Sunday 27 July 2014

जानिये मुसलमानों के दोगलेपन को


क्या आप जानते हैं कि..... मुस्लिम के तथाकथित रूप से पवित्र मक्का की मस्जिद .......अल हराम और उसके आसपास करीब 4,000 लाउड-स्पीकर लगाए गए हैं....ताकि, रमज़ान और हज के दौरान श्रद्धालु "सबसे बढ़िया" आवाज़ सुन सकें....!

मस्जिद के संचालन निदेशक .......फ़ारस अल-सादी के मुताबिक..... इस लाउड-स्पीकर की आवाज़ नौ किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकती है ....और, इस पर हवा का असर नहीं पड़ता यानी "ख़राब मौसम में भी आवाज़ बिलकुल साफ़ सुनाई देगी.".

इसके अलावा मक्का के घंटाघर पर........ हरी और सफ़ेद रोशनी लगाई गई है .....ताकि लोगों को नमाज़ के वक़्त का पता लग सके.

अरब न्यूज़ के मुताबिक 601 मीटर ऊंचा अबराज अल-बैत घंटाघर...... दुनिया में तीसरी सबसे ऊंची इमारत है..... जो किसी अन्य इमारत से जुड़ी हुई नहीं है. ....... और, इसकी रोशनी 30 किलोमीटर दूर तक देखी जा सकती है जिससे उन लोगों को मदद मिलती है .........."जिन्हें सुनने में दिक्कत होती है."

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खैर.... मुस्लिम अपने मक्का में लाउडस्पीकर लगाये या पीपड़ी.... इससे हमें कुछ लेना-देना नहीं है.... ना ही इसका हमें कोई दुःख है...!

लेकिन.... मेरा सवाल यह है कि.....

अगर , मुस्लिम अपने मक्का में ख़ुशी-ख़ुशी लाउडीस्पीकर लगाते हैं.... और, उस पर चढ़ कर दिन भर चिल्लाते रहते हैं ...

तो फिर.... उन्हें हमारे हिंदुस्तान के मंदिरों की घंटियों और लाउडस्पीकरों पर.... आपत्ति करने का क्या अधिकार है ....???????

क्या... हम हिन्दुओं को ... अब अपने मंदिरों में भजन-कीर्तन अथवा आरती ..... इस मुस्लिमों से पूछ कर करना होगा...??????

या फिर.... हम हिन्दू ..... अपने भजन-कीर्तन और लाउडस्पीकर ..... उनके मक्का में जाकर बजाएं....??????????

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जहाँ तक धार्मिक आस्था की बात है तो.....

क्या हम हिन्दुओं को भी इस बात का पूरा अधिकार नहीं होना चाहिए कि........

हम हिन्दू भी ... अपने पवित्र स्थलों ... जैसे कि.... अयोध्या , सोमनाथ और ज्योतिर्लिंगों के स्थान को...... मक्का और वेटिकन सिटी के ही तर्ज पर...... ईसाईयों और इन मलेच्छ मुस्लिमों से मुक्त रखें.... ताकि, उन जगहों की पवित्रता बानी रह सके....?????????

कभी इस पूरी पृथ्वी पर राज करने वाले हम गौरवशाली हिन्दू ..... क्या आज इतने निरीह हो चुके हैं कि.... धार्मिक आस्था के नाम पर ..... आज हमारे ही हिंदुस्तान में ...... हम हिन्दुओं के मंदिर से .... घंटी और लाउडस्पीकर तक उतरवा लिए जाएं....??????????

आखिर , इस सेक्यूलरता ने आजतक ....हम हिन्दुओं को दिया ही क्या है ....??????

रोज -रोज के दंगे.... अपने ही हिंदुस्तान चौबीसों घंटों इस्लामी आतंकवाद का खतरा ..... हमारा धार्मिक अपमान .... और, हमारे आस्था के साथ खिलवाड़ .....??????

सोचो.......... समझो और जागो हिन्दुओं.........

जय महाकाल...!!!

स्रोत : बीबीसी इंटरनेशनल


लिंक : http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2014/07/140714_mecca_mosque_loudspeaker_an.shtml?ocid=socialflow_facebook

शिव के 19 अवतार

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

इन दिनों भगवान शिव का प्रिय पवित्र सावन मास चल रहा है। ये बहुत ही उचित अवसर है, भगवान शिव के चरित्र, स्वरूप अवतारों के बारे में जानने का। पुराणों के अनुसार शिव का अर्थ ही है कल्याण स्वरूप कल्याण करने वाला। भगवान शिव सदैव अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं।

महादेव ने अनेक अवतार लेकर अपने भक्तों की रक्षा की है। शिवपुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। सावन के पवित्र महीने में हम आपको बता रहे हैं, भगवान शिव के 19 अवतारों के बारे में


1-
वीरभद्र अवतार

भगवान शिव का विवाह ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने शिव सती को निमंत्रित नहीं किया। भगवान शिव के मना करने के बाद भी सती इस यज्ञ में आईं और जब उन्होंने यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान होते देखा तो यज्ञवेदी में कूदकर उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया।

जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है-

क्रुद्ध: सुदष्टपुट: धूर्जटिर्जटां तडिद्वह्लिसटोग्ररोचिषम्।
उत्कृत्य रुद्र: सहसोत्थितो हसन् गम्भीरनादो विससर्ज तां भुवि॥
ततोऽतिकायस्तनुवा स्पृशन्दिवं।                  
श्रीमद् भागवत - 4/5/1

शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। बाद में देवताओं के अनुरोध करने पर भगवान शिव ने दक्ष के सिर पर बकरे का मुंह लगाकर उसे पुन: जीवित कर दिया।


ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

2- पिप्पलाद अवतार

मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि

पिप्पलाद मुनि ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनि ग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया।
श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। शिवपुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।

पिप्पलादेति तन्नाम चक्रे ब्रह्मा प्रसन्नधी:
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शिवपुराण शतरुद्रसंहिता 24/61


ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

3- नंदी अवतार

भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी 

इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी (बैल) कर्म का 

प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। इस अवतार की कथा इस प्रकार है

शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न 

करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की 

तपस्या की। तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान 

दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। 

शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस 

तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। 


ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

4- भैरव अवतार
 
शिवपुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तभी वहां तेजपुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध गया।

उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवां सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। 

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

5- अश्वत्थामा

महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम भगवान 

शंकर के अंशावतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर 

तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतीर्ण 

होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप 

में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही 

निवास करते हैं। इस विषय में एक श्लोक प्रचलित है-

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:

कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।

जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम ऋषि 

मार्कण्डेय ये आठों अमर हैं।

शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के 

किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

6- शरभावतार

भगवान शंकर का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार-

हिरण्यकाश्यपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकाश्यपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

7- गृहपति अवतार

भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। इसकी कथा इस प्रकार है


नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी 

पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने बहुत काल तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने 

पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की। पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि 

विश्वनार काशी गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की 

आराधना की। 

एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। मुनि ने बालरूपधारी शिव 

की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार 

लेने का वरदान दिया। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था। 

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध 

8- ऋषि दुर्वासा

भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के 

अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल 

पर्वत पर पुत्र कामना से घोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश 

तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोकी 

में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। 

समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए। विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति 

को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म 

लिया। शास्त्रों में इसका उल्लेख है-

अत्रे: पत्न्यनसूया त्रीञ्जज्ञे सुयशस: सुतान्। 

दत्तं दुर्वाससं सोममात्मेशब्रह्मïसम्भवान्॥         

-भागवत 4/1/15

अर्थ- अत्रि की पत्नी अनुसूइया से दत्तात्रेय, दुर्वासा और चंद्रमा नाम के तीन परम यशस्वी 

पुत्र हुए। ये क्रमश: भगवान विष्णु, शंकर और ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए थे।


ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

9- हनुमान

भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में 

भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। शिवपुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को 

अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर 

अपना वीर्यपात कर दिया। 

सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्तऋषियों 

ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में 

स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए। 

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

10- वृषभ अवतार

भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान 

शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को 

मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी। 

विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से 

पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषि मुनियों को लेकर शिवजी के 

पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर 

विष्णु पुत्रों का संहार किया।

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

11- यतिनाथ अवतार

भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने 

इस अवतार में अतिथि बनकर भील दंपत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दंपत्ति 

को अपने प्राण गंवाने पड़े। धर्म ग्रंथों के अनुसार अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-

आहुका भील दंपत्ति रहते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए। 

उन्होंने भील दंपत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की। आहुका ने अपने पति को 

गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुष बाण लेकर बाहर रात बिताने और यति 

को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा। 

इस तरह आहुक धनुष बाण लेकर बाहर चला गया। प्रात:काल आहुका और यति ने देखा कि 

वन्य प्राणियों ने आहुक को मार डाला है। इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए। तब आहुका ने 

उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक करें। अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और 

उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं। जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो 

शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।


ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

12- कृष्णदर्शन अवतार

भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार 

यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकु वंशीय श्राद्ध देव की 

नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ। विद्या-अध्ययन को गुरुकुल गए नभग जब बहुत 

दिनों तक लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया। नभग को जब 

यह बात ज्ञात हुई तो वह अपने पिता के पास गए। पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण 

ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके, उनके धन को प्राप्त करे। 

तब नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न 

कराया। अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ का अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए। उसी 

समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका 

अधिकार है। विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय 

कराने को कहा। नभग के पूछने पर श्राद्ध देव ने कहा-वह पुरुष शंकर भगवान हैं। यज्ञ में 

अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की। 


ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध

13- अवधूत अवतार

भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। धर्म ग्रंथों के 

अनुसार एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शंकरजी के दर्शनों  के 

लिए कैलाश पर्वत पर गए। इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर 

उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी 

वह मौन रहा। 

इस पर क्रुद्ध होकर इंद्र ने जैसे ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोडऩा चाहा, वैसे ही 

उनका हाथ स्तंभित हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की 

बहुविधि स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया। 

ये हैं शिव के 19 अवतार, वीरभद्र ने किया था सती के पिता का वध