Wednesday 18 February 2015

स्वाइन फ्लू का इलाज़



स्वाइन फ्लू को आयुर्वेद में जहां जनपदोध्वंस नाम से जाना गया है। वहीं आयुर्वेद के विशेषज्ञ स्वाइन फ्लू के लक्षणों को आयुर्वेद की प्राचीन संहिताओं में वर्णित वात श्लेष्मिक ज्वर लक्षणों के निकट मानते हुए उसे स्वाइन फ्लू के बराबर का रोग बताते हैं।

- स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए हल्दी और नमक उबालकर गुनगुने पानी से गरारे करने चाहिए। स्वाइन फ्लू के दौरान गर्म पानी से हाथ-पैर धोएं और अधिक से अधिक सफाई रखें।

- नीलगिरी,इलायची तेल की एक-दो बूंदें और थोडा कपूर रूमाल में डालकर नाक पर रखना चाहिए।

- स्वाइन फ्लू से बचने के लिए अदरक, तुलसी को पीस कर शहद के साथ सुबह खाली पेट चाटना चाहिए।

- औषधियों में त्रिभुवन कीर्ति रस, लक्ष्मी विलास रस, संजीवनी बूटी, गुड़ आदि का सेवन करना चाहिए।

- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकीभर कालीमिर्च पावडर और हल्दी को एक कप पानी में उबालकर दिन में दो-तीन बार पीएं.

- आधा चम्मच आंवला पावडर को आधा कप पानी में मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीएं

- नियमित रूप से भ्रस्त्रिका , अनुलोम-विलोम और कपालभाती प्राणायाम करें.

- नाक में तेल या घी डालने से बंद नाक खुल जायेगी.

- रात में हल्दीवाला दूध पिए. इसमें थोड़ा गाय का घी और आधा चम्मच त्रिफला चूर्ण भी मिलाये.

- तुलसी , नीम छाल , दालचीनी , लौंग और गिलोय उबालकर काढा दिन में तीन बार पिए.

- गिलोय घनवटी की दो दो गोली सुबह शाम ले.

- ताज़ी नीम और तुलसी ना मिलने पर नीम घनवटी, तुलसी सूखा का पंचांग आदि का उपयोग कर सकते है.

- ज्वरनाशक क्वाथ लें.

- महासुदर्शन वटी दिन में दो बार ले.

- हल्का और सुपाच्य भोजन ले. पूरी नींद ले. तनाव ना ले.


- कब्ज ना होने पाए इसका ध्यान रखे.


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