भाजपा के हाथों
लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक हार का सामना करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया
गांधी ने एक बार फिर कमान संभाल ली है और पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की
कोशिशें तेज कर दी हैं। इसके लिए वह कांग्रेसी नेताओं से लगातार मुलाकात कर आगे का
रास्ता ढूंढ रही हैं। उधर,
पार्टी
कार्यकर्ताओं ने साफ कर दिया है कि वे राहुल नहीं बल्कि सोनिया के नेतृत्व में
काम करना चाहते हैं। खास बात यह है कि ये कार्यकर्ता राहुल को प्रियंका गांधी से
भी कम तवज्जो दे रहे हैं। इनके मुताबिक पार्टी नेतृत्व पहले सोनिया, फिर प्रियंका और उसके बाद राहुल के क्रम में
होना चाहिए। कांग्रेसी नेताओं ने ऐसी मांग भी की है कि हार के कारणों पर व्यापक
बातचीत के लिए ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की बैठक बुलाई जानी चाहिए।
सोनिया गांधी
हुईं सक्रिय
हार के कारणों
का पता लगाने और कांग्रेस को फिर से कैसे खड़ा किया जाए, इन चीजों पर बात करने के लिए सोनिया पार्टी
नेताओं और कार्यकर्ताओं से लगातार मुलाकात कर रही हैं। हाल के कुछ दिनों से उनके
घर के बाहर मिलने वालों का तांता लगा रहता है। उदाहरण के लिए इस हफ्ते मंगलवार को
अंबिका सोनी, विलास मुत्तमवार, राज बब्बर, श्रुति चौधरी जैसे नेताओं ने सोनिया से मुलाकात की। इस लोकसभा चुनाव में इन
सभी नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा है। इनके अलावा राज्य स्तर के कई नेता भी
सोनिया से मिलने पहुंचे। इनमें राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रमुख
थे। मुलाकात के इस दौर के बारे में सोनिया गांधी के नेतृत्व में भरोसा रखने वाले
एक कांग्रेसी नेता ने कहा,
'उनकी हर सुबह
नेताओं से मिलने-जुलने में ही बीत रही है।'
सोनिया ने
कहा-हार से सबक लेने का वक्त
सोनिया गांधी ने
चुनाव में हार का सामना करने वाले पार्टी नेताओं से कहा है कि वे इससे सबक लेकर
आगे बढ़ें। बताया जा रहा है कि सोनिया ने चुनाव लड़ने वाले सभी नेताओं को लेटर
लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि वे हार से घबराएं नहीं और ना ही अपना दिल छोटा
करें बल्कि इससे सबक लेकर आगे बढ़ें और पार्टी को मजबूत बनाएं।
सोनिया से हाल
में ही मुलाकात करने वाले एक कांग्रेसी नेता ने कहा, 'स्थानीय,
क्षेत्रीय और
राज्य स्तर के अलावा केंद्रीय स्तर पर भी आत्मविश्लेषण होना चाहिए। हालात से
निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाएं, इस पर बातचीत के लिए कांग्रेस वर्किंग कमिटी और ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की
बैठक बुलाई जानी चाहिए। कुछ हलचल होनी चाहिए, ऐसी गतिविधियां होनी चाहिए जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं का ध्यान हार से हटे।
लेकिन इस तरह की बैठक सिर्फ प्रतिक्रियाओं पर आधारित नहीं होनी चाहिए बल्कि इससे
कुछ ठोस सामने निकलकर आना चाहिए।'
चुनाव के बाद
कांग्रेस में आए तीन अहम बदलाव
कांग्रेस में
भले ही हार को लेकर लगातार मंथन चल रहा है, लेकिन अभी तक इस बात पर स्पष्ट राय नहीं बन सकी है कि आगे के लिए क्या कदम
उठाया जाए। कांग्रेस के भीतर फिलहाल तीन तरह के हालात उभर कर सामने आ रहे हैं:
पहला: अंदरुनी चुनाव कराने की संभावना फिलहाल के
लिए टल सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हार के बाद से ही पार्टी में गुटबंदी जोरों पर
है और माना जा रहा है कि अंदरुनी चुनाव इसे और हवा दे सकता है। लोकसभा चुनाव
नतीजों के बाद से ही कई नेता कांग्रेस वर्किंग कमिटी के चुनाव की मांग कर रहे हैं।
माना जा रहा है कि यह चुनाव भी टल सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यूथ कांग्रेस के
लिए चुनाव कराने का राहुल
गांधी का कदम विवादों
में है और पार्टी नहीं चाहेगी कि इन विवादों की आंच कांग्रेस वर्किंग कमिटी तक आए।
सीडब्ल्यूसी में 25 मेंबर हैं। 2015 में सोनिया गांधी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अपना चौथा कार्यकाल पूरा कर लेंगी।
इस लिहाज से संगठन में बदलाव को लेकर ब्लॉक स्तर से लेकर अध्यक्ष पद तक का
चुनाव हो सकता है।
दूसरा: कांग्रेस के जिन पुराने नेताओं की आलोचना की
जाती रही थी,
राहुल और उनकी
यंग टीम के नेतृत्व में मिली हार के बाद इन नेताओं की अहमियत एक बार फिर बढ़ गई
है। गौरतलब है कि हाल के सालों में राहुल की यंग टीम को आगे लाने के लिए कई पुराने
कांग्रेसी नेताओं को राज्यपाल बनाकर या तो पीछे धकेल दिया गया या फिर उन्हें
किसी दूसरे तरीके से किनारे लगा दिया गया। जिन यंग चेहरों को राहुल ने तवज्जो
दिया उनमें मध्य प्रदेश में अरुण यादव, हरियाणा में अशोक तंवर और राजस्थान में सचिन पायलट प्रमुख थे। इन सभी को
संबंधित राज्यों का प्रभारी बनाया गया था। अब पार्टी की हार के बाद ये नेता
पुराने स्थानीय नेताओं के हमले की जद में आ गए हैं।
पुराने नेताओं
की अहमियत देखते हुए सोनिया गांधी ने फिर से इन्हें उनका रुतबा लौटाने की कवायद
तेज कर दी है। इसी के मद्देनजर मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में पार्टी का नेता
और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को उप नेता बनाया गया है। इनके अलावा
गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में विपक्ष का नेता तो आनंद शर्मा को उन नेता बनाया
गया है। हालांकि,
सोनिया ने इन
लोगों की नियुक्ति तभी की जब उन्होंने देखा कि राहुल गांधी लोकसभा में पार्टी का
नेतृत्व करने को तैयार नहीं हैं।
तीसरा: सोनिया ने जिस तरह पुराने नेताओं को फिर से
मौका दिया है उससे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बीच अच्छा संदेश गया है। हालांकि, वे इस बात से भी चिंतित हैं कि जब राहुल के
खिलाफ लोगों का गुस्सा ठंडा पड़ जाएगा तो सोनिया उन्हें फिर से आगे करने पर जोर
देंगी। खास बात यह है कि जो भी नेता राहुल के काम करने के तरीके से खफा हैं, उन्होंने लोकसभा चुनावों में मिली हार का
इस्तेमाल उन पर हमले के लिए किया है। कई कांग्रेसियों का आरोप है कि राहुल अपने
कार्यकर्ताओं से मिलते नहीं हैं और अपने संसदीय क्षेत्र के बारे में भी उन्हें ज्यादा
जानकारी नहीं है।