~
जब किसी को सर्प काट ले, तब फौरन काफी तंदुरुस्त पांच बलवान
आदमियों को वहां ले आओ ! सर्प काटे हुए व्यक्ति को बैठा दो ! एक एक आदमी एक एक पैर
दबा लें , एक एक आदमी दोनो हाथ पकड़ ले ताकि वह व्यक्ति , जिसे सर्प ने काटा हैं ,बिलकुल हिल डूल न सके !
पांचवा आदमी उसी
व्यक्ति के पीछे बैठकर मजबूती से उसका सिर पकड़ ले ताकि सिर भी नहीं हिलें ,अब आप फौरन पीपल की एक ऐसी डाल तोड़कर
मंगाए जिसमें बीस-पच्चीस हरे पत्ते लगे हों ! उनमें से ऐसे दो पत्ते मय डंठल के
(नकुनो सहित ) तोड़िये जिससे की टुटा हुआ हिस्सा जहाँ से दूध निकलता हैं वह पत्ते
का डंठल कानों में जा सके ! आप पहले एक कान में देखकर काफी सावधानी से ,जैसे कनखुदा मैंल निकलता हैं ,उसी तरह से डंठल कान में डाले !
यदि सर्प ने
काटा है तो ज्यों ही लगभग एक इंच डंठल कान के अंदर जाएगा त्यों ही वह व्यक्ति जिसे
सर्प ने काटा हैं ,इतने तेजी से चीखने -चिल्लाने लगेगा जैसे उसे कोई मार डाल रहा
हो ! वह उठकर भागने ,पत्ता पकड़ने या मुंड हिलाकर पत्ता बाहर निकालने के कई प्रयत्न
करेगा ! इसी बीच दूसरे कान में भी उतना ही पत्ता डालकर शांत बैठ जाइये ! मरीज को
रोने चीखने-चिल्लाने दीजिये !
अधिक से अधिक पांच मिनट वह चिल्लाना बंद कर देगा !
और चिल्लाना तभी बंद करेगा जब पत्ते सब विष खिंच लेंगे ! यदि चिल्लाना बंद न करे
तो वह पत्ते बदल दीजिये और पांच मिनट तक फिर दूसरा पत्ता लगा दीजिये ! चाहे जैसे
जहरीले सर्प का विष हो ,ठीक दस मिनट बाद वह ठीक हो जाएगा !
हरदोई के वैद्य
जी के इस प्रयोग को मैंने आकर किया और सन् 1941 से लेकर 17-18 वर्षो में अब तक करीब 70 आदमियों को अच्छा कर चूका हूँ ! अचूक
प्रयोग हैं !
यदि सर्प ने नही
काटा हैं तो कान में पत्ता डालने पर वह चुपचाप बैठेगा ! यही परीक्षा है कि सर्प का
विष नही हैं ! सर्प के विष के अतिरिक्त अन्य विषों में यह पत्ता काम नही करेगा !
पत्ता डालनेवाले
को खूब सावधान रहना चाहिए ! मरीज के चिल्लाहाट से घबराकर पत्ता हाथ से छोड़ नहीं
देना चाहिए ! अन्यथा ,पत्ता अपने आप कान में खिंचकर चला जाएगा और पर्दा फाड़ देगा !
जहाँ से रोगी
चिल्लाने लगे बस वहीँ से पत्ता न आगे जाने दे न पीछे आने दे ! दूसरे कान से निकाले
पत्तो को या तो जला दें या जमीन में खोदकर गाड़ दे ;क्योंकि यदि कोई जानवर उन पत्तो को खा
लेगा तो मर जाएगा !
~मेंवालाल तार्किक मु. पो. मूसानगर ,जिला कानपूर !
उक्त लेख
"कल्याण" पत्रिका में प्रकाशित होने पर पाठको ने प्रयोग किए और इसको सफल
पाया !
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