Thursday 30 January 2014

सड़कों पर उतरे ,सिखों की मांग- दंगों में शामिल कांग्रेसियों के नाम बताएं राहुल


सड़कों पर उतरे सिखों की मांग- दंगों में शामिल कांग्रेसियों के नाम बताएं राहुल

1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर कांग्रेस ऑफिस के बाहर सिख संगठनों ने जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी हाथों में काले झंडे लेकर हाय-हाय के नारे लगा रहे थे। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड्स लगाए। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने एक बैरिकेड भी तोड़ दिया। (लग रहे थे खून के बदले खून के नारे )
 
सिख संगठन कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के हाल ही में एक इंटरव्‍यू में दिए गए बयान को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। राहुल ने इंटरव्‍यू में स्‍वीकार किया था कि 1984 के सिख विरोधी दंगों में कुछ कांग्रेसी शामिल रहे होंगे। इन संगठनों की मांग है कि राहुल इन कांग्रेसियों के नाम बताएं और उनके खिलाफ कार्रवाई करें। प्रदर्शन कर रहे संगठनों में अकाली दल और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (SGPC) के लोग शामिल थे। उनकी ये भी मांग है कि सीबीआई राहुल का बयान दर्ज करे।
 
दूसरी ओर, देश के कई मौलानाओं ने भी कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन और सोनिया व राहुल के चुनाव क्षेत्रों में उनके खिलाफ काम करने की धमकी दी है। मौलानाओं का आरोप है कि दिल्ली में वक्फ बोर्ड की जमीन को हथियाने में कांग्रेसियों की साजिश है।
 
यह कहा था राहुल ने इंटरव्‍यू में
 
अंग्रेजी न्‍यूज चैनल टाइम्‍स नाउ को दिए गए इंटरव्‍यू में राहुल से पूछा गया था, 'क्‍या 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस के लोग शामिल थे?' इस सवाल का जवाब देते हुए राहुल ने कहा था, 'कुछ लोग शायद शामिल थे।' अगले सवाल में राहुल से पूछा गया था, 'गुजरात दंगों पर मोदी की माफी की मांग से पहले क्या आपको 1984 के दंगों के लिए माफी नहीं मांगनी चाहिए?' इसके जवाब में राहुल ने कहा था, 'मैं 84 के दंगों में नहीं शामिल था। 1984 और गुजरात के दंगों में बड़ा अंतर है। 84 में सरकार ने दंगा रोकने की कोशिश की, जबकि गुजरात में सरकार ने दंगे भड़काए थे।' गौरतलब है कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों में सिखों को निशाना बनाया गया था।  
 
इससे पहले बुधवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उप राज्यपाल नजीब जंग से मिलकर मांग की थी कि 1984 के सिख विरोधी दंगों की एसआईटी जांच कराई जाए। दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष एमएस धीर ने केजरीवाल की मांग का समर्थन किया है। धीर ने कहा है कि मुझे उम्मीद है कि ऐसे कदमों से पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा। 
 

'खून का बदला खून के नारे से कांग्रेसियों ने शुरू करवाया था 84 का दंगा'


राहुल गांधी ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान यह दावा किया था कि कांग्रेस पार्टी ने 1984 केसिख विरोधी दंगों में हालात को काबू करने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन राहुल गांधी का यह दावा सिख समुदाय के कई लोगों को रास नहीं आया है। 1984 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस सचिव रहे तरलोचन सिंह (तस्वीर में) ने आरोप लगाया है कि 84 के दंगे 'प्रायोजित' थे और 'सुनियोजित ढंग' से कराए गए थे। तरलोचन का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी दंगों के दौरान राष्ट्रपति जैल सिंह के फोन रिसीव ही नहीं कर रहे थे।
 
तरलोचन सिंह का कहना है कि ज्ञानी जैल सिंह फोन कर दंगों से पैदा हुए हालात की जानकारी लेना चाहते थे। तरलोचन सिंह ने कहा, 'इंदिरा गांधी को सुबह गोली मारी गई, लेकिन दंगों का सिलसिला शाम को शुरू हुआ। ज्ञानीजी ने खुद यह जानकारी जुटाई थी कि कांग्रेस के नेताओं ने एक बैठक की थी। बैठक में अरुण नेहरू, दिल्ली के नेता एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर समेत कई नेता शामिल थे। यह मीटिंग राजीव गांधी के कोलकाता (तब कलकत्ता) से लौटने के पहले ही हो गई थी। बैठक में नेताओं ने खून का बदला खून का नारा देने का फैसला किया। इसके बाद आईएनए मार्केट के पास दंगों से जुड़ी पहली हिंसा हुई। अगर वह दंगे अपने आप हुए होते, तो हिंसा सुबह ही शुरू हो गई होती। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इसकी कोई घोषणा नहीं हुई थी, लेकिन अनौपचारिक तौर पर दिल्ली में सभी इसके बारे में जानते थे।'  
 
 
'ज्ञानी जैल सिंह सारी रात फोन पर बात करने की कोशिश करते रहे, किसी ने नहीं सुनी'
 
तरलोचन सिंह ने बताया कि शाम को जैसे ही राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली वैसे ही तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को दिल्ली में आगजनी और हत्याओं के बारे में सूचना मिलने लगी। तरलोचन ने आरोप लगाया, 'राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से दिल्ली में बड़े पैमाने पर हो रही आगजनी और हिंसा को लेकर बात करना चाहते थे। राष्ट्रपति सारी रात कोशिश करते रहे। लेकिन प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से संपर्क नहीं किया। किसी ने राष्ट्रपति से संपर्क नहीं किया। अगली सुबह ज्ञानी जैल सिंह ने तत्कालीन गृह मंत्री नरसिंह राव से बात करने की कोशिश की। राष्ट्रपति को बताया गया कि गृह मंत्री अंतिम संस्कार की तैयारी में व्यस्त हैं। राष्ट्रपति को बताया गया कि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर और दिल्ली पुलिस के कमिश्नर हालात को काबू में लाने की कोशिश कर रहे हैं। अगले दिन न तो प्रधानमंत्री और न ही गृहमंत्री ने इस बात में दिलचस्पी दिखाई कि हिंसा के शिकार लोगों को राहत दी जा सके।'
 
मेरठ से बुलाई गई थी फौज, लेकिन उन्हें गोली न चलाने को कहा गया था 
 
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस सेक्रेटरी रहे तरलोचन सिंह ने इस बात पर हैरानी जताई है कि दिल्ली की छावनी में सेना मौजूद थी, उन्हें मेरठ से बुला लिया गया था। तरलोचन ने बताया, 'सेना सड़क मार्ग से आई थी। उन्हें आदेश दिया गया था कि गोली नहीं चलानी है, सिर्फ मार्च करना है। दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस पूरी तरह से दंगाइयों के साथ थी और उसने कई सिखों को मौत के घाट उतारा।' 
 
ज्ञानी जैल सिंह; तवलीन सिंह और रामचंद्र गुहा ने 1984 के दंगे के बारे में क्या कहा है: 
 
'खून का बदला खून के नारे से कांग्रेसियों ने शुरू करवाया था 84 का दंगा'

दंगों के दौरान राष्ट्रपति निवास की फोन लाइन तक काट दी गई थी
 
'प्रेजिडेंशियल ईयर्स: मेमोरीज ऑफ ज्ञानी जैल सिंह' शीर्षक से पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के निधन के बाद प्रकाशित हुई उनकी आत्मकथा में कई सनसनीखेज दावे किए गए। इस किताब में 1984 में सिख विरोधी दंगों के दौरान देश के राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह ने लिखा है, 'दिल्ली में हजारों सिखों की हत्या की जा रही थी, ऐसे में ढेर सारे लोग जज्बातों से भरे और डरे हुए भाव के साथ राष्ट्रपति भवन में मदद के लिए फोन कर रहे थे।' जैल सिंह के मुताबिक उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सेना तैनात करने के लिए कहा। जैल सिंह के मुताबिक, 'मेरी बात सुनकर राजीव गांधी ने बहुत ही ठंडी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि वे हालात का जायजा ले रहे हैं।' अंत में सेना बुलाई गई लेकिन उसे गोली नहीं चलाने का आदेश दिया गया। जब राष्ट्रपति भवन में मदद के लिए फोन आने बंद हो गए तब राष्ट्रपति को समझ में आया कि उनके निवास में लगे टेलीफोन के कनेक्शन काट दिए गए हैं। उन्होंने लिखा, 'मैं देश के प्रधानमंत्री से बस यही कह पाया कि बेकसूरों का खून मत बहने दो।' कहा जाता है कि तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने कई अति गोपनीय फाइलें राष्ट्रपति तक नहीं पहुंचने दीं।

एचकेएल भगत छाती पीटकर चिल्ला रहे थे-'खून का बदला खून' 
 
वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार तवलीन सिंह ने अपनी किताब 'दरबार' में लिखा है, 'श्रीमती गांधी (इंदिरा) अपने घर से सुबह 9 बजे निकलीं। और वह बगीचे के बीच से अपने आवास के पास बने बंगले में मौजूद अपने दफ्तर की तरफ बढ़ रही थीं। रास्ते में उनके सिख बॉडीगार्ड बेअंत सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया। इसके तुरंत बाद उसने अपनी पिस्तौल से इंदिरा गांधी पर गोली दाग दी। एक अन्य बॉडीगार्ड सतवंत सिंह ने भी अपनी आटोमैटिक गन से गोलियां दाग दीं।'
 
घटना से हैरान बहू सोनिया गांधी ने अपनी सास इंदिरा गांधी को तुरंत एम्स पहुंचाया। वहां इंदिरा को मृत घोषित कर दिया गया। इंदिरा के बेटे राजीव को उसी दिन शाम के समय देश के नए प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिला दी गई। तवलीन सिंह ने अपनी किताब 'दरबार' में लिखा है, 'हमने उन्हें टीवी पर देखा। वे बहुत शांत और बिना जज्बात वाली आवाज में बोले कि भारत ने एक महान नेता खो दिया है। एक ऐसी शख्सियत जो न सिर्फ उनकी मां थीं बल्कि देश की मां थीं। या इसी अर्थ वाला कोई और शब्द। तभी वे रुके और कैमरे की तरफ दुखी नजरों से देखने लगे। इसी बीच दूरदर्शन पर एचकेएल भगत (कांग्रेसी नेता) और उनके समर्थक छाती पीट-पीट कर कह रहे थे, खून का बदला खून से लेंगे। ऐसे माहौल में पूरी सिख कौम को इंदिरा की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया गया। 31 अक्टूबर, 1984 की शाम होते-होते हिंसा शुरू हो गई।'  

'ये सांप का बच्चा है, इसे भी खत्म करो'
 
मशहूर इतिहासकार और स्तंभकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी-द हिस्ट्री ऑफ वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी' में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के बारे में लिखा है, 'हर जगह सिर्फ और सिर्फ सिखों को निशाना बनाया जा रहा था...अकेले दिल्ली में एक हजार से ज्यादा सिख हिंसा के शिकार हुए...उन्हें कई तरीकों से कत्ल किया गया, कई बार उनकी मां और पत्नियों के सामने। उनके शवों को सड़कों पर जलता हुआ छोड़ दिया गया; एक जगह पर छोटे बच्चे को उसके पिता के साथ जला दिया गया, दंगे पर अमादा भीड़ चिल्ला रही थी-ये सांप का बच्चा है, इसे भी खत्म करो। दंगाइयों में दिल्ली और आसपास के रहने वाले हिंदू शामिल थे...ज्यादातर मामलों में कांग्रेसी नेता उनकी अगुवाई कर रहे थे: उनमें पार्षद, सांसद और यहां तक कि केंद्र के मंत्री भी शामिल थे। कांग्रेसी नेता दंगा भड़का रहे लोगों को शराब और पैसे देने का वादा कर रहे थे; यह उन चीजों से अलग ईनाम था, जो दंगाई सिखों के घरों से लूट रहे थे। पुलिस या तो तमाशा देखती रही या फिर लूट और हत्या करवाती रही।
 

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