Monday, 6 October 2014

भविष्य में होने वाली घटनाओं को पहले से जानना चाहते हैं ?

इतना आसान है भविष्य देख पाना

अभी भले ही उस पत्थर का पता चलता हो जिससे पांच मिनट के भीतर ही ठोकर लगने वाली है, पर चाहें तो सिर्फ छह सप्ताह बाद साल भर बाद का भविष्य इस तरह दिखाई देने लग सकता है, जैसे किसी ने पर्दे पर चलने वाली फिल्म को तेजी से घुमा दिया हो। इतनी तेजी से कि तीन घंटे तक चलने वाली फिल्म पंद्रह मिनट में ही पूरी दिखाई दे जाए।

काश भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास समय से पहले ही हो जाए तो नब्बे प्रतिशत समस्याएं आसान हो जाएं। आर्ष विद्या प्रचार संस्थान के स्वामी धर्मानंद सरस्वती का कहना है कि भविष्य का आभास नहीं होना ईश्वर का अनुग्रह है। अगर यह हर किसी को होने लगे तो बहुत संभव है कि तमाम लोग दुनिया के रंगमंच पर अपनी भूमिका ही करना चाहें।

भविष्य में झांकने की संभावना के बारे में बताते हुए उत्तरकाशी के पास आर्षविद्या का अध्ययन कर लौटे स्वामी धर्मानंद का कहना है कि यह शक्ति हाथ में फूल पकड़ने और उससे सुवासित हो उठने की तरह आसान है।


समय के गर्भ में भी झांका जा सकता है?

साधना से पहले सिद्धि के बारे में बताते हुए स्वामीजी ने कहा कि दस मीटर ऊंची किसी मीनार या इमारत के ऊपरी तल पर बैठ कर तीन किलोमीटर दूर से रही गाड़ी के बारे में सहज ही बताया जा सकता है कि आधा घंटा बाद यहां से एक गाड़ी गुजरने वाली है।

उसका रंग और आकार प्रकार भी बताया जा सकता है। उस मीनार या बहुमंजिला इमारत के नीचे खड़े व्यक्ति के लिए यह बात भविष्यवाणी हो सकती है। पर दस मीटर की ऊंचाई पर बैठे व्यक्ति के लिए तो यह स्थिति आंखों देखी घटना की तरह है।

अब सवाल यह है कि स्थान की तरह क्या समय के गर्भ में भी झांका जा सकता है। स्वामी धर्मानंद कहते हैं कि समय और देश (स्थान) सुनने समझने में भले ही अलग लगते हों पर वास्तव में दोनों ही एक है।

शरीर की पहुंच से बाहर की घटनाएं दिखाई देने लगती हैं

शरीर की पहुंच से बाहर की घटनाएं दिखाई देने लगती हैं

देश की सीमा को पार करें तो काल का भी अतिक्रमण हो जाता है। इस अतिक्रमण के लिए ध्यान, चित्त की एकाग्रता और अपने आपको खास तरह से साधने प्रशिक्षित करने की जरूरत है।

खुद को प्रशिक्षित करने की तकनीक भी कहानी की तरह सबके सामने उजागर की जा सकती है। पर इससे कोई लाभ नहीं होगा। क्योंकि इस तकनीक और विधि को साधने के लिए जिस साधना की जरूरत है, वह मन और शरीर को एक दूसरे से अलग करती है।

मन को अलग करने का अभ्यास जैसे जैसे सुदृढ़ होता जाता है, व्यक्ति को अपने शरीर की पहुंच से बाहर की चीजें, घटनाएं और प्रवृत्तियां भी दिखाई देने लगती है।

इस तकनीक की विधि और प्रक्रिया की समझ या अभ्यास के बाद व्यक्ति आसानी से किताब के किसी भी पन्ने पर चले जाने की तरह भविष्य के गर्भ में झांक सकता है। यह बात अलग है कि उस स्थिति में पहुंचने के बाद वह अनागत को जानना चाहेगा भी या नहीं।

source-http://www.amarujala.com/

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