Friday, 15 August 2014

मुसलमान को अपना भाई या दोस्त मत बनाना

  

आज हम हिंदुओं का हमारा परम पवित्र एवं आपसी विश्वास का प्रतीक ""रक्षाबंधन का त्योहार"" है !

परंतु , साथ ही .....हमारा परम पवित्र एवं आपसी विश्वास का प्रतीक ""रक्षाबंधन का त्योहार"" ...... मनहूस सेकुलर सुअरों को धर्मनिरपेक्षता का नगाड़ा..... जोर-शोर से बजाने का पसंदीदा त्यौहार "भी" है .

तथा.... आज मनहूस सेकुलर....... सेकुलरता का नगाड़ा बजाते हुए....... लोगों को बहकाने के लिये रानी कर्णवती और दिल्ली के बादशाह हुमायूँ को राखी भेजने का किस्सा ........नमक मिर्च लगाकर सुनाते जगह-जगह नजर जायेंगे......!

लेकिन ... क्या सच में आप जानते हैं कि ..... उस कहानी का सच क्या है....?????

दरअसल.... ये कलंक कथा है ..... एक धार्मिक हिन्दू महारानी के राखी पर अटूट विश्वास ..... और, उसके साथ मुस्लिमजनित विश्वासघात करता ..... तैमूरलंग के वंशज हुमायूँ का ....

आएँ .... आज उस कलंक गाथा की वास्तविकता से आपको परिचय करवाता हूँ....

हुआ कुछ यूँ था कि......... मालवा और गुजरात में राज्य कर रहा बहादुरशाह........ दिल्ली के मुग़ल बादशाह हुमायूँ का जानी दुश्मन था.... क्योंकि., बहादुरशाह ने हुमायूँ के जानी दुश्मनों को अपने राज्य में शरण दे रखी थी...... जिनमे प्रमुख था ..... इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ..... हुमायूँ की सौतेली बहन मासूमा सुल्तान के पति मोहम्मद जमाँ मिर्जा और हुमायूँ के खून का प्यासा बाबर का ही अपना सगा बहनोई मीर मोहम्मद मेंहदी ख्वाजा.... ( याद रखें कि मुस्लिमों में ये बहुत आम है )

इधर बहादुरशाह ने हुमायूँ से दुश्मनी के कारण ...हुमायूँ के सारे के सारे दुश्मनों को अपने पास बैठा रखे थे...

इस तरह ..... बहादुरशाह.......हुमायूँ का नम्बर एक का दुश्मन बन गया था....... क्योंकि, बहादुरशाह से ..... हुमायूँ की जान और राज-पाट के जाने का खतरा था...... इसलिये, हुमायूँ ...बहादुरशाह को किसी भी हालत में समाप्त करना चाहता था.... और, वो इसके लिए उचित मौके की तलाश में था.

सौभाग्य से .....इसी बीच उसे मौका मिल गया....!

क्योंकि .... जब बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर हमला किया और चित्तौड़ के किले को घेर लिया. .. तो, धर्मपरायण रानी कर्णवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर... उसे राखी भाई बना लिया और उस से सहायता करने की गुहार लगाई.

इस मौके को पाते ही....हुमायूँ ने.... जो पहले से बहादुरशाह के लिये घात लगाये था......मौके का फायदा उठाने की गरज से ... ये सोचा कि .... कि बहादुरशाह राजपूतों से उलझा है.... और, ऐसे में उस पर .....अचानक हमला कर दो और दुश्मन को खत्म कर दो.

और.... इसी इरादे से हुमायूँ दिल्ली से पूरे लाव-लश्कर के साथ चला............ कि कर्णवती की रक्षा के लिये.

यही कारण था कि..... हुमायूँ दिल्ली से चल तो दिया......लेकिन, रानी कर्णवती की राखी की लाज बचाने के स्थान पर वह रास्ते में डेरा ड़ालकर बैठ गया और .... बहादुरशाह के कमजोर होने का इंतज़ार करता रहा ....!

इधर ....चित्तौड़ की रानी ने उस हुमायूँ को ....सन्देश पर सन्देश भेजा......... लेकिन, हुमायूँ अपनी जगह से टस से मस नही हुआ... और, दूर में ही बैठा मौजमस्ती मनाता रहा क्योंकि अपनी बहन से ही शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाला......हुमायूँ क्या जाने राखी.... अथवा , अपनी बहन की अस्मिता को ...????

उसे तो सिर्फ मतलब था ...... अपने दुश्मन बहादुरशाह से. ......

इधर......बहादुरशाह ने रानी कर्णवती के चित्तौड़ किले को जीतकर..........उसे जी भर कर लूटा.....!

इस तरह..... रानी कर्णवती की राखी की लाज .........मुसलमान घुड़सवारों की टापों के नीचे कुचल गयी......

इसके बाद ..... जब बहादुरशाह .... चित्तौड़ को लूट कर जब जाने लगा तो...... हुमायूँ ने लूट का माल हड़पने तथा, कमजोर हो चुके बहादुरशाह का खत्म करने के लिए उसका गुजरात तक पीछा किया.

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इस तरह की एक दूसरी राखी........... भोपाल की रानी कमलावती ने........ दोस्त मोहम्मद को बाँधी थी कि .....वह उसकी राखी की लाज रखे और उसके पति के हत्यारे बाड़ी बरेली के राजा का वध करे.

और, दोस्त मोहम्मद ने बाड़ी बरेली के राजा का कत्ल कर भी दिया... जिसके बदले में रानी ने .....अपने इस राखी भाई को जागीर और बहुत सा धन दिया.

परन्तु..... धन और जागीर पाने के बाद और शक्तिशाली हो गये....... दोस्त मोहम्मद ने...... भोपाल की रानी और अपनी राखी बहन कमलावती का सफ़ाया कर ......पूरे भोपाल राज्य को ही हड़प लिया.

यही हकीकत है ..... इन ऐतिहासिक हिन्दु-मुस्लिम राखी भाई-बहनों की.....

जागो हिन्दू ... और, अपनी आँखें खोलो....

नहीं तो सब के सब .... बारी-बारी इसी तरह बेमौत मारे जाओगे....

जय महाकाल...!!!







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