
आज मुल्लों का एक तथाकथित त्योहार बकरीद है....
जिसे ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है....!
यह जानने योग्य बात है कि....अरबी में ईद-उल-अज़हा का मतलब
....."कुर्बानी की ईद" होती है...!
और ... यह
"कुर्बानी की ईद".......रमजान की समाप्ति के लगभग 70
दिनों बाद मनाया जाता है .
इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम ( जो कि कभी हुआ था या नहीं, यही संदिग्ध है) ने अपने पुत्र हजरत इस्माइल (जो कि हजरत इब्राहिम के सबसे अज़ीज़ थे) को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे....
तो अल्लाह ने उसके पुत्र को जीवनदान दे दिया......
जिसकी याद में ये लोग.....
बकरीद के दिन अपनी सबसे प्रिय निशानी की कुर्बानी देकर मनाते हैं|
खैर.... ये मुस्लिमों की मान्यता है....
और, इब्राहिम कभी हुए थे अथवा नहीं...
इससे हमें कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए...!
लेकिन.... हजरत इब्राहिम और बकरीद की कहानी पढ़ने के बाद
.... कन्फूजन घटने के बजाए .... बढ़ ही गया ...
और , मुझे समझ में ये नहीं आने लगा कि.....
1 ) ये उनका कैसा अल्लाह है
... जो कुर्बानी .... अर्थात , खून.... और, प्राणियों को खून में लथपथ तड़पता देखकर खुश होता है.... ?????
क्योंकि...
मेरी जानकारी के हिसाब से सभी धर्मों के भगवान दयालु होते हैं
..... और, सभी प्राणियों की रक्षा करना उनका कर्तव्य होता है...
तथा..... शैतान अथवा राक्षस प्रवृति के लोग ही.....
खून....
और, प्राणियों को खून में लथपथ तड़पता देखकर खुश हो सकता है...!
फिर... वे ही बताये कि...
उनका अल्लाह भगवान है या शैतान...?????
2) अगरचे...
एकबारगी
.... मुस्लिमों के धार्मिक भावना का आदर करते हुए .... उनकी इस बेढंगी कहानी को मान भी लिया जाए तो भी.....
ये समझ से बाहर की बात है कि.....
जब उनके तथाकथित अल्लाह ने.........
हजरत इब्राहिम के पुत्र से पहले कुर्बान किये गए सारे जानवरो को अस्वीकार्य कर.........
उनसे उनके पुत्र की कुर्बानी मांगी
......जिसे हजरत इब्राहिम ने अपने पुत्र हजरत इस्माइल जो कि ...... उनके सबसे अजी़ज थे को कुर्बान कर पूरा किया .......और, इस कुर्बानी से खुश होकर उन्हें अल्लाह ने जीवनदान दिया .....
तो, फिर उसकी जगह पर
..... मासूम जानवरों कुर्बानी क्यों और कैसे तथा किसके कहने पर शुरू हो गयी...???????
3) या तो सामान्य ज्ञान की बात है कि......
जो जानवर खासकर कुर्बानी के लिए खरीदा गया हो
......वो, किसी के दिल अजीज (प्यारा ) कैसे हो सकता है..... जबकि... उनकी कहानी के अनुसार तो मुस्लिमों को इस दिन.... अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करनी चाहिए....????
तो .... अपने सबसे प्यारी चीज के बदले....
एक अनजान जानवर की कुर्बानी देकर
.... ये मुस्लिम अपने तथाकथित अल्लाह के साथ ""धोखाधड़ी"" कैसे नहीं कर रहे हैं....?????
4) हमारे हिन्दू सनातन धर्म में
.........हम हिन्दू दशहरे में रावण का पुतला बना कर एवं उसका वध कर उस जीत को याद करते हैं ... ना कि.... उसके जगह कोई जानवर का वध कर उस याद को ताजा करते हैं ?
उसी प्रकार
....हम होली में भी लकड़ी के बीच .......किसी जानवर को होलिका बना कर नही डालते...!
फिर मुस्लिमों द्वारा
....प्रतीकात्मक कुर्बानी के स्थान पर
....निर्दोष जानवरों की कुर्बानी किस आधार पर उचित होनी चाहिए....????
5) और, अंत में
....
सबसे बड़ा सवाल ये है कि.......
जब मुस्लिमों को ये पता है कि
......उनके द्वारा कुर्बान किया गया चीज़....... उन्हें आशीर्वाद के रूप में वापस मिल सकती है......
तो, मुस्लिम अपने सबसे प्रिय चीज को ही कुर्बान कर
....अपने तथाकथित अल्लाह की नज़र में अपनी जगह क्यों नहीं बनाते हैं ....????
और, अगर उनके अल्लाह ने उन्हें
...वो चीज वापस किया तो आशीर्वाद समझ अपनी कुर्बानी को सफल समझें....... वरना अस्वीकार होने के कारण गम मनाये....?????
कहीं ऐसा तो नहीं है कि.....
मुस्लिमों को भी ये बात मालूम है कि.....
अल्लाह का कोई अस्तित्व ही नहीं है....
और, उनके नाम पर कुर्बान की गई कोई भी चीज वापस आने वाली है नहीं....
इसीलिए....
वे भी धर्म के नाम लोगों को चूसिया बनाकर सिर्फ खून-खराबा को बढ़ावा दे रहे हैं
..... तथा, अपने बच्चों को खून दिखलाकर .... भविष्य के जेहादी एवं आतंकी बना रहे हैं ....??????
जय महाकाल...!!!
नोट : मेरे इस लेख पर जबाब देने के लिए सभी मुस्लिम और उलेमा सादर आमंत्रित हैं
.... लेकिन, कृपया भाषा की मर्यादा बनाये रखें...
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