ज्योतिष
में 'सभी सत्ताइस नक्षत्रों को श्रेष्ठ माना गया है। अभिजित नक्षत्र की तुलना यद्यपि 'चक्र सुदर्शन' मुहूर्त की तरह की गई है किन्तु पुष्य नक्षत्र सभी अरिष्टों का शमन करने वाला माना गया है। इसका विस्तार कर्क राशि पर 03 अंश 21 कला से 16 अंश 40 कला तक है। इस राशि के स्वामी सूर्यपुत्र शनिदेव हैं।
वेदों में पुष्य नक्षत्र को अत्यंत शुभ कहा गया है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक धर्मपरायण, मानी, गुणी, शांत स्वभाव वाला, विविध कलाओं का ज्ञाता, कर्मनिष्ठ, सुंदर आकृतवाला, कामुक, दयालु और प्रसिद्ध होता है।
शुरु से ही इस नक्षत्र में किए गए सभी काम शुभ माने गए हैं, किन्तु शिव-पार्वती विवाह के समय पार्वती द्वारा दिए गए शाप के कारण इस नक्षत्र में विवाह संस्कार वर्जित माना गया है।
विवाह एवं आर्थिक परेशानी से मुक्ति के लिए करें यह काम
गुरुवार के दिन इस नक्षत्र के पडने से
गुरु-पुष्य और रबिवार के दिन पडने से
रबि-पुष्य योग का निर्माण होता है।
गुरु-पुष्य योग 16 अक्टूबर गुरुवार को सुबह 10 बजकर 46 मिनट से आरंभ होकर 17
अक्टूबर सूर्योदय तक रहेगा।
ये दोनों योग सभी कुयोगों का शमन करके कार्य सिद्धि दिलाते हैं। इस योग में किया
गया कोई भी कार्य यहां तक कि जप-तप-यज्ञादि अक्षुण फल कारक होते ही हैं, साथ ही नए
व्यापार आरंभ करना, अनुबंध करना, मकान-वाहन, जमीन-जायदाद क्रय करना, आभूषण खरीदना,
व्यापार शुरु करने अथवा चुनाव आदि में खड़े होने के लिए प्रशस्त माना गया है।
इसदिन अनार की जड़ दाहिनी भुजा में बांधने से बृहस्पति जन्य दोष तो शांत होते ही
हैं साथ ही पुखराज धारण करने जैसा फल मिलता है। जिन कन्याओं का विवाह ना हो रहा हो
या विवाह में बिलम्ब हो उन्हें इस दिन पीले वस्त्र धारण करके बृहस्पति व्रत और कथा
करने से मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है।
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