दिवाली के दिन आमतौर पर सभी के घर पर पूजा होती है। इसलिए पंडितों का मिलना मुश्किल होता है। ऐसे में कई बार बिना पंडित के भी मां लक्ष्मी का पूजन करना होता है। पूजन से जुड़े कुछ काम ऐसे हैं जिन्हें करने पर ही पूजन पूर्ण माना जाता है व देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। पूजन में षोडशोपचार यानी 16 तरीकों का विशेष महत्व है।
शास्त्रों के अनुसार इस विधि में देवी या देवता को अतिथि मानकर सोलह वस्तुओं से उनका पूजन किया जाता है। पूजन में हम भगवान से संबंध स्थापित करते हैं। देवी व देवता को उपस्थित मानकर पूजा की जाती है। इस पूजा विधि का आरंभ भगवान के आवाहन से होता है। भगवान का आवाहन प्रतिमा या अन्य प्रतीक जैसे शालिग्राम, बाणेश्वर लिंग या सुपारी में किया जाता है। जो भी व्यक्ति इस विधि से देवी-देवताओं का पूजन करता है, उसके घर में सदैव लक्ष्मी का वास होता है।
पाद्य- भगवान के पैर धुलने की भावना से जल चढ़ाया जाता है।
अर्घ्य- केशर, चंदन, अक्षत यानी बिना टूटे चावल, फूल मिले जल से भगवान का स्वागत किया जाता है।
आचमन- भगवान को शुद्धि के लिए हाथ पर जल दिया जाता है।
स्नान- भगवान को शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।
वस्त्र- स्नान के बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। प्रतीक रूप में पूजा का धागा भी दिया जाता है।
आभूषण- भगवान को उनके स्वरूप के अनुरूप गहने व शस्त्र चढ़ाए जाते हैं।
गंध- भगवान का गंध द्वारा सत्कार करते हैं व उनके शरीर पर गंध लगाई जाती है।
अक्षत- बिना टूटे चावल पूजा कर्म के अखंड फल के प्रतीक के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
पुष्प- भगवान को उनकी रुचि के ताजे फूल व मालाएं भेंट की जाती हैं।
धूप- सुगंधित धूप से भगवान को प्रसन्न किया जाता है।
दीप- दीप जलाकर भगवान को ज्योति दिखाई जाती है। भावना होती है कि दीपक के समान प्रकाशवान बनने की।
नैवेद्य- खाने की शुद्ध वस्तुएं फल आदि का भोग लगाया जाता है।
आचमन- तीन बार जल देकर भगवान से शुद्धि की प्रार्थना ही जाती है।
तांबुल- पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि मुख शुद्धि के रूप में प्रदान की जाती है। भेंटस्वरूप दक्षिणा भी दी जाती है।
स्तव प्रार्थना- स्तुति कर दु:ख-विघ्न को समाप्त करने व सर्व कल्याण की प्रार्थना भगवान से जाती है।
आरती नमस्कार- षोडशोपचार पूजा का समापन आरती, मंत्र पुष्पांजलि व नमस्कार से होता है। आरती भगवान के स्वरूप के स्मरण के लिए है। अपनी इच्छाएं पुष्पों के साथ भगवान को समर्पित करना पुष्पांजलि है। नमस्कार के रूप में भगवान को अपना अहंकार समर्पित करना चाहिए।
रिचार्ज करता है षोडशोपचार
यह पूजा करने से हमारा भगवान से जुड़ाव होता है। इन विधियों द्वारा देवता का पूजन करने से हमारी आत्मशुद्धि होती है जिससे हमें ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा से हमें सद्गुण और बेहतर आचार-विचार प्राप्त होते हैं। इस तरीके से हम षोडशोपचार से हम रिचार्ज होते हैं।
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