Friday, 17 October 2014

आठ लक्ष्मी और पूजा के मंत्र

आठ लक्ष्मी और पूजा के मंत्र, इनकी कृपा से दूर रहता है बुरा समय

सनातन धर्म में महालक्ष्मी के आठ स्वरूप माने गए हैं। इन्हें अष्ट महालक्ष्मी कहा गया है। इनका ध्यान और पूजन जीवन में सफलता के गुण विकसित करता है। अष्ट महालक्ष्मी की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो सकते हैं। यहां जानिए अष्ट महालक्ष्मी के स्वरूप और उनके पूजन मंत्र...

1. द्विभुजा लक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की दो भुजाएं हैं। हाथ में कमल एवं समस्त आभूषणों से विभूषित दिव्य स्वरूपा लक्ष्मी को भगवान श्रीहरि के समीप प्रतिष्ठित कर उनका ध्यान निम्न श्लोक से करते हैं-

हरे: समीपे कर्तव्या लक्ष्मीस्तु द्विभुजा नृप।
दिव्यरूपाम्बजुजकरा सर्वाभरणभूषिता॥

2. गजलक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की चार भुजाएं मानी गई हैं। वे श्वेत यानी सफेद, शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं और सिंहासन पर विराजमान रहती हैं। सिंहासन सुंदर कर्णिका से युक्त अष्टदल अर्थात आठ पंखुड़ियों वाले कमल के फूल वाला है। उनके दाहिने हाथ में कमल का फूल रहता है और बाएं हाथ में अमृत से भरा कलश। दो हाथों में बेल और शंख धारण किए हुए। उनके पार्श्व भाग में दो गजराज यानी हाथी और देवी के मस्तक पर कमल का फूल विभूषित रहता है। गजलक्ष्मी का ध्यान इस मंत्र से करें-

लक्ष्मी शुक्लाम्बरा देवी रूपेणप्रतिमा भुवि।
पृथक् चतुर्भुजा कार्या देवी सिंहासने शुभा॥

सिंहासनेऽस्या: कर्तव्यं कमलं यारुकर्णिकम्।
अष्टïपत्रं महाभागा कर्णिकायां सुसंस्थिता॥

विनायकवदासीना देवी कार्या चतुर्भुजा।
बृहन्नालं करे कार्ये तस्याश्च कमलं शुभम्॥

दक्षिणे यादवश्रेष्ठï केयूरप्रांतसंस्थितम्।
वामेऽमृतघट: कार्यस्तथा राजन् मनोहर:

तस्या अन्यौ करौ कार्यौ बिल्वशङ्खधरौ द्विज।
आवर्जितकरं कार्ये तत्पृष्ठे कुञ्जरद्वयम्॥

देव्याश्च मस्तके कार्ये पद्मं चापि मनोहरम्।



3. महालक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी सभी आभूषणों से भूषित रहती हैं। उनके दाहिनी ओर के निचले हाथ में पात्र और उससे ऊपर वाले हाथ मे गदा रहती है। बाएं भाग के निचले हाथ में श्रीफल ऊपर वाले हाथ में गदा रहती है। इनका ध्यान इस मंत्र के साथ किया जाता है-

लक्ष्मीवत्सा तदा कार्या सर्वाभरणभूषिता॥
दक्षिणाध:करे पात्रमूर्ध्वे कौमोदर्की तत:

वामोर्ध्वो खेटकं चैव श्रीफलं तदध:करे॥
बिभ्रती मस्तके लिङ्ग  पूजनीया विभूतये।

4. श्रीदेवी

इस रूप में भगवती के दाहिने एवं बाएं हाथ में पाश, अक्षमाला, कमल और अंकुश धारण किए हुए कमल के आसन (पद्मासन) पर विराजमान रहती हैं। उनका ध्यान इस मंत्र से किया जाता है-

पाशाक्षमालिकाम्भोजसृणिभिर्वामसौम्ययो:
पद्मासनस्थां ध्यायेत श्रियं त्रेलोक्यमातरम्॥


5. वीरलक्ष्मी

ये भी पद्मासन अर्थात कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके दोनों हाथों में कमल रहते हैं और नीचे के हाथों में वरद और अभयमुद्रा सुशोभित होती हैं। इनका ध्यान इस मंत्र से करें-

वीर लक्ष्मीरितिख्याता वरदाभयहस्तिनी।
उध्र्वपद्मद्वयौ हस्तौ तथा पद्मासने स्थिता॥

6. द्विभुजा वीरलक्ष्मी

इस रूप में महालक्ष्मी का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में तथा बायां हाथ वरद मुद्रा में रहता है। इनकी जांघें कमलदल के समान हैं। इनका ध्यान इस मंत्र से करें-

दक्षिणे त्वभयं बिद्धि ह्युत्तरे वरदं तथा।
ऊरू पद्मदलाकारौ वीरश्रीमूर्तिलक्षणम्॥

7. अष्टभुजा वीरलक्ष्मी

इनके हाथ पाश, अंकुश, अक्ष सूत्र, वरद मुद्रा, अभय मुद्रा, गदा, कमल और पात्र से युक्त रहते हैं। इनका ध्यान इस तरह किया जाता है-

पाशांकुशाक्षसूत्रवराभयगदापद्मपात्रहस्ता कार्या।

8. प्रसन्न लक्ष्मी

इस रूप में लक्ष्मीजी की आभा स्वर्ण के समान तेजस्वी है। ये सुनहरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं तथा समस्त आभूषणों से सुशोभित हैं। इनके हाथों में बिजौरा, नीबू, स्वर्णघट और स्वर्णकमल रहते हैं। ये समस्त जीवों की माता हैं और भगवान विष्णु के बाएं अंग में स्थित रहती हैं। इनका ध्यान ऐसे करें-

वंदे लक्ष्मीं यपरशिवमयीं शुद्धजाम्बूनदाभां।
तेजोरूपां कनकवसनां सर्वभूषोज्ज्वलाङ्गीम्॥

बीजापूरं कनककलशं हेमपद्मं दधानां-
माद्यां शक्तिं सकलजननीं विष्णुवामाङ्कसंस्थाम्॥






1 comment:

  1. धन की देवी लक्ष्मी जी हैं। धन के विना संसार का कोई सुख सम्भव नहीं। कहा जाता कि, वैसे तो संसार में अनेक प्रकार के दुःख हैं। लेकिन, दारिद्र्य दुःख से बढ़कर कोई बड़ा दुःख नहीं है। दारिद्र्य निवारण के लिए लक्ष्मी के आठ स्वरुप की पूजा अर्चना फलदायी सिद्ध होता है।

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