कान्वेंट स्कूल का सच:!!
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करीब २५०० सालो से यूरोप में बच्चे पालने की परंपरा नही थी . बच्चा पैदा होते ही उसे टोकरी में रख कर लावारिस छोड़ दिया जाता था . अगर किसी चर्च के ब्यक्ति की नजर पड़े तो वह बच जाता था ,नही तो उसे जानवर खा जाते थे |
कोन्वेंट का सच :
जिस यूरोप को हम आधुनिक व खुले विचारो वाला मानते हैं, आज से ५०० वर्ष पहले वहाँ सामान्य व्यक्ति 'मैरेज' भी नहीं कर सकता था क्योंकि उनके बहुत बड़े 'दार्शनिक' अरस्तू का मानना था की आम जनता मैरेज करेगी तो उनका परिवार होगा, परिवार होगा तो उनका समाज होगा, समाज होगा तो समाज शक्तिशाली बनेगा,
समाज शक्ति शाली हो गया तो राजपरिवार के लिए खतरा बन जाएगा । इसलिए आम जनता को मैरेज न करने दिया जाय । बिना मैरेज के जो बच्चे पैदा होते थे, उन्हें पता न चले की कौन उनके माँ-बाप हैं, इसलिए उन्हें एक सांप्रदायिक संस्था में रखा जाता था, जिसे वे कोन्वेंट कहते थे . उस संस्था के प्रमुख को ही माँ - बाप समझे इसलिए उन्हें फादर, मदर, सिस्टर कहा जाने लगा ।
यूरोप के दार्शनिक रूसो के अनुसार बच्चे पति - पत्नी के शारीरिक आनंद में बाधक है इसलिए इनको रखना अच्छा नही है क्यूंकि शारीरिक आनंद ही सब कुछ होता है |
और एक दशानिक प्लेटो के अनुसार हर मनुष्य के जीबन का आखरी उद्येश्य है शारीरिक आनंद की प्राप्ति , और बच्चे अगर उसमे रुकावट है तो उसको रखना नही छोड़ देना है |
ऐसे ही दूसरे दार्शनिक जैसे दिकारते , लेबेनित्ज़ , अरस्तु सबने अपनी बच्चो को लावारिस छोड़ा था |
ऐसे छोड़े हुए बच्चो को रखने के लिए यूरोप के राजाओ ने या सरकारों ने कुछ संस्थाए खड़ी किया जिनको CONVENT कहा जाता है | CONVENT का माने लावारिस बच्चो का स्कूल | CONVENT में पड़ने वाले बच्चो को माँ बाप का अहसास कराने के लिए वहाँ पर पढ़ने वाले जो अध्यापक होते है उनको मादर फादर, ब्रादर और सिस्टर कहते है |
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