Thursday 30 January 2014

रणनीति पड़ी उलटी, राहुल के इंटरव्यू से हुए नुकसान


Inside Story: रणनीति पड़ी उलटी, राहुल के इंटरव्यू से हुए 3 नुकसान?

कांग्रेस के रणनीतिकारों ने बहुत सोच समझकर राहुल गांधी की इमेज चमकाने के लिए इंटरव्यू 
की योजना तैयार की थी। लेकिन इंटरव्यू के प्रसारण के 48 घंटों के भीतर ही राहुल गांधी की 
छवि मजबूत होने की बजाय कांग्रेस के उपाध्यक्ष तीन मुद्दों को लेकर घिरते दिखने लगे हैं।  
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने यह सोचा था कि राहुल गांधी का पहला औपचारिक टीवी इंटरव्यू 
ऐसे पत्रकार के साथ होना चाहिए जिसकी छवि मुश्किल सवाल पूछने वाले पत्रकार के तौर 
पर स्थापित हो। अंग्रेजी अखबार 'द टेलीग्राफ' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक प्रियंका गांधी ने 
इंटरव्यू से पहले टीवी पत्रकार अर्णब गोस्वामी के साथ मुलाकात की थी, जिन्होंने राहुल का 
इंटरव्यू लिया। अखबार ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि प्रियंका और टीवी पत्रकार 
गोस्वामी ने एक अनौपचारिक मुलाकात की। इस दौरान दोनों ने चाय और पकौड़ों का 
आनंद लिया और राहुल गांधी के इंटरव्यू की बात तय हो गई। इसके बाद 25 जनवरी को 
नई दिल्ली के जवाहर भवन में राजीव गांधी फाउंडेशन के दफ्तर में वह इंटरव्यू रिकॉर्ड 
किया गया था और 27 जनवरी को उसका प्रसारण किया गया था। 

 तीन मुद्दे जिन पर घिरते दिख रहे हैं राहुल गांधी: 


(1) 1984 का सिख विरोधी दंगे का मुद्दा फिर उठा 
हाल ही में अपने पहले औपचारिक टीवी इंटरव्यू के दौरान राहुल गांधी ने 1984 के सिख विरोधी 
दंगों में कुछ कांग्रेस नेताओं की भूमिका की बात स्वीकार की थी। 
राहुल गांधी ने कहा था, '1984 के दंगों में मासूम लोग मारे गए थे और उनका मारा जाना बहुत 
भयानक था, जैसा नहीं होना चाहिए। 84 के दंगों के दौरान सरकार दंगे रोकने की कोशिश कर 
रही थी। मैं तब बच्चा था और मुझे याद है कि सरकार पूरी कोशिश कर रही थी। इसमें कुछ 
कांग्रेसी नेता शामिल थे। मासूम लोगों का मरना कतई सही नहीं है।' 
लेकिन राहुल का बयान उनके और उनकी पार्टी के लिए मुश्किल का सबब बन गया है। गुरुवार को 
दिल्ली की सड़कों पर कई संगठन राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। 
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राहुल गांधी सीबीआई के सामने पेश हों और उन कांग्रेसियों का 
नाम बताएं जो सिख विरोधी दंगों में शामिल थे। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद 
केजरीवाल ने 1984 के दंगों की जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) के गठन की मांग 
की है। कांग्रेस के प्रवक्ता संजय झा ने भी एसआईटी के गठन पर हामी भर दी है। 


(2) मोदी को लेकर सहयोगी नाराज 
अपने पहले टीवी इंटरव्यू के दौरान राहुल गांधी ने 2002 के दंगों के लिए गुजरात के तत्कालीन 
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया था। राहुल गांधी ने कहा था, 'प्रधानमंत्री ने दंगों पर 
अपनी स्थिति रखी है। गुजरात में दंगे हुए। लोग मरे। मोदी उस समय राज्य के इंचार्ज थे। 1984 
और गुजरात दंगों में फर्क यह है कि गुजरात दंगों में सरकार शामिल थी। सरकार दंगों को भड़का 
रही थी।' लेकिन राहुल के इस बयान का कांग्रेस की सबसे बड़ी सहयोगी एनसीपी ने विरोध किया 
है। एनसीपी की ओर से प्रफुल्ल पटेल ने कहा है कि जब मोदी को कानूनी तौर पर 'क्लीन चिट' 
मिल चुकी है, तो उन पर आरोप लगाना सही नहीं है। इस मुद्दे पर दोनों पार्टियों के बीच तनातनी 
बढ़ने के आसार हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर एनसीपी पर पलटवार किया है। पार्टी की प्रवक्ता शोभा 
ओझा ने कहा, 'लोग हाई कोर्ट में अपील कर रहे हैं। यह कोई कैसे कह सकता है कि अदालती तौर 
पर मामला खत्म हो चुका है?'

Inside Story: रणनीति पड़ी उलटी, राहुल के इंटरव्यू से हुए 3 नुकसान?

(3) राहुल गांधी की छवि सुधरने की बजाय खराब हुई?


कांग्रेस के रणनीतिकारों का लगा था कि देश के तेज तर्रार पत्रकार को दिए गए टीवी इंटरव्यू से 
राहुल गांधी की छवि एक मजबूत और विचारवान नेता के तौर पर स्थापित होगी। लेकिन इंटरव्यू 
के बाद बना माहौल और ज्यादातर प्रतिक्रियाएं दूसरी ही तस्वीर सामने रखती हैं। मनोवैज्ञानिक 
अबीर मुखर्जी ने टीवी इंटरव्यू के दौरान राहुल गांधी की शारीरिक भाषा के बारे में टिप्पणी की, 
'इंटरव्यू के दौरान कई बार राहुल गांधी आंख से आंख नहीं मिलाते, सांसें रोक लेते, अपने होंठ 
चाटते हैं और कई बार पलकें झपकाते हैं, तो कई बार देर तक पलकें नहीं झुकातें हैं। ये नर्वस होने 
के लक्षण हैं।' 80 मिनट के इंटरव्यू के दौरान राहुल गांधी से करीब 100 सवाल पूछे गए और 
इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार और राहुल के बीच 13 हजार से ज्यादा शब्दों का आदान-प्रदान हुआ। 
ज्यादातर सवालों के जवाब में राहुल गांधी ने सिस्टम बदलने, महिलाओं को सशक्त बनाने 
और युवाओं को मौके देने की हिमायत करते रहे। कई मौकों पर सीधे सवालों पर भी वे ऐसे ही 
जवाब देते रहे। सोशल मीडिया पर भी राहुल के समर्थन की जगह की संदेशों में उनका मजाक 
ही उड़ाया गया। सोमवार को #RahulSpeaksToArnab हैश टैग टि्वटर ट्रेंड में टॉप पर रहा तो 
फेसबुक पर भी इसे लेकर खूब कमेंट्स आए। इस इंटरव्‍यू को लेकर सोशल मीडिया पर फनी 
फोटोज और जोक्‍स की बाढ़ आ गई थी। लेकिन कई टिप्पणियों में लोगों ने राहुल गांधी के तर्कों 
पर गंभीर सवाल उठाए। राहुल को लेकर किस तरह की टिप्पणियां हुईं हैं, इसे समझने के लिए 
एक ट्वीट की बानगी काफी होगी। Kiran Kumar S ‏@KiranKS ने ट्विटर पर लिखा- 
'पप्‍पू का इंटरव्‍यू देखने के बाद मेरी हंसी नहीं रुक रही थी। मुझे नॉरमल होने में 17 घंटे लगे। 
अगला इंटरव्‍यू 2024 में देना please!


73 बार 'सिस्टम' शब्द बोले राहुल, लेकिन नहीं बताया इसे कैसे बदलेंगे


कांग्रेस पार्टी के भीतर चले लंबे मनन चिंतन के बाद इंटरव्यू देने के लिए तैयार हुए कांग्रेस के उपाध्यक्ष 
राहुल गांधी से कई मुश्किल और मौजूं सवाल पूछे गए। इंटरव्यू के दौरान राहुल ने कुछ सवालों के 
जवाब सीधे दिए, लेकिन ज्यादातर सवालों जवाब घुमा फिराकर देना उन्होंने मुनासिब समझा। 
लेकिन उनके इंटरव्यू का पोस्टमॉर्टम करने पर कुछ बातें सामने आती हैं। इंटरव्यू से यह पता 
चला कि राहुल गांधी राजनीति की तकरीबन हर समस्या की वजह सिस्टम को ही मानते हैं। 
यह शब्द उन्हें इतना प्रिय है कि पूरे इंटरव्यू के दौरान उन्होंने 73 बार सिस्टम शब्द का प्रयोग 
किया। राहुल गांधी मोदी, भ्रष्टाचार से जुड़े कई सवालों के सटीक जवाब न देकर सिस्टम का 
हवाला दे दिया। लेकिन राहुल गांधी इंटरव्यू के दौरान ठोस तरीके से एक बार भी नहीं बता पाए 
कि वे सभी बुराइयों की जड़ यानी सिस्टम को किस तरह से बदलेंगे।
नहीं चाहते मोदी से सीधा मुकाबला हो!
इंटरव्यू से यह भी पता चला कि राहुल गांधी नहीं चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनका 
बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से सीधे तौर पर कोई मुकाबला हो। वहीं, राहुल गांधी 
देश की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से परेशान हैं और वे सिस्टम को बदलना चाहते हैं। यही नहीं, 
वे अपनी पार्टी के नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के लिए भी सिस्टम को ही जिम्मेदार मानते हैं। 
राहुल गांधी के इंटरव्यू का पोस्टमॉर्टम:


सिस्टम है राहुल गांधी का पसंदीदा शब्द?
चैनल को दिए गए इंटरव्यू में राहुल गांधी ने 73 बार सिस्टम शब्द और सबसे कम 3 बार मोदी 
शब्द का इस्तेमाल किया। राहुल गांधी देश की सत्ता पर बीते करीब 10 सालों से काबिज पार्टी 
के शीर्ष नेता हैं। इंटरव्यू के दौरान राहुल गांधी ने सिस्टम को बदलने की जरुरत को बुनियादी 
बताया, लेकिन उन्होंने एक बार भी नहीं बताया कि वे किस तरह से कांग्रेस में बदलाव लाएंगे। 
उनका एक साल यो दो साल की योजना क्या है? यूथ कांग्रेस के अलावा कांग्रेस की मुख्य ईकाई 
में वे किस तरह का बदलाव चाहते हैं। उन्होंने आदर्श घोटाले में कांग्रेस नेताओं की भूमिका से 
जुड़े सवाल को सावधानी पूर्वक टाल दिया। उन्होंने देश के राजनीतिक दलों को आरटीआई के 
दायरे में लाए जाने के सवाल को भी यह कहकर चलता कर दिया कि वे चाहते हैं कि राजनीतिक 
दल इसके दायरे में आएं, लेकिन इसके लिए राजनीतिक दलों में सर्वसम्मति चाहिए। उनकी 
सिस्टम बदलने की कोशिश को बेनतीजा होते हुए हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भी 
लोगों ने देखा थ। राहुल गांधी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसी आपराधिक 
छवि वाले नेता को टिकट न देने की बात की थी, लेकिन इन राज्यों में कांग्रेस ने ऐसी ही छवि 
के कई नेताओं को टिकट दिए। 


'स्पेसेफिक' शब्द का अर्थ नहीं जानते हैं कांग्रेस के उपाध्यक्ष?
टीवी इंटरव्यू की शुरुआत में ही सवाल पूछने वाले पत्रकार ने साफ कर दिया था कि वह चाहते हैं 
कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी सवालों के जितना संभव हो सके सवालों के स्पेसेफिक 
(सटीक) जवाब दें। राहुल गांधी ने पत्रकार की इस बात पर इत्तफाक भी जाहिर किया था। 
लेकिन पूरे इंटरव्यू के दौरान कई मौकों पर राहुल गांधी ने सवाल के सटीक या सीधे जवाब न 
देकर जवाब का सामान्यीकरण कर दिया। इंटरव्यू के दौरान पूछे गए कुछ सवालों और 
उनके जवाब से इस बात को समझा जा सकता है। 
सवाल: राहुल गांधी, पहला पॉइंट तो यह है कि आप प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी उम्मीदवारी 
के सवाल को टालते रहे हैं। मुझे ऐसा लगता है कि राहुल कठिन मुकाबले से डरते हैं?
राहुल गांधी का जवाब: आप अगर कुछ दिन पहले की एआईसीसीसी में मेरी स्पीच को सुनें, तो 
साफ मुद्दा है कि इस देश में प्रधानमंत्री किस तरह चुना जाता है। यह चयन सांसदों के जरिए 
होता है। हमारे सिस्टम में सांसद चुने जाते हैं और वे प्रधानमंत्री चुनते हैं। एआईसीसी की स्पीच
 में मैंने साफ कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी मुझे किसी भी जिम्मेदारी के लिए चुनती है तो मैं तैयार 
हूं। यह इस प्रक्रिया का सम्मान है। चुनाव से पहले ही पीएम उम्मीदवार का ऐलान का मतलब है 
कि आप सांसदों से पूछे बिना ही अपने प्रधानमंत्री को चुन रहे हैं, और हमारा संविधान ऐसा नहीं 
कहता।
सवाल: क्या आप नरेंद्र मोदी का सीधा आमना सामना करने से बच रहे हैं। क्या यह डर है कि कांग्रेस 
के लिए यह चुनाव बेहतर नहीं लग रहा है और राहुल गांधी को हार का डर है? साथ ही यह सोच भी 
कि राहुल गांधी चुनौती के हिसाब से तैयार नहीं हो पाए हैं और हार का डर है। इसलिए वह नरेंद्र मोदी 
के साथ सीधे टकराव से बच रहे हैं? आपको इसका जवाब देना चाहिए।
राहुल गांधी का जवाब: इस सवाल को समझने के लिए आपको यह भी समझना होगा कि राहुल गांधी 
कौन है और राहुल गांधी के हालात क्या रहे हैं और अगर आप इस बात को समझ पाते हैं तो आपको 
जवाब मिल जाएगा कि राहुल गांधी को किस बात से डर लगता है और किस बात से नहीं लगता। 
असली सवाल यह है कि मैं यहां क्यों बैठा हूं? आप एक पत्रकार हो, जब आप छोटे रहे होगे तो आपने 
सोचा होगा कि मैं कुछ करना चाहता हूं, किसी एक पॉइंट पर आपने जर्नलिस्ट बनने का फैसला 
किया होगा, आपने ऐसा क्यों किया?
सवाल: इसलिए, क्योंकि मुझे पत्रकार होना अच्छा लगता है। यह मेरे लिए एक प्रफेशनल चैलेंज है। 
मेरा सवाल है कि आप नरेंद्र मोदी से सीधा आमना-सामना करने से क्यों बच रहे हैं?
राहुल गांधी का जवाब: मैं इसी सवाल का जवाब देने जा रहा हूं, लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि 
जब आप छोटे थे और पत्रकार बनने का फैसला किया तो क्या वजह थी?
सवाल: जब मैंने पत्रकार बनने का फैसला किया तो मैं आधा पत्रकार नहीं बन सकता था। जब एक बार 
आपने राजनीति में आने का फैसला कर लिया और पार्टी को आप नेतृत्व भी दे रहे हैं तो आप यह आधे 
मन से नहीं कर सकते हैं। अब मैं आपसे वही सवाल वापस पूछता हूं, नरेंद्र मोदी तो आपको रोज 
चैलेंज कर रहे हैं?
राहुल गांधी का जवाब: आप मेरे सवाल का सीधा जवाब नहीं दे रहे हैं। लेकिन मैं आपको जवाब देता 
हूं, जिससे आपको मेरे सोचने के बारे में कुछ झलक मिल पाएगी। जैसे अर्जुन के बारे में कहा जाता 
है कि उन्हें सिर्फ अपना निशाना दिखाई देता था। आपने मुझसे नरेंद्र मोदी के बारे में पूछा, आप 
मुझसे कुछ और भी पूछ लो। लेकिन मुझे जो बस एक चीज दिखाई देती है वह यह कि इस देश 
का सिस्टम बदलना चाहिए। मुझे कुछ और नहीं दिखाई देता, मैं और कुछ नहीं देख सकता। 
मैं बाकी चीजों के लिए अंधा हूं, क्योंकि मैं अपनों को सिस्टम से तबाह होते हुए देखा है, 
क्योंकि सिस्टम हमारे लोगों के लिए भेदभाव करता है। मैं आपसे पूछता हूं, आप असम से हैं 
और मुझे यकीन है कि आप भी अपने कामकाज में सिस्टम का यह भेदभाव महसूस करते 
होंगे। सिस्टम रोज रोज लोगों को दुख देता है और मैंने इसे महसूस किया है। यह दर्द मैंने 
अपने पिता के साथ महसूस किया, उन्हें रोज इससे टकराते हुए देखा। इसलिए यह सवाल कि 
क्या मुझे चुनाव हारने से डर लगता है या मैं नरेंद्र मोदी से डरता हूं, कोई पॉइंट ही नहीं है। मैं यहां
 एक चीज के लिए हूं, हमारे देश में बहुत ज्यादा ऊर्जा है, किसी भी देश से ज्यादा, हमारे पास 
अरबों से युवा हैं और यह ऊर्जा फंसी है।
सवाल: मैं आपका ध्यान फिर से अपने सवाल की तरफ लाता हूं। जो आप कह रहे हैं वह मैं 
समझता हूं। लेकिन सीधे तौर पर लेते हैं, नरेंद्र मोदी आपको शहजादा कहते हैं, इस बारे में 
आपकी क्या राय है? क्या आपको मोदी से हारने का डर है? राहुल इसका प्लीज सीधा जवाब 
दीजिए।
राहुल गांधी का जवाब: देश के लाखों युवा यहां के सिस्टम में बदलाव लाना चाहते हैं, राहुल गांधी 
ये चाहता है कि देश की महिलाओं का सशक्तिकरण हो। हम सुपर पावर बनने की बात करते हैं...। 


जवाब देते समय नीचे देखते रहे, आसपास खड़े लोगों को देख मुस्कुराए 
राहुल गांधी इंटरव्यू के दौरान मुश्किल सवालों के जवाब देते समय नीचे देखते रहे। वे सवाल पूछ 
रहे पत्रकार से बीच-बीच में कुछ पलों के लिए आंखें मिला रहे थे और फिर जमीन की तरफ देखते 
हुए तेजी से अपनी बात रख रहे थे। इंटरव्यू के दौरान एक बार मुश्किल सवाल का जवाब देने के 
बाद सवाल पूछ रहे पत्रकार के अलावा आसपास खड़े किसी शख्स को देखकर वे मुस्कुराए भी। 
उनकी मुस्कुराहट से यह अंदाजा लगा कि वे मुश्किल सवाल का जवाब देने पर राहत महसूस 
कर रहे हैं। इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कई सवालों को पहले अच्छी तरह से समझने के लिए कुछ 
सेकेंड का वक्त लिया और फिर जवाब दिया। कई सवाल सुनते हुए उनकी शारीरिक भाषा पर 
कई लोगों का ध्यान गया। कुछ सवाल पूछे जाने के दौरान उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं 
और वे कई सेकेंड तक बिना पलक बंद किए सवाल का जवाब सोचते दिखे। 






 


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