बेजोड़ रत्न है ‘हनुमान चालीसा’
हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए हैं। प्रत्येक
व्यक्ति के अंदर हनुमान जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-चालीसा एक ऐसी
कृति है, जो हनुमान जी के माध्यम से
व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल
बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर सकता है। हनुमान चालीसा का
एक एक दोहा, चौपाई हमें कुछ न कुछ सिखाता
है। अब तक अगर बिना अर्थ जाने पाठ करते आए हैं या अर्थ जानना चाहते हैं तो पढ़िए…
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शुद्धता, ताकत और बुद्धि
हनुमान चालीसा शुरू होती है यूं:
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि
बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार
इस दोहे के मुताबिक, हनुमान जी कहते हैं कि चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ कर, श्रीराम के दोषरहित यश का वर्णन करता हूँ जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार फल देने वाला है। स्वयं को बुद्धिहीन जानते हुए, मैं पवनपुत्र श्रीहनुमान का स्मरण करता हूँ जो मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करेंगे और मेरे मन के दुखों का नाश करेंगे।
सीखः हमें अपने मस्तिष्क की शुद्धि कर श्रीराम का ध्यान
करना चाहिए जो भगवान विष्णु का रूप हैं। जब हम मान लेते हैं कि हममें बुद्धि की
कमी है तो हनुमान जी के विचारों के अनुसरण भर से हम अपने मन की शुद्धि, बल, बुद्धि और विद्या प्राप्त
करने लगते हैं…
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जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥
यानी, हनुमान ज्ञान का सागर हैं
जिनके पराक्रम का पूरे विश्व में गुणगान होता है। हनुमान ही वीरता का प्रतीक माने
जाते हैं। हनुमान जी श्रीराम के दूत, अपरिमित शक्ति के धाम, श्री अंजनि के पुत्र और पवनपुत्र नाम से जाने
जाते हैं। हनुमान जी महान वीर और बलवान हैं, वज्र के समान अंगों वाले, खराब बुद्धि दूर करके शुभ बुद्धि देने वाले
हैं, आप स्वर्ण के समान रंग वाले, स्वच्छ और सुन्दर वेश वाले हैं, आपके कान में कुंडल शोभायमान हैं।
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हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे,काँधे
मूँज जनेऊ साजे॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मनबसिया॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥
भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥
यानी, कंधे पर अपनी गदा लिए हनुमान जी का सिर्फ एक
प्रेम है और वो है अपने आराध्य श्रीराम की आज्ञा का पालन करना। इसके लिए वे
अलग-अलग रूप धारण करने से नहीं चूकते। आप सूक्ष्म रूप में श्रीसीताजी के दर्शन
करते हैं, भयंकर रूप लेकर लंका का दहन
करते हैं, विशाल रूप लेकर राक्षसों का
नाश करते हैं। हनुमान जी विद्वान, गुणी और अत्यंत बुद्धिमान
हैं, श्रीराम के कार्य करने के
लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। आप श्रीराम कथा सुनने के प्रेमी हैं और श्रीराम, श्रीसीताजी और श्रीलक्ष्मण के ह्रदय में बसते
हैं। आपके महान तेज और प्रताप की सारा जगत वंदना करता है।
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लाय सजीवन लखन जियाए, श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै, अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥
भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण की जान
बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाकर हनुमान जी ने अपने आराध्य श्रीराम का मन मोह लिया।
श्रीराम इतने खुश हुए कि उन्होंने अपने भाई भरत की तरह अपना प्रिय भाई माना। इससे
हमें सीख लेनी चाहिए। किसी काम को करने में देर नहीं करनी चाहिए, अच्छे फल अवश्य मिलेंगे।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कवि
कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
हनुमान जी का ऐसा व्यक्तित्व है सनक आदि ऋषि, ब्रह्मा आदि देव और मुनि, नारद, सरस्वती जी और शेषनाग जी, यम, कुबेर आदि दिग्पाल भी उनके
यश का वर्णन नहीं कर सकते हैं, फिर कवि और विद्वान कैसे
उसका वर्णन कर सकते हैं। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें जितना हो सके उतना सहज
और बहुउपयोगी स्वभाव का होना चाहिए।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥
यानी, तुमने(हनुमान जी ने)
श्रीराम और सुग्रीव को मिलाने का काम किया जिसके चलते सुग्रीव अपनी मान-प्रतिष्ठा
वापस हासिल कर पाए।
सीखः जीवन में आपको कभी ऐसा मौके मिले तो पहल करने
से न चूकें।
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तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना, लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥
यानी, हनुमान जी की सलाह ने
विभीषण को लंका का राजा बनाया।
सीखः अच्छी सलाह सुनने के लिए अपने कान खुले रखिए
और सलाह मानने के लिए अपने हृदय को विनम्र रखें।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥
यानी, हनुमान जी ने बचपन में ही
सूर्य को मीठा फल समझकर निगलने की कोशिश की और वयस्कावस्था में श्रीराम की अंगूठी
को मुंह में दबाकर लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र पार किया।
सीखः याद रखें, बड़ी जिम्मेदारियों के साथ
स्वतः ही ताकत का जन्म होता है।
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे, होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
यानी, जब हनुमान जी की जिम्मेदारी
में कोई काम होता है, तो जीवन सरल हो जाता है।
हनुमान जी स्वर्ग यानी श्रीराम तक पहुंचने के द्वार की सुरक्षा करते हैं। उनके
आदेश के बिना वहाँ प्रवेश नहीं होता है। जब हनुमान जी आप रक्षक हैं तो डर किस बात
का।
सीखः जीवन में ऐसी आत्माओं से मुलाकात होती है
असंभव को संभव बनाने में सक्षम होते हैं। उन्हें पहचानें।
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सब सुख लहैं तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥
नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥
यानी, हनुमान जी के तेज को वे
स्वयं ही संभाल सकते हैं। उनके तेज से सारा विश्व कांपता है। सिर्फ हनुमान जी के
नाम का स्मरण ही एक शक्तिशाली कवच का काम करता है। एक ऐसा कवच जो भूत-पिशाच और
बीमारियों से आपकी रक्षा करता है।
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संकट तै हनुमान छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै,सोई
अमित जीवन फल पावै॥२८॥
यानी, रामभक्त हनुमान का ध्यान
करने और मन लगाकर अपने काम करने से मेहनत का फल अवश्य मिलेगा। जो श्री हनुमान जी
का मन, कर्म और वचन से स्मरण करता
है, वे उसके सभी संकट दूर करते
हैं।
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चारों जुग परताप तुम्हारा,है
परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥
यानी, हनुमान जी की छवि चारों
लोकों से भी बड़ी है। आपका प्रकाश सारे जगत में प्रसिद्ध है। हनुमान जी साधु-
संतों की रक्षा करने वाले, असुरों का विनाश करने वाले
और श्रीराम के प्रिय हैं। लेकिन, अपने ऐश्वर्य के बावजूद
हनुमानजी कमजोर और दलितों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उनके लिए भी
हमेशा मौजूद रहते हैं जो शैतान से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं।
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई,हनुमत
सेई सर्व सुख करई॥३५॥
यानी, श्रीराम तक तुम्हारी(हनुमान
जी की) पहुंच मात्र तुम्हारा नाम जपने से शक्ति प्रदान करती है। आपके स्मरण से
जन्म- जन्मान्तर के दुःख भूल कर भक्त श्रीराम को प्राप्त करता है और अंतिम समय में
श्रीराम धाम में जाता है और वहाँ जन्म लेकर हरि का भक्त कहलाता है। दूसरे देवताओं
को मन में न रखते हुए, श्री हनुमान से ही सभी
सुखों की प्राप्ति हो जाती है।
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥
यानी, हनुमान जी से प्रार्थना
करते ही दुख-दर्द सब खत्म हो जाते हैं। उनका दयालु हृदय नम्र स्वभाव लोगों पर
हमेशा दया करता है।
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जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥
यानी, जो सौ बार हनुमान चालीसा का
पाठ करता है, वह न सिर्फ खुशी और मुक्ति
का एहसास करता है। बल्कि, शिव-सिद्धी भी हासिल करता
है और जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट जाता है।
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥
यानी, तुलसीदास जी ने भी अपनी इस
कविता का समापन करते हुए बताया है कि वे क्या हैं?…वे स्वयं को भगवान का भक्त
कहते हैं, सेवक मानते हैं और
प्रार्थना करते हैं कि प्रभु उनके हृदय में वास करें।
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
यानी, पवनपुत्र, संकटमोचन, मंगलमूर्ति श्री हनुमान आप
देवताओं के ईश्वर श्रीराम, श्रीसीता जी और श्रीलक्ष्मण
के साथ मेरे हृदय में निवास कीजिए।
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जय वीर हनुमान
तो देखा आपने साधारण-सी लगने वाली इस कविता में कितना ज्ञान
छिपा है। हनुमान चालीसा सिर्फ हनुमान जी की छवि और व्यक्तित्व का बोध नहीं कराती
बल्कि जीवन मूल्यों का दर्शन भी करवाती है। रामभक्त हनुमान का आशीर्वाद सदा सबके
साथ बना रहे।
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अति सुंदर
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