Friday 5 September 2014

संस्कृत से आई 'नमाज़', इसी से मिला 'बग़दाद'


हज़ारों साल जनमानस से लेकर साहित्य की भाषा रही संस्कृत कालांतर में क़रीब-क़रीब सुस्ता कर बैठ गई, जिसका एक मुख्य कारण इसे देवत्व का मुकुट पहनाकर पूजाघर में स्थापित कर दिया जाना था

भाषा को अपने शब्दों की चौकीदारी नहीं सुहातीयानी भाषा कॉपीराइट में विश्वास नहीं करती, वह तो समाज के आँगन में बसती है। भाषा तो जिस संस्कृति और परिवेश में जाती है, उसे अपना कुछ कुछ देकर ही आती है।

वैदिक संस्कृत जिस बेलागपन से अपने समाज के क्रिया-कलापों को परिभाषित करती थी उतने ही अपनेपन के साथ दूरदराज़ के समाजों में भी उसका उठाना बैठना था। जिस जगह विचरती उस स्थान का नामकरण कर देती।
संस्कृत दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है

दजला और फ़रात के भूभाग से गुज़री तो उस स्थान का नामकरण ही कर दिया। हरे भरे खुशहाल शहर कोभगवान प्रदत्तकह डाला। संस्कृत का भगः शब्द फ़ारसी अवेस्ता मेंबगहो गया और दत्त हो गयादादऔर बन गया बग़दाद।

इसी प्रकार संस्कृत काअश्वकप्राकृत में बदलाआवगनऔर फ़ारसी में पल्टी मारकरअफ़ग़ानहो गया और साथ में स्थान का प्रत्ययस्तानमें बदलकर मिला दिया और बना दिया हिंद का पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान -यानी निपुण घुडसवारों की निवास-स्थली।

स्थान ही नहीं, संस्कृत तो किसी के भी पूजाघरों में जाने से नहीं कतराती क्योंकि वह तो यह मानती है कि ईश्वर का एक नाम अक्षर भी तो है। -क्षर यानी जिसका क्षरण होता हो।

इस्लाम की पूजा पद्धति का नाम यूँ तो कुरान में सलात है लेकिन मुसलमान इसे नमाज़ के नाम से जानते और अदा भी करते हैं। नमाज़ शब्द संस्कृत धातु नमस् से बना है।

इसका पहला उपयोग ऋगवेद में हुआ है और अर्थ होता हैआदर और भक्ति में झुक जाना। 

गीता के ग्यारहवें अध्याय के इस श्लोक को देखेंनमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च 

भूयोऽपि नमो नमस्ते।

इस संस्कृत शब्द नमस् की यात्रा भारत से होती हुई ईरान पहुंची जहाँ प्राचीन फ़ारसी अवेस्ता उसे नमाज़ पुकारने लगी और आख़िरकार तुर्की, आज़रबैजान, तुर्कमानिस्तान, किर्गिस्तान
उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, बर्मा, इंडोनेशिया और मलेशिया के मुसलामानों के दिलों में घर कर गई।


संस्कृत ने पछुवा हवा बनकर पश्चिम का ही रुख़ नहीं किया बल्कि यह पुरवाई बनकर भी बही। चीनियों कोमौनशब्द देकर उनके अंतस को भीछूगई। चीनी भाषा में ध्यानमग्न खामोशी को मौन कहा जाता है और स्पर्श को छू कहकर पुकारा जाता है।

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