Thursday 23 January 2014

मोदी का विरोध और अमेरिका


मोदी का विरोध सिर्फ आर्थिक कारणों से हो रहा है,
 की सांप्रदायिक कारणों से ......

जब से अमेरिका यूरोप में यह संकेत गया है
की मोदी के सत्ता में आने से सरकारी तौर से
भी भारत निर्मित स्वदेशी वस्तुओ के उत्पादन
और उपयोग पर भारत की जनता द्वारा जोर
दिया जायेगा, ये देश मोदी का रास्ता रोकने के लिए
मोदी विरोधी शक्तिओ को खूब प्रोत्साहन दे रहे हैं.
यदि सिर्फ  साल तक जमकर
विदेशी उत्पादों का बहिष्कार कर दिया जाये
तो यूरोप और अमेरिका की मुद्राए रुपये के मुकाबले
बहुत निचे  जायेगे. सिर्फ यही नहीं, यूरोप
दुबारा मंदी की जकड में चला जायेगा और
अमेरिका यूरोप दोनों जगहों पर बेरोजगारी में
बेतहाशा वृद्धि होगी क्योकि तब भारत में सामान
का उत्पादन होने से रोजगार भारत वालो को मिलेगा.
आज के दिन भारत का सारा रोजगार चीन,
अमेरिका और यूरोप चला गया है क्योकि हम सब
लोग बाहर देशो में बना सामान खरीद रहे हैं.
गुजरात दंगे का प्रचार तो सिर्फ भारत
की जनता को मुर्ख बनाने के लिए बार बार
किया जाता है, विदेशियों द्वारा मोदी का विरोध
का सिर्फ आर्थिक कारन है. भारत में स्विट्जरलैंड
के 156 गुना लोग रहते हैं और 121 करोड़ लोग
दुनिया में सबसे बड़े ग्राहक है घटिया विदेशी उत्पादों के. 

आज भारत में 5000
विदेशी कंपनिया 27 लाख करोड़ का बिजिनेस करके
हर साल 17 लाख करोड़ रुपये को डालर में बदलकर
अपने देश ले जाती है जिससे रुपये निचे जा रहा है.
अर्थक्रान्ति प्रस्ताव के लागू हूने की भनक
भी अमेरिका को लग चुकी है जो भारत के लिए
अमेरिका की कीमत कम कर देगा.
मोदी और डॉ.स्वामी ने बीजेपी सरकार आने पर
डालर का भाव 5 साल में 21 रुपये और 10 साल में
10/- 
रुपये तक लाने की सोच रहे हैं. यदि डालर 10
रुपये हो जाये तो भारत का 46 लाख करोड़
का कर्जा सिर्फ 7 लाख करोड़ ही रह जायेगा जिसे
हम एक झटके में दे सकते हैं. 2013 के बजट 17
लाख करोड़ के बजट में से 5.35 लाख करोड़ सिर्फ
कर्ज की किश्त देने में ही चला गया जो पुरे बजट
का करीब एक तिहाई है सोचो भारत विकास कैसे
करेगा.
अमेरिका मोदी को किसी भी हालत में PM
बनता नहीं देखना चाहता है क्योकि मोदी के पीछे
सभी राष्ट्रवादी खड़े हैं. आने वाले समय में
मिडिया मोदी को और भी अनदेखी करेगा और
कजरी गिरोह को फोकस करके मोदी की राह रोकने
की योजना पर काम करेगा.
शेयर करके दूसरो को भी जागरुक करे..


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