Saturday, 11 October 2014

करवाचौथ की शाम छलनी से क्यों देखते है चांद को?

करवाचौथ में तब से छलनी से चांद देखा जाने लगा

करवाचौथ की शाम सुहागन स्त्रियां छलनी से चांद देखकर व्रत खोलती हैं। इसलिए अमीर हो या गरीब सभी व्रत रखने वाली महिलाएं इस अवसर पर नई छलनी खरीदती हैं। व्रत की शाम छलनी की पूजा करके चांद को देखते हुए प्रार्थना करती हैं कि उनका सौभाग्य और सुहाग सलामत रहे।

करवाचौथ में छलनी के महत्व के पीछे एक पैराणिक कथा है। एक पतिव्रता स्त्री जिसका नाम वीरवती था इसने विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा। लेकिन भूख के कारण इसकी हालत खराब होने लगी।

भाईयों से बहन की यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी। इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई।


करवाचौथ में तब से छलनी से चांद देखा जाने लगा

वीरवती को जब पति की मृत्यु की सूचना मिली तो वह व्याकुल हो उठी। वीरवती को पता चला कि उसके भाइयों ने जिसे चांद कहकर व्रत खोलवा था वह चांद नहीं छलनी में चमकता दीप था।

असली चांद को देखे बिना व्रत खोलने के कारण ही उसके पति की मृत्यु हुई है। वीरवति ने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया बल्कि उसके शव को सुरक्षित अपने पास रखा और अगले वर्ष करवाचौथ के दिन नियम पूर्वक व्रत रखा जिससे करवामाता प्रसन्न हुई। वीरवती का मृत पति जीवित हो उठा।

सुहागन स्त्रियां इस घटना को हमेशा याद रखें। कोई छल से उनका व्रत तोड़ दे, इसलिए स्वयं छलनी अपने हाथ में रखकर उगते हुए चांद को देखने की परंपरा शुरू हुई। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सिखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा सके।

करवाचौथ में करवा का क्या महत्व है?

करवाचौथ में सबसे अहम करवा होता है। करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियां करवा की पूजा करके करवा माता से प्रार्थना करती है कि उनका प्रेम अटूट हो। पति-पत्नी के बीच विश्वास का कच्चा धागा कमजोर हो पाए।

इसके लिए मिट्टी के बरतन को प्रतीक चिन्ह के रूप में प्रयोग किया जाता है, क्योंकि मिट्टी के बर्तन को ठोकर लग जाए तो चकनाचूर हो जाता है, फिर जुड़ नहीं पाता है। इसलिए हमेशा यह प्रयास बनाए रखना चाहिए कि पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास को ठेस नहीं पहुंचे।

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