Tuesday 16 September 2014

पालथी मारकर बैठने के फायदे

चमत्कारी साधुओं की शक्ति सामर्थ्य का रहस्य

चलते-फिरते उठते-बैठते भी मंत्र जप का लाभ होता है, पर विधिवत किया जाए तब यह निश्चित ही लाभदायक होता है। उसके कामयाब होने का लक्षण यह है कि मंत्र जिस देवता की आराधना में है, उसकी विशेषताएं साधक में दिखाई देने लगती हैं।

1930 में रहस्यदर्शी योगियों की खोज में ब्रिटेन से भारत आए दार्शनिक पाल ब्रंटन ने करीब बारह साल तक भारत के विभिन्न इलाकों की यात्रा की और तरह तरह के साधु-संतों से मिले।

उन्होंने अपनी पुस्तक इन सर्च आर सीक्रेट इंडिया में उन साधु संतों के बारे में और उनकी साधना विधियों के बारे में लिखा है। पाल ब्रंटन ने लिखा है कि सिद्धों और चमत्कारी साधुओं की शक्ति सामर्थ्य का रहस्य बहुत कुछ उनके स्थिरता पूर्वक बैठने में था। ऐसे संत देखने में आए हैं, जो आठ दस घंटे तक एक ही आसन में बैठते थे।


चालीस मिनट प्रतिदिन पालथी मारकर करें यह काम

आसन से बैठने का अर्थ जमीन पर पालथी मार कर बैठना है। दोनों पैरों को एक दूसरे के नीचे क्रास की शक्ल में दबाकर बैठने से कमल की तरह मुद्रा बन जाती है। ध्यान के लिए यही उपयुक्त आसन है। लेकिन जिन्हें पद्मासन में दिक्कत हो, वे जिस तरह सुविधा हो पालथी लगा कर भी बैठ सकते हैं।

सीलिसबर्ग (स्विटजरलैंड) स्थित ट्रांसंडेंटल मेडिटेशन रिसर्च सेंटर में हुई शोध के अनुसार इस आसन से बैठकर चालीस मिनट प्रतिदिन गुरुमंत्र का जप किया जाए तो सात दिन में ही अपनी प्रकृति में बदलाव आता महसूस होने लगता है। छह सप्ताह में तो पचास प्रतिशत तक बदलाव जाता है।

पंद्रह सप्ताह से कुछ ज्यादा समय बीतते बीतते व्यक्ति मेडिटेशन इफेक्ट वाले क्षेत्र (एमइए) में सहयोगी बनने लायक हो जाता है। एमइए का मतलब वह इलाका है जहां रहने वाले दो प्रतिशत लोग संकल्प कर लें तो अपने से पचास गुना ज्यादा लोगों की सोच और व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं।

विदेश भी में लोग ले रहे हैं पालथी मारकर बैठने की शिक्षा

इस तकनीक पर टीएम सेंटर की करीब सात सौ शाखाओं पर अध्ययन हुआ है। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि व्यक्ति के इस स्तर तक पहुंचने में मंत्र जप और स्थिरता पूर्वक बैठने के दोनों ही कारण बराबर उपयोगी हैं। दोनों में से एक भी गड़बड़ हुआ तो कठिनाई हो सकती है।
ध्यान के उद्देश्य को हासिल करने में आठ गुना ज्यादा मेहनत करना पड़ सकती हैं। पालथी लगा कर बैठने की स्थिति में तो भारत के सभी साधक हैं। बाहर देशों में भी ध्यान की कक्षा में प्रवेश करने वाले व्यक्ति दीक्षा लेने के बाद जप और ध्यान सीखते समय ही बैठने की इस तकनीक का अभ्यास शुरु कर देते हैं।

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