Wednesday 11 June 2014

एक बार आप भी जरुर अमरनाथ जरूर जाये

जहां शिव ने अमरत्व का रहस्य प्रकट किया


जहां शिव ने अमरत्व का रहस्य प्रकट किया
कश्मीर में श्रीनगर से करीब 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है हिन्दूओं का परम पवित्र तीर्थस्थल अमरनाथ धाम। यहां समुद्रतल से 13 हजार 600 फुट की दूरी पर बसा है पवित्र गुफा जिसमें भगवान भोलेनाथ देवी पार्वती के साथ विराजमान रहते हैं।



पुराणों के अनुसार यही वह स्थान है जहां भगवान शिव ने पहली बार अमरत्व का रहस्य प्रकट किया था। इस तीर्थ के मार्ग में कई पड़ाव हैं जो तीर्थ स्वरूप माने जाते हैं।


अमरानाथ की सबसे खास बात

अमरानाथ की सबसे खास बात
इस तीर्थ की सबसे खास बात है बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं।



शिवलिंग श्रावण पूर्णिमा को अपने पूरे आकार में आ जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग ठोस वर्फ का निर्मित होता है। जबकि पूरी गुफा पर नजर डालेंगे तो आपको हर तरफ कच्ची बर्फ ही नजर आएगी।


 इसलिए हर साल होता है हिमलिंग का निर्माण

इसलिए हर साल होता है हिमलिंग का निर्माण
शिवलिंग के निर्माण को लेकर पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि माता पार्वती को भगवान शिव ने इसी स्थान पर अमर होने का राज बताया था। जब भगवान शिव मां पार्वती को यह कथा बता रहे थे तब वहां पर कबूतर के एक जोड़े ने इस कथा को सुन लिया। माना जाता है कि यह जोड़ा आज भी गुफा में रहता है, जिन्हें अमर पक्षी कहते हैं। भाग्यशाली श्रद्धालुओं को इनके दर्शन प्राप्त होते हैं।

भक्तों को यूं मिले बाबा अमरनाथ

भक्तों को यूं मिले बाबा अमरनाथ
भगवान शिव जब मां पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाने के लिए ले जा रहे थे तब उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को मार्ग में छोड़ दिया यह स्थान अनंत नाग कहलाया। माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा दिया।



अमरनाथ यात्रा के दौरान मार्ग में आज भी इन स्थलों के दर्शन प्राप्त होते हैं। इस गुफा की सर्वप्रथम जानकारी सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गड़रिए को प्राप्त हुई थी। इसी कारण मंदिर के चढ़ावे का एक चौथाई भाग आज भी मुसलमान गड़रिए के वंशजों को दिया जाता है।


अमरानाथ यात्रा के मार्ग में खास स्थान

अमरानाथ यात्रा के मार्ग में खास स्थान
अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए दो रास्ते है। एक रास्ता पहलगाम से होकर जाता है और दूसरा रास्ता सोनमर्ग बालटाल से होकर जाता है। पहलगाम और बालटाल तक किसी भी सवारी से पहुंचा जा सकता है। लेकिन यहां से आगे का रास्ता पैदल ही तय करना होता है।



पहलगाम से जाने वाले रास्ते को सुविधाजनक माना जाता है। क्योकि बलटाल से जाने वाला रास्ता दुर्गम है और असुरक्षित माना जाता है। इसलिए भारत सरकार द्वारा अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते ही दर्शन की सुविधा उपलब्ध कराई है। जम्मू से पहलगाम की दूरी 315किलोमीटर है। सरकार यहां से बस उपलब्ध कराती है।

इसी के साथ गैर सरकारी संस्थाए भी यहां अहम भूमिका निभाती है और दर्शन के लिए आए यात्रियों को सुविधा उपलब्ध कराती है। यात्रा के दौरान पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर पहला पड़ाव चंदनबाड़ी आता है। यहां यात्री विश्राम करते है और फिर दूसरी चढ़ाई यानि पिस्सु घाटी के लिए रवाना होते हैं।

इस स्थान से जुड़ी एक पौराणिक कथा है कि इस घाटी में देवताओं और दानवों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग श्रद्धालुओं का दूसरा पड़ाव होता है। यहां पर एक बहुत सुंदर झील है किंवदंतियों के अनुसार शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील से बाहर निकलकर लोगों को दर्शन देते है।

शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे से आगे बढ़ते हुए महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी धाराएं बहती है इसी के कारण इस स्थान का नाम पंचतरणी है।

यहां श्रद्धालुओं को सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि ऑक्सीजन की कमी इस स्थान पर पाई जाती है। यहां से अमरनाथ की गुफा आठ किलोमीटर दूर रह जाती है लेकिन आगे के रास्ते में बर्फ जमी होने के कारण रास्ता कठिन हो जाता है। इस रास्ते को तय करने के बाद भक्त बाबा अमरनाथ के दर्शन करते है।






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