Tuesday 8 July 2014

मिल गया महाभारत काल का पीपल का वृक्ष


सेक्यूलर और अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े लोग..... खुद को सर्वाधिक ज्ञानवान और बुद्धिमान 

साबित करते हुए..... अक्सर हम हिन्दुओं को ये समझाने का प्रयास करते हैं कि....

रामायण और महाभारत जैसी घटनाएं कभी हुई ही नहीं थी..... और, वे बस काल्पनिक 


महाकाव्य हैं...!

दरअसल... वे ऐसे कर के .... भगवान और कृष्ण के को काल्पनिक बताना चाहते हैं... और


साथ ही ये भी प्रमाणित करना चाहते हैं कि..... हम हिन्दू काल्पनिक दुनिया में जीते हैं...!

लेकिन.... हम हिन्दू भी हैं कि....

ऐसे सेक्यूलरों के मुंह पर तमाचा जड़ने के लिए..... कहीं कहीं से ..... सबूत जुगाड़ कर ही 


लाते हैं....!

जिन्होंने थोड़ी भी महाभारत पढ़ी होगी उन्हें वीर बर्बरीक वाला प्रसंग जरूर याद होगा....!

उस प्रसंग में हुआ कुछ यूँ था कि.....

महाभारत का युद्घ आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्घ में पाण्डवों के साथ 


थे....... जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है

लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी।

ऐसे समय में भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक ने..... अपनी माता को वचन दिया 


कि... युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा !

इसके लिए, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे।

परन्तु, भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे ...... ब्राह्मण का 


वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में गये।

श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि..... वह तीन वाण से 


भला क्या युद्घ लड़ेगा...?????

कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि ......उसके पास अजेय बाण है और, वह एक 


बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है ..तथा, सेना का अंत करने के बाद उसका बाण 

वापस अपने स्थान पर लौट आएगा।

इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि..... हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं... अगर, अपने बाण से 


उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि.... तुम एक बाण से युद्घ का 

परिणाम बदल सकते हो।

इस पर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके......भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया.

जिससे, पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया....

इसके बाद वो दिव्य बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा... क्योंकि, एक 


पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था...

भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्घ में विजय पाण्डवों की होनी 


चाहिए..... और, माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो 

अधर्म की जीत हो जाएगी।

इसलिए, इस अनिष्ट को रोकने के लिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की 


इच्छा प्रकट की....

जब बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया... तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया... 


जिससे बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है।

और, बर्बरीक ने ब्राह्मण से वास्तविक परिचय माँगा.....और, श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं।

सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह 


उनके विराट रूप को देखना चाहता है ....तथा, महाभारत युद्घ को शुरू से लेकर अंत तक 

देखने की इच्छा रखता है,,,,

भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर 


अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया... जहाँ से बर्बरीक के 

सिर ने पूरा युद्घ देखा।

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और, ये सारी घटना ........ आधुनिक वीर बरबरान नामक जगह पर हुई थी.... जो हरियाणा के 


हिसार जिले में हैं...!

अब ये .... जाहिर सी बात है कि .... इस जगह का नाम वीर बरबरान........ वीर बर्बरीक के नाम 


पर ही पड़ा है...!

आश्चर्य तो इस बात का है कि..... अपने महाभारत काल की गवाही देते हुए..... वो पीपल का 


पेड़ आज भी मौजूद है..... जिसे वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण भगवान के कहने पर... अपने वाणों से 

छेदन किया था... और, आज भी इन पत्तो में छेद है ( चित्र संलग्न)

साथ ही..... सबसे बड़ी बात तो ये है कि....... जब इस पेड़ के नए पत्ते भी निकलते है ......तो 


उनमे भी छेद होता है !

सिर्फ इतना ही नहीं.... बल्कि, इसके बीज से उत्पन्न नए पेड़ के भी पत्तों में छेद होता है...!

अब बोलो सेक्यूलरों ... लग गया ना तुम्हारे मुंह पर ढक्कन ...??????

जय महाकाल...!!!



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