Wednesday 26 November 2014

सूर्य के रथ को खींचने वाले सात घोड़े का क्या है रहस्य?

सूर्य के रथ को खींचने वाले सात घोड़े

सूर्य देव हर सुबह अपने रथ पर सवार होकर पूर्व दिशा से दिन का प्रकाश लेकर आते हैं। पुराणों में बताया गया है कि सूर्य देव के रथ के सारथी अरुण हैं। अरुण भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के भाई हैं।

ऋग्वेद में कहा गया है कि 'सप्तयुज्जंति रथमेकचक्रमेको अश्वोवहति सप्तनामा' यानी सूर्य चक्र वाले रथ पर सवार होते हैं जिसे सात नामों वाले घोड़े खींचते हैं।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सूर्य के रथ में जुते हुए घोड़े के नाम हैं 'गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।' यह सात नाम सात छंद हैं। यानी सात छंत हैं जो अश्व रुप में सूर्य के रथ को खींचते हैं।


सूर्य के रथ की खूबियों के विषय में शास्त्रों में बताया गया है कि इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है।

संवत्सर इसके पहिये हैं जिसमें छः ऋतुएं नेमी रुप से लगे हुए हैं। बारह महीने इसमें आरे के रुप में स्थित हैं।

शास्त्रों और पुराणों के मत से अलग वैज्ञानिक दृष्टि यह कहती है कि सूर्य हमारी पृथ्वी से बहुत दूर स्थित है। सूर्य में वहन करने वाली सात किरणें जो इंद्र धनुष में भी मौजूद होता है। इन्हीं किरणों को शास्त्रों में सूर्य के सात अश्व मान लिए गए होंगे।




सर्दियों में त्वचा और बालों की देखभाल करें इन 5 उपायों से

skin and hair care tips in winters

सर्दियों ने दस्तक दे दी है जो न केवल मौसम बदलने की दस्तक है बल्कि त्वचा और बालों पर विशेष ध्यान देने की ओर भी इशारा है। इस मौसम में रूखापन, खुजली, रूसी, त्वचा के फटने आदि कई समस्याओं का रिस्क अधिक रहता है।

ऐसे में ब्यूटी एक्सपर्ट भारती तनेजा द्वारा बताए गए ये 5 उपाय इस मौसम में त्वचा और बालों में जान डाल सकते हैं।


नमीं रखें बरकरार

सर्दियों में शुष्क मौसम के कारण सबसे अधिक नुकसान त्वचा की नमीं को पहुंचता है। इसे बरकरार रखने के लिए घर पर ही पैक बना सकते हैं।

दो चम्मच मिल्क पाउडर, एक चम्मच शहद, दो अंडे का पीला भाग मिलाएं और चेहरे पर लगाकर कुछ मिनटों तक लगा रहने दें। हल्के गुनगुने पानी से चेहरा साफ करें। नमीं बरकरार रखने के लिए दिन में कई बार पानी पिएं।

गर्म पानी से बचें

नहाने के लिए बहुत अधिक गर्म पानी का इस्तेमाल न करें। इसे त्वचा की नमीं और प्राकृतिक तेल सूख जाते हैं और त्वचा रूखी हो जाती है। ठंड के दिनों में हल्के गर्म पानी से ही नहाएं और नहाने के बाद शरीर पर तेल लगाएं।

बालों की कंडिशनिंग

ठंड में बाल बेजान न हों इसके लिए कंडिशनिंग पर पूरा ध्यान दें। बालों में सिलिकॉन रिच कंडिशनर का इस्तेमाल करने से बालों की नमीं नहीं जाती है।

पैरों की देखभाल

सर्दियों में एड़ियां न फटे इसके लिए पेडिक्योर से न कतराएं। त्वचा से डेड स्किन जरूर निकालें। रोज रात में सोते वक्त शीए बटर या पेट्रिलियम जेली से पैरों की मसाज करें और मोजे पहनकर सोएं।

न भूलें सनस्क्रीन


कई लोगों को लगता है कि सर्दियों में सनस्क्रीन की जरूरत नहीं पड़ती पर ऐसा नहीं है। इस मौसम में भी यूवी किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं इसलिए घर से निकलते वक्त इनका इस्तेमाल जरूर करें।



एक कहानी ..... खुसरुखान उर्फ़ नसरुद्दीन की


आज का हमारा विकृत इतिहास ... जयचंद , मानसिंह एवं मीरजाफर सरीखे गद्दारों से रंगा हुआ है...!
और, इस तरह के विकृत इतिहास को पढ़ाकर .....इस देश के वामपंथी सेक्यूलर एवं मुस्लिम परस्त सरकार ... कहीं ना कहीं ... हम हिन्दुओं को हतोत्साहित करने का षड़यंत्र करते नजर आते हैं...!
लेकिन.... दूसरी तरफ का सत्य ये है कि..... मुस्लिम जेहादियों के शासनकाल में .... हिन्दुओं ने ऐसी वीरता दिखलाई है.....जिसके वर्णन मात्र से ही ..... हम हिन्दुओं का सीना 56 इंच का हो जाता है...!

ऐसी ही एक कहानी ..... खुसरुखान उर्फ़ नसरुद्दीन की है....!

अगर किसी को भी इतिहास की थोड़ी बहुत भी जानकारी होगी तो.... उन्हें यह याद होगा कि..... जेहादी अलाउद्दीन ख़िलजी की हत्या के बाद उसका पुत्र मुबारक अपने सभी विरोधिओं को कत्ल करने के बाद दिल्ली का सुलतान बन बैठा ।

और, उसकी इस कार्य में सबसे अधिक सहायता उसके सेनापति खुसरुखान ने की.........!
परन्तु.... इस सारी कहानी में ...... वामपंथी सेक्यूलरों द्वारा ये बड़ी बात खूबसूरती से छुपा ली गई कि...... खुसरुखान एक हिंदू गुलाम था.......

असल में जब ..... 1297 में मालिक काफूर ने जब गुजरात पर आक्रमण किया था.......तब एक सुंदर व तेजस्वी हिन्दू लड़का गुलाम के रूप में पकड़ा गया.....जो अल्लाउद्दीन को सोंप दिया गया...।
जैसा कि.... जेहादियों का काम होता है .....
उस हिंदू लड़के को इस्लाम में दीक्षित किया गया तथा उसका नाम "हसन" रखा गया.....।
और.... धीरे -धीरे हसन एक वीर योद्धा बनता चला गया।

तथा.... मुबारक के सुलतान बनने पर वह ""खुसरुखान"" के नाम से उसका सेनापति बना....!
इधर ..... गुजरात के राजा की पुत्री ""देवल देवी""" को भी मालिक काफूर युद्ध में उठा लाया था...........जिसे , जबरदस्ती अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र्खान से उसका निकाह पढ़वा दिया गया....!
और, गुर्जर वंश की यह राजकन्या खिज्र्खान की हत्या के बाद....... ""देवल देवी""" ने ... मुबारक से शादी कर लिया।

परन्तु..... अलाउद्दीन ख़िलजी और उसकी जेहादी सेना ..... उस हिन्दू बालक एवं देवल देवी के सिर्फ नाम ही बदल पाए थे...... उनके रगों में बहने वाले ""हिन्दू खून"" को नहीं ...!
इसीलिए....हिंदू बालक से हसन...... व, हसन से खुसरुखान बने युवक के दिल में अपने पुराने धर्म व अपने राष्ट्र के लिए अपार प्रेम जाग्रत था..... और, वो इस्लाम से बेहद नफरत करता था...!
और..... इसी ज्वाला में हिंदू गुर्जर राजकन्या देवल देवी भी धधक रही थी ।

इसी कारण......... खुसरुखान ने एक दूरगामी योजना बना डाली।
सुलतान मुबारक के अतिविश्वास पात्र होने के कारण खुसरुखान का महल में बेरोकटोक आना जाना था।

इसीलिए.... खुसरुखान और देवल देवी ने उन जेहादियों से ...... बदला लेने के लिए.....सुलतान को विश्वास में लेकर गुजरात की अपनी पुरानी हिंदू जाति परिया (पवार) के चुने हुए लगभग 20 ,000 युवा सेना में भरती कर लिए ...!

ध्यान रहे कि....ये सारी योजनाएं महल में बन रही थी.... और, योजनानुसार .... महल के सारे सैनिक भी बदल दिए गए.....!
समय आने पर खुसरुखान ने मुबारक को मौत के घाट उतर दिया.........और , नसुरुद्दीन के नाम से दिल्ली का सुलतान बन गया.. एवं, देवल देवी से उसने हिंदू रीतिरिवाज से विवाह किया।
थोड़े ही समय बाद..... उसने नसुरुद्दीन (जिसका अर्थ होता है धर्म रक्षक ) के नाम से ही ...........अपने को हिंदू सम्राट घोषित कर दिया..... और, जेल में पड़े सभी हिन्दुओं को छोड़ दिया गया...!

साथ ही..... जबरदस्ती मुसलमान बनाए लोगो का शुद्धिकरण कराए जाने लगे ... एवं , जजिया कर समाप्त कर दिया गया.....!
इस नए हिंदू सम्राट ने हिंदू व मुस्लिम सैनिको दोनों की पगार बढ़ा दी........!
अब इतना कुछ होने पर मुस्लिमों का विरोध तो होना ही था...!
नसुरुद्दीन की ताकत के सामने 2 वर्ष तक तो सब ठीक रहा.....परंतु, 2 वर्ष बाद पंजाब प्रान्त के शासक गयासुद्दीन ने अपनी ताकत बढ़ा ली ........और, दिल्ली पर काफिर के शासक को ख़त्म करने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया.....!

ऐन मौके पर..... मुसलमाओं ने एक बार फिर अपने गंदे खून का परिचय दिया...... एवं... मुस्लिम सेना ने समय आने पर सुलतान के साथ धोखा करते हुए..... मुस्लिम सेना से मिल गई...!
बचे हुए हिंदू सैनिक ........ बहुत वीरता से लड़े परंतु, दुर्भाग्य से वे सभी नसुरुद्दीन के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए.

यह समाचार सुनकर ......रानी देवल ने भी महल से कूदकर अपनी जान दे दी.... ताकि, उसे फिर किसी मुस्लिम जेहादी के हाथों अपमानित ना होना पड़े....!
इस तरह.... नसुरुद्दीन का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरो में लिखा जाना चाहिए था।
परन्तु, आश्चर्य है कि..... इतिहासकारों ने दिल्ली सल्तनत के 2 सुनहरे वर्ष बिल्कुल ही भुला दिए...!
और, हम हिन्दू भी अपने धरोहर पर गर्व करने की जगह उसे भुला बैठे.... जो हमारे लिए मिसाल है कि....
विपरीत परिस्थितियों में भी.... कैसे अपने देश और धर्म के दुश्मनों को सबक सिखाया जाता है....!


जय महाकाल...!!!




कुतुबमीनार या ... ""हिन्दू नक्षत्र निरीक्षण केंद्र""


क्या आप जानते हैं कि.... आजकल दिल्ली में हम जिसे कुतुबमीनार कहते हैं ...और .... उसे लूले कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाया गया समझते हैं.... दरअसल वह...... महाराजा विक्रमादित्य के राज्यकाल में.... राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया .... ""हिन्दू नक्षत्र निरीक्षण केंद्र"" है..... जिसका ""असली नाम ध्रुव स्तम्भ"" है...!

परन्तु ... प्राचीन इतिहासकारों द्वारा मूर्खतावश.... और, आधुनिक काल में ""मुस्लिम तुष्टिकरण हेतु"" .... कुतुबमीनार को .... उस लूले कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाया गया.... कहा जाता है.....!
प्राचीन इतिहासकारों द्वारा .... बिना तथ्यों की जानकारी जुटाए ही .... कतिपय नामों की समानता के कारण ... ऐसा मान लिया गया कि..... कुतुबमीनार ... कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाया गया है...!
यह बहुत कुछ इसी प्रकार की मूर्खता है .... जैसे कि... कोई यह कहना शुरू कर दे कि..... आर्यभट्ट नामक उपग्रह .... आर्यभट्ट ने ही भेजा था.... अथवा .... सभी शहरों में मौजूद ... MG ROAD (महात्मा गाँधी रोड )... महात्मा गाँधी ने बनवाया था....!

जहाँ तक.... उस लूले गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक की बात है तो..... वो लुटेरा और जेहादी गोरी का गुलाम था.... और, वो गोरी के साथ ही भारत में जिहाद चलाने आया था..... जिसे बाद में भारत का प्रभारी बना कर ...स्थायी तौर पर भारत में जिहाद चलाने की अनुमति दे दी गयी थी..... जिस दौरान उसने .... भारत में सिर्फ लूट-पाट मचाई और.. मंदिरों को तोडा...!
हुआ दरअसल ये था कि.... जब वो लूला कुतुबुद्दीन .... जिहाद करते करते दिल्ली पहुंचा तो....... वहां इतना बड़ा और खुबसूरत स्तम्भ देखकर ..... उस लूले का मुंह खुला का खुला रह गया.... और, उसने अपने साथियों से पूछा कि .... ये क्या है...?????

इस पर.... उस लूले को अरबी में बताया गया ( क्योंकि, उस लूले को निपट मूर्ख होने के कारण हिंदी नहीं आती थी ) कि..... हुजुर ... ये ""क़ुतुब मीनार""" ... अर्थात , उत्तरी धुव का निरीक्षण केंद्र है ...!

बस यहीं से..... वो लूला और उसके उज्जड साथी इसे ... क़ुतुबमीनार- कुतुबमीनार कहने लगे .... !
उस पर भी ..... उस लूले कुतुबुद्दीन ऐबक ने ... ये बात खुद से कहीं भी नहीं कहा है कि..... कुतुबमीनार उसने बनवाया है..... लेकिन.... उसने ये जरुर कबूल किया है कि..... उसने इस स्तम्भ के चारों और बनी 27 मंदिरों को ध्वस्त कर दिया है !
लेकिन.... बाद के इतिहासकारों ने नामों में समानता देख कर .... बिना कुछ सोचे समझे ही ये नतीजा निकल लिया कि..... इस कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही बनवाया होगा....!
अब अगर...... इतिहासकारों की बातों को छीलना शुरू किया जाए तो..... सबसे पहला प्रश्न यही है कि.....

अगर .... उस लूले कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई..... तो कब ... क्योंकि.... कुतुबुद्दीन तो मात्र 4 साल ही भारत में जिहाद कर पाया था..... और...क्या कुतुबुद्दीन ने अपने निहायत ही छोटे राज्यकाल (1206 से 1210 ) में ... इतने बड़े मीनार का निर्माण करा सकता था .... जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये .....और, 1210 में भी मरने के पहले भी वह लाहौर में था ?????

फिर भी कुछ लोग अपनी थेथारोलोजी का इस्तेमाल करते हुए बोलते हैं कि.... लूले ने इसे 1193 AD में बनाना शुरू किया और कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं .. जबकि, उसके ऊपर के तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और ...... उसके ऊपर की शेष मंजिलें बाद में बनी....!

यदि उनकी ही बातों को माना जाए तो....अगर.... 1193 में कुतुबुद्दीन ने .....मीनार बनवाना शुरू किया होता तो ..... उसका नाम "बादशाह गोरी " के नाम पर.... "गोरी मीनार", या "गजनी मीनार " ऐसा ही कुछ होता ......... या कि ........ एक "लूले गुलाम कुतुबुद्दीन" के नाम पर .......क़ुतुब मीनार....????

अब कुछ लोगों ने ये भी कहना शुरू कर दिया है कि..... ऐबक ने नमाज़ समय अजान देने केलिए यह मीनार बनवाई थी...... तो क्या उतनी ऊंचाई से किसी की आवाज़ नीचे तक आ भी सकती है ?????

और फिर क्या.... बगल में ही मौजूद लौह स्तम्भ को ..... अजान के समय .... अल्लाह को बैठने के लिए बनाया गया था....??????
असल में.....सच तो यह है कि.... जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है ....... उसे मेहरौली कहा जाता है,..... और यह मेहरौली ........वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था .....जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक और .. एक बहुत बड़े खगोलशास्त्री एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ थे !
उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन के लिए........ 27 कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था.... और, .इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्मकारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहीं दिख ही जाती हैं... ( चित्र संलग्न )

इसका दूसरा सबसे बड़ा प्रमाण..... उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है........जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख.........जिसमे लिखा है कि..... यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है... सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414 ईसवीं ) द्वारा स्थापित किया गया था..... और, यह लौहस्तम्भ आज भी विज्ञान के लिए आश्चर्य की बात है ... क्योंकि... आज तक इसमें जंग नहीं लगा...

उसी महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट.......खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ वराह मिहिर......वैद्य राजब्रम्हगुप्त आदि हुए.......!
तो ये बहुत ही सामान्य ज्ञान कि बात है कि....ऐसे प्रतापी राजा के राज्य काल ....... जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ ..........तो क्या जंगल में बिना कारण के सिर्फ अकेला स्तम्भ बना दिया गया होगा......??????

सोचो हिन्दुओं ...... आपके साथ क्या खेल खेला जा रहा है...... कि.... विध्वंसक को ही आपका निर्माता बना कर प्रस्तुत किया जा रहा है....!
क्या.... तुष्टिकरण का इस से भी ज्यादा घिनौना खेल ... दुनिया के किसी भाग में खेला जा सकता है....?????

जागो हिन्दुओं.... और, पहचानो अपने आपको ......

अन्यथा अभी तक तुम्हारा तो सिर्फ ऐतिहासिक धरोहर ही लूटा गया है..... .. कल तुम्हारे घर को लूटने की तैयारी है ....!

जय महाकाल...!!!


नोट : इस्लामिक मान्यता के अनुसार किसी भी स्थान अथवा महल में .... मनुष्यों का फोटो बनाना हराम है और उसे बुतपूजा माना जाता है.... जबकि, कुतुबमीनार के संलग्न चित्र में.... कुछ अप्सराओं की मूर्ति स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है...!!


माथे पर तिलक लगाने की परंपरा क्यों है ....?


क्या आप जानते हैं कि..... हमारे हिन्दू सनातन धर्म में ..... माथे पर तिलक लगाने की परंपरा क्यों है ....???????

दुखद है कि..... हम में से अधिकांश हिन्दुओं को ..... इसके कारण नहीं मालूम हैं .... और, लगभग सभी लोग इसे ..... आस्था एवं परंपरा से जोड़ते नजर आते हैं...!

सिर्फ इतना ही नहीं..... बल्कि, आज के अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े सेक्यूलर मानसिकता के लोग तो..... तिलक लगाने को अपनी .... सेक्यूलर छवि पर हमला मानते हैं ..... और, इसीलिए वे तिलक लगाने से यथासंभव परहेज भी करते हैं....!!

लेकिन.... यह जानकर आप सभी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा कि.....
माथे पर तिलक........... धार्मिक एवं आध्यात्मिक कारण से ज्यादा ........... वैज्ञानिक कारण से लगाए जाते हैं....!

असल में..... तिलक.... माथे पर.... दो भौहों के बीच लगाया जाता है .......
और...

वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि..... माथे पर ... हमारे दोनों भौहों के बीच के स्थान में ... ""एक बेहद महत्वपूर्ण तंत्रिका बिंदु"" (नर्व जंक्शन) ..... होता है....जो सीधे दिमाग से जुड़ा होता है...तथा, उसे 

""अध्न्या चक्र"" कहा जाता है ...!! (आयुर्वेद एवं एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति में इस चक्र के महत्व को समझाया गया है )

इसीलिए ....

उस ""अध्न्या चक्र"" के ऊपर कुमकुम अथवा चन्दन (जो कि ठंडा होता है ) ....... के तिलक लगाए जाते हैं ..... ताकि, उस स्थान से ऊर्जा के क्षय को रोका जा सके.... तथा, दिमाग की एकाग्रता को विभिन्न स्तरों पर नियंत्रित किया जा सके...!!


साथ ही.... आपने यह भी ध्यान दिया होगा कि..... तिलक लगाते समय .... स्वाभाविक रूप से उस स्थान पर ..... उंगली अथवा अंगूठे का हल्का दबाब पड़ता है..... जो , "अध्न्या चक्र" को हमेशा सक्रिय बनाए रखता है...!
आपको यह जानकार बेहद ख़ुशी होगी कि.....

जो बातें आज के वैज्ञानिक लाखों-करोड़ों रूपये खर्च करके ..... मालूम कर रहे हैं ... वो सभी ज्ञान हमारे पूर्वजों और ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों-लाखों साल पहले ही प्राप्त कर लिया था....!
परन्तु.... ये शुद्ध विज्ञान की बातें.... एक-एक कर सभी मनुष्यों को समझा पाना असंभव के हद तक कठिन था....

इसीलिए... हमारे ऋषि-मुनियों ने .... उसे आस्था से जोड़ते हुए ..... एक परंपरा का रूप दे दिया.....
ताकि... आने वाली पीढ़ी.... युग-युगांतर तक.... उनके प्राप्त किए गए ज्ञानों का लाभ उठा सके..... जिस तरह, आज हमलोग उठा रहे हैं...!!

जय महाकाल...!!!


बाल-विवाह की शुरुआत कैसे और क्यों हुई....?


बाल विवाह .... निश्चित रूप से हमारे सभ्य समाज में एक बदनुमा दाग है ....और, इसकी जितनी भी आलोचना की जाए कम ही है...!

और... ख़ुशी की बात है कि..... अब बाल-विवाह नामक कुरीति सरकार द्वारा प्रतिबंधित है .... और, वो होना भी चाहिए क्योंकि... बाल्यकाल में बच्चे ना तो शारीरिक और ना ही मानसिक रूप से .... शादी के लिए तैयार होते हैं...!!
लेकिन.... क्या आपने कभी सोचा है कि.... देवभूमि कहे जाने वाले हमारे हिंदुस्तान में ...... आखिर, बाल-विवाह की शुरुआत कैसे और क्यों हुई....?????

क्योंकि... जब हम अपने हिंदुस्तान की इतिहास की तरफ नजर दौड़ाते हैं तो..... हमें , रामायण में सीता स्वयंवर.... एवं , महाभारत काल में द्रौपदी स्वयंवर, आदि देखने को मिलते हैं....!

दरअसल इस.... ""स्वयंवर"" शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है..... ""स्वयं के लिए वर (पति) चुनना ....!
अर्थात.... हमारा इतिहास हमें यह साफ़ साफ़ बताता है कि..... प्राचीन भारत में ..... शादी के समय, लड़कियों की उम्र तो इतनी तो होती ही थी कि..... वे सही -गलत का फैसला कर सकें.... जिसके लिए जाहिर सी बात है कि ....... बालिग़ होना जरुरी है...!

फिर ऐसा अचानक में क्या हो गया कि....जिस हिन्दू समाज में ... लड़कियों के लिए वर चुनने के लिए.... स्वयंवर जैसी परिष्कृत व्यवस्था थी..... अचानक ही वो समाज ..... ""बाल-विवाह"" जैसी कुरीति में जकड गया....?????

असल में इसका उत्तर भी.... इतिहास में ही छुपा हुआ है.... जब ७८५ ईस्वी के उपरांत ..... मीर कासिम जैसे जेहादियों ने.... हमारे हिंदुस्तान पर हमला करना शुरू किया...!
मुस्लिम जेहादियों का सिर्फ दो ही काम था.............. हिंदुस्तान में लूटपाट करना ..... एवं, हिन्दू पुरुषों को क़त्ल करना तथा स्त्रियों का बलात्कार कर उसे बंधक बना लेना...!!

लेकिन... हिंदुस्तान में हिंदुस्तान में हिन्दुओं के बेहद मजबूत होने के कारण.... मुस्लिम अपने जिहाद में पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे थे..... और, हिन्दू राजाओं द्वारा वे बार-बार ..... कुत्तों की तरह खदेड़ दिए जा रहे थे...!
इसीलिए , वे लगभग पांच सौ वर्षों तक.... बाहर से आकर लूट-पाट करते रहे...!

परन्तु... १२०६ ईस्वी में पहली बार ..... मुहम्मद गोरी नामक जेहादी ने ... अपने लूले गुलाम .... कुतुबुद्दीन ऐबक को .... दिल्ली में स्थापित कर .... उसे हिंदुस्तान में जिहाद फ़ैलाने का जिम्मा दे दिया...!!
इसके बाद तो मानो.... हिंदुस्तान में जेहादियों की बाढ़ सी आ गयी...!

और.. लुटेरे बाबर से लेकर .... औरंगजेब तक ने .... हमारे हिंदुस्तान में जम कर उत्पात मचाया...!
मीर कासिम की ही तरह..... हर मुस्लिम जेहादियों ने... अपने तथाकथित बलात्कारी रसूल मुहम्मद के नक़्शे कदम पर चलते हुए..... हिन्दू पुरुषों को क़त्ल करने .... मंदिरों को अपवित्र कर उनमे मुर्दे वगैरह गाड़कर.... उसे मस्जिद बना देना...... तथा, स्त्रियों का बलात्कार कर उसे बंधक बनाने पर ...... ध्यान केंद्रित किया .... ( आज भी आप.... उस जिहाद का साक्षात रूप इराक में देख सकते हो )
लेकिन... जब मुस्लिमों ने हिंदुस्तान में ही रहकर .... जिहाद को फैलाना शुरू किया तो..... उन्होंने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया..... और, समाज सुधार के नाम पर ..... कुँवारी और विधवा स्त्रियों को अपनी प्राथमिकता में रखा ..... तथा, उन्ही के उद्दार करने के नाम पर....... उन्हें अपने हरम में लेकर जाने लगे...!
इसीलिए, इस विकट परिस्थिति से निपटने एवं स्वाभिमानी हिन्दुओं ने.... अपनी पुत्रियों की रक्षा के लिए...... बाल-विवाह का सहारा लिया.... ताकि, उसे विवाहित घोषित कर उसके मान-सम्मान की रक्षा की जा सके...!!

आश्चर्य की बात है कि..... लोग , बाल-विवाह को हिन्दू समाज की कुरीति बताने में तो आगे रहते हैं..... लेकिन, ये परंपरा हिन्दुओं को क्यों अपनानी पड़ी...... इस विषय में वे चर्चा तक नहीं करना चाहते ...!!
इसीलिए.... सच्चाई को जानो हिन्दुओं.....

क्योंकि... सच्चे इतिहास की जानकारी ही आगामी समय में..... भविष्य में उसकी पुनरावृति को रोक पाने में सक्षम होंगे...!!

जय महाकाल...!!!