कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 11 अक्टूबर, शनिवार को है। इसे करक चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं दिन भर उपवास रख कर शाम को भगवान श्रीगणेश की पूजा करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के दर्शन करती हैं और उसके बाद ही भोजन करती हैं। इस बार करवा चौथ पर सिद्धि नामक योग बन रहा है। यह योग महिलाओं को समृद्धि प्रदान करने वाला है।
क्यों खास है ये योग
ज्योतिष के अनुसार 11 अक्टूबर को सुबह 10.18 बजे चतुर्थी लग जाएगी। चूंकि करवा चौथ व्रत में चंद्र व्यापानी तिथि का महत्व है। इसलिए शाम को चंद्रोदय के समय चतुर्थी में व्रत श्रेष्ठ रहेगा। इस दिन सुबह 6.26 बजे से सिद्धि योग शुरू होगा, जो सिद्धि प्रदाता एवं समृद्धि कारक रहेगा।
धन लाभ व सुख मिलता है चंद्रमा के पूजन से
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार करवा चौथ का व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूर्ण होता है। करवा चौथ पर चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में होता है एवं रात 8 बजे के बाद ही उदय होता है। अपनी उच्च राशि में होने से यह पूर्ण प्रभावकारी तो होता ही है साथ ही अपने पूर्ण उच्चांश तीन डिग्री के लगभग होता है।
कुंडली में चंद्रमा उदयकालीन होने से उस समय लग्न में उच्च का होता है। ऐसे समय में ही चंद्रमा को अध्र्य देने का नियम बनाया गया है। धन एवं सुख की प्राप्ति का कारक भी चंद्रमा ही है। अपनी उच्च राशि में एवं उदयकालीन होने से इस समय चंद्रमा का दर्शन करने व अर्घ्य देने से धन लाभ एवं सुख की प्राप्ति होती है। इन विशेष योगों में उदय चंद्रमा पूर्ण आरोग्यता प्रदान करता है।
करवा चौथ व्रत की संपूर्ण विधि व पूजन के शुभ मुहूर्त
करवा चौथ व्रत की विधि इस प्रकार है-
करवा चौथ के दिन सुबह स्नान करके अपने पति की लंबी आयु, बेहतर स्वास्थ्य व अखंड सौभाग्य के लिए संकल्प लें और यथाशक्ति निराहार रहें। शाम के समय पूजन स्थान पर एक साफ लाल कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय व भगवान श्रीगणेश की स्थापना करें। पूजन स्थान पर मिट्टी का करवा भी रखें। इस करवे में थोड़ा धान व एक रुपए का सिक्का रखें। इसके ऊपर लाल कपड़ा रखें। सभी देवताओं का पंचोपचार पूजन करें।
लड्डुओं का भोग लगाएं। भगवान श्रीगणेश की आरती करें। जब चंद्रमा उदय हो जाए तो चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। इसके पश्चात अपने पति के चरण छुएं व उनके मस्तक पर तिलक लगाएं। पति की माता (अर्थात अपनी सासूजी) को अपना करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो परिवार की किसी अन्य सुहागन महिला को करवा भेंट करें। इसके पश्चात परिवार के साथ भोजन करें।
पूजा का शुभ मुहूर्त
- शाम 05 बजकर 52 मिनट से 07 बजकर 07 मिनट तक। चंद्रोदय का स्टैंडर्ड टाइम रात 08 बजकर 34 मिनिट (अलग-अलग शहरों में चंद्रोदय का समय भिन्न होगा।)
जानिए चतुर्थी तिथि का महत्व
शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान श्रीगणेश हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि ने भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए तप किया था एवं चंद्रोदय के समय उनका दर्शन प्राप्त किया था। तब प्रसन्न होकर भगवान श्रीगणेश ने चतुर्थी तिथि को वर दिया था कि तुम मुझे सदा प्रिय रहोगी और तुमसे मेरा वियोग कभी नही होगा। चतुर्थी तिथि के दिन जो महिलाएं व्रत रख मेरा पूजन करेंगी, उनका सौभाग्य अखंड रहेगा और कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होगी।
शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मास की दोनों चतुर्थी तिथि के दिन व्रत रख भगवान श्रीगणेश का पूजन करना चाहिए। यदि ये संभव न हो तो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (करवा चौथ) तिथि को विधि-विधान पूर्वक व्रत रख श्रीगणेश का पूजन करने से पूरे वर्ष की चतुर्थी तिथि के व्रतों का फल प्राप्त होता है। जिस तरह चतुर्थी तिथि का श्रीगणेश से कभी वियोग नही होता, उसी प्रकार इस तिथि के दिन व्रत कर श्रीगणेश का पूजन करने से स्त्रियों का अपने पति से कभी वियोग नही होता ।
करवा चौथ की कथा
करवा चौथ व्रत की कथा का उल्लेख श्रीवामन पुराण में है, जो इस प्रकार है-
किसी समय इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी लीलावती से उसके सात पुत्र और वीरावती नामक एक पुत्री पैदा हुई। वीरावती के युवा होने पर उसका विवाह विधि-विधान के साथ कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई, तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ बड़े प्रेम से करवा चौथ का व्रत शुरू किया, लेकिन भूख-प्यास से पीडि़त होकर वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई व्याकुल हो गए और इसका उपाय खोजने लगे।
उन्होंने अपनी लाड़ली बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय निकलने की सूचना दी, तो उसने विधिपूर्वक अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। ऐसा करने से उसके पति की मृत्यु हो गई। अपने पति के मृत्यु से वीरावती व्याकुल हो उठी। उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात्रि में इंद्राणी पृथ्वी पर विचरण करने आई। ब्राह्मण पुत्री ने उससे अपने दु:ख का कारण पूछा, तो इंद्राणी ने बताया- हे वीरावती। तुमने अपने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत किया था, पर वास्तविक चंद्रोदय के होने से पहले ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मर गया।
अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करो। मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी। वीरावती ने बारह मास की चौथ सहित करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधानानुसार किया, तो इंद्राणी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रसन्न होकर चुल्लू भर पानी उसके पति के मृत शरीर पर छिड़क दिया। ऐसा करते ही उसका पति जीवित हो उठा। घर आकर वीरावती अपने पति के साथ वैवाहिक सुख भोगने लगी। समय के साथ उसे पुत्र, धन, धान्य और पति की दीर्घायु का लाभ मिला।
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