Sunday 21 September 2014

नवरात्र कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

कलश पूजन विधि

दुर्गा सप्तशती के दुर्गा महात्म्य में लिखा है कि जब असुरों के अत्याचार बढ़ने लगे, तो उनसे छुटकारा पाने के लिए सभी देवताओं ने मां शक्ति की उपासना की। देवी ने प्रसन्न होकर चैत्र तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से दशमीपर्यंत देवी पूजन तथा व्रत का विधान बताया। उसी दिन से नवरात्रि का उत्सव मनाने की परंपरा का प्रचलन हुआ। 

नवरात्रि पूजन की शुरुआत किस प्रकार से करनी चाहिए
इसके क्या नियम हैं? आइए संक्षेप में जानें:

घट पूजन विधि

आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। यदि ब्रह्म मुहूर्त में संभव हो, तो यथासंभव प्रात:काल में स्नान करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर मिट्टी से वेदी बनाएं। उस वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोना चाहिए। उसी वेदी पर या उसके समीप ही पृथ्वी का पूजन करें।शास्त्रों में कहा गया है कि इस पूजित स्थान पर सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करना चाहिए।

कलश में रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और कलश के गले में मौलि लपेटें। कलश स्थापित किए जाने वाली भूमि अथवा चौकी पर रोली या हल्दी से अष्टदल कमल बनाएं। तत्पश्चात उस पर कलश स्थापित करें। कलश में जल भरें। जल में चंदन, पंच-पल्लव, दूर्वा, पंचामृत, सुपारी, साबुत हल्दी, कुश, गोशाला या तालाब की मिट्टी डालें। तत्पश्चात कलश को वस्त्र से अलंकृत करें। इसके बाद कलश पर चावल या जौ से भरे पात्र स्थापित करें। अब उस पर लाल वस्त्र लपेटे हुए नारियल को रखें।



कलश पर नारियल का महत्व और प्रभाव

सामान्यतौर पर लोग कलश पर खड़े नारियल की स्थापना करते हैं, परंतु यह शास्त्र सम्मत नहीं है।  इससे हमें पूर्णफल की प्राप्ति नहीं होती।

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है

"अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। 
प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं"

अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है।

इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

मां दुर्गा और अन्य देवताओं की पूजा विधि

मां दुर्गा और अन्य देवताओं की पूजा विधि

कलश स्थापना के बाद गणेश पूजन करें। तत्पश्चात वेदी के किनारे पर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। 
इसके लिए आपको चाहिए कि सबसे पहले आसन पर बैठकर निम् मंत्र को 

` केशवाय नम:, 

माधवाय नम:, 

नारायणाय नम:’ 

बोलते हुए जल से तीन बार आचमन करें। फिर जल लेकर हाथ धो लें।

हाथ में चावल एवं फूल लेकर अंजुलि बांधकर देवी का ध्यान करें-

आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने चात्र स्थिरा भव। यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं सन्निधौ भव।।' श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:' दुर्गादेवी-आवाहयामि

इसके बाद फूल और चावल चढ़ाएं।

'श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:' आसनार्थे पुष्पानी समर्पयामि। 

मंत्र को बोलते हुए मां भगवती को आसन दें। 

श्री दुर्गा देव्यै नम: पाद्यम, अर्घ्य, आचमन, स्नानार्थ जलं समर्पयामि। 

बोलते हुए आचमन करें। इसके बाद 

`श्री दुर्गा देवी दुग्धं समर्पयामि।

मंत्र को बोलते हुए दूध चढ़ाएं। 

`श्री दुर्गा देवी दही समर्पयामि।

अब दही चढ़ाएं। `

श्री दुर्गा देवी घृत समर्पयामि।'

अब घी चढ़ाएं। 

श्री दुर्गा देवी मधु समर्पयामि। 

शहद चढ़ाएं। 

श्री दुर्गा देवी शर्करा समर्पयामि। 

इसी तरह शक्कर, पंचामृत, गंधोदक, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, पुष्प, माला, नैवेद्यम, ताम्बूलं आदि जो भी चीजें हैं
उक्त मंत्र को बोलते हुए चढ़ाएं। 
इसके पश्चात् दुर्गासप्तशती अथवा रामायण का पाठ करें। 
पाठ करने के बाद देवी की आरती करके प्रसाद बांटें। 

फिर कन्या भोजन कराएं। इसके बाद स्वयं फलाहार ग्रहण करें।

घट स्थापन मुहूर्त

घट स्थापन मुहूर्त

घट स्थापन मुहूर्त प्रतिपदा को सूर्योदय से 10 घटी तक अथवा अभिजित मुहूर्त में घटस्थापन करने का विधान है।

इस वर्ष 25 सितंबर 2014 को प्रात: 6:14 से 07:14 के मध्य घट स्थापन करें अथवा अभिजित मुहूर्त में घट स्थापना करें, जिसका समय मध्याह्न 11:49 से 12:36 तक रहेगा।


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