Tuesday 16 September 2014

कौन हैं जीमूतवाहन भगवान, क्यों होती है इनकी पूजा

भगवान शिव ने क्या कहा माता पार्वती से

आज आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। इसलिए आज पूर्वंचल के कई भागों में एक खास व्रत मनाया जा रहा है। इस व्रत का नाम है जीवितपुत्रिका व्रत। अपने नाम के अनुसार यह व्रत संतान की लंबी आयु और उनके ऊपर आने वाली विपदा को दूर करने वाला है।

माताएं इस दिन निराहार और निर्जल रहकर दिन और रात का व्रत रखती है। इस पीछे कारण यह है भविष्य पुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा है कि जो माताएं अपनी संतान की सलामती के लिए जीवितपुत्रिका व्रत रखती हैं उनकी संतान के जीवन पर आने वाले विपदा दूर हो जाती है और संतान का वियोग नहीं सहना पड़ता है।

भगवान शिव ने बताया है कि इस दिन के देवता जीमूतवाहन हैं। भगवान जीमूतवाहन कौन हैं और यह कैसे देवता बने इसके विषय में एक रोचक कथा है।


जीमूतवाहन भगवान की कथा

जीमूतवाहन भगवान की कथा

एक बार जीमूतवाहन गंधमादन पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे उसी समय उनके कानों में एक वृद्ध स्त्री के रोने की आवाज आई। जीमूतवान ने महिला के पास जाकर रोने का कारण पूछा तो उसने कहा कि मैं शंखचूड़ नाग की माता हूं। आज भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ शंखचूड़ को उठा कर ले जाएगा खा जाएगा। इसलिए दु:खी होकर रो रही हूं।

जिमूतवाहन ने कहा कि मैं आज आपके पुत्र के बदले गरूड़ का आहार बनूंगा और आपके पुत्र की रक्षा करूंगा। गरूड़ जब शंखचूड़ को लेने आया तो जिमूतवाहन शंखचूड़ बनकर बैठ गया। गरूड़ जीमूतवाहन को लेकर उड़ चला। लेकिन कुछ दूर जाने के बाद उसे एहसास हुआ कि वह शंखचूड़ की जगह एक मानव को उठा लाया है।

गरूड़ ने पूछा कि हे मानव तुम कौन हो और मेरा भोजन बनने क्यों चले आए। इस पर जिमूतवाहन ने कहा कि वह राजा जिमूतवाहन है। शंखचूड़ की माता को पु़त्र वियोग से बचाने के लिए मैं आपका आहार बनने चला आया। गरूड़ राजा के दया औरर परोपकार की भावना से प्रसन्न हो गए। जिमूतवान को वरदान दिया कि तुम सौ वर्ष तक पृथ्वी का राज भोगकर बैकुंठ जाओगे।

जिमूतवाहन के कारण शंखचूड़ की माता को पुत्र वियोग का दर्द नहीं सहना पड़ा। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि थी। इसलिए इस दिन से जीमूतवाहन और जीवितपुत्रिका व्रत करने का विधान शुरू हो गया।

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