Monday 9 June 2014

हनुमान चलीसा का मतलब और महत्व


बेजोड़ रत्न है हनुमान चालीसा

हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हनुमान जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-चालीसा एक ऐसी कृति हैजो हनुमान जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्तिभक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर सकता है। हनुमान चालीसा का एक एक दोहाचौपाई हमें कुछ न कुछ सिखाता है। अब तक अगर बिना अर्थ जाने पाठ करते आए हैं या अर्थ जानना चाहते हैं तो पढ़िए

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शुद्धताताकत और बुद्धि
हनुमान चालीसा शुरू होती है यूं:

श्रीगुरु चरण सरोज रजनिज मनु मुकुर सुधारि
बरनउ रघुवर बिमल जसुजो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिकेसुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहिहरहु कलेश विकार

इस दोहे के मुताबिकहनुमान जी कहते हैं कि चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ करश्रीराम के दोषरहित यश का वर्णन करता हूँ जो धर्मअर्थकाम और मोक्ष रूपी चार फल देने वाला है। स्वयं को बुद्धिहीन जानते हुएमैं पवनपुत्र श्रीहनुमान का स्मरण करता हूँ जो मुझे बलबुद्धि और विद्या प्रदान करेंगे और मेरे मन के दुखों का नाश करेंगे।
सीखः हमें अपने मस्तिष्क की शुद्धि कर श्रीराम का ध्यान करना चाहिए जो भगवान विष्णु का रूप हैं। जब हम मान लेते हैं कि हममें बुद्धि की कमी है तो हनुमान जी के विचारों के अनुसरण भर से हम अपने मन की शुद्धिबलबुद्धि और विद्या प्राप्त करने लगते हैं

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जय हनुमान ज्ञान गुन सागरजय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामाअंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगीकुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसाकानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

यानीहनुमान ज्ञान का सागर हैं जिनके पराक्रम का पूरे विश्व में गुणगान होता है। हनुमान ही वीरता का प्रतीक माने जाते हैं। हनुमान जी श्रीराम के दूतअपरिमित शक्ति के धामश्री अंजनि के पुत्र और पवनपुत्र नाम से जाने जाते हैं। हनुमान जी महान वीर और बलवान हैंवज्र के समान अंगों वालेखराब बुद्धि दूर करके शुभ बुद्धि देने वाले हैंआप स्वर्ण के समान रंग वालेस्वच्छ और सुन्दर वेश वाले हैंआपके कान में कुंडल शोभायमान हैं।

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हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदनतेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुरराम काज करिबे को आतुर॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसियाराम लखन सीता मनबसिया॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावाविकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥
भीम रूप धरि असुर संहारेरामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

यानीकंधे पर अपनी गदा लिए हनुमान जी का सिर्फ एक प्रेम है और वो है अपने आराध्य श्रीराम की आज्ञा का पालन करना। इसके लिए वे अलग-अलग रूप धारण करने से नहीं चूकते। आप सूक्ष्म रूप में श्रीसीताजी के दर्शन करते हैंभयंकर रूप लेकर लंका का दहन करते हैंविशाल रूप लेकर राक्षसों का नाश करते हैं। हनुमान जी विद्वानगुणी और अत्यंत बुद्धिमान हैंश्रीराम के कार्य करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। आप श्रीराम कथा सुनने के प्रेमी हैं और श्रीरामश्रीसीताजी और श्रीलक्ष्मण के ह्रदय में बसते हैं। आपके महान तेज और प्रताप की सारा जगत वंदना करता है।
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लाय सजीवन लखन जियाएश्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाईतुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैअस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥
भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण की जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाकर हनुमान जी ने अपने आराध्य श्रीराम का मन मोह लिया। श्रीराम इतने खुश हुए कि उन्होंने अपने भाई भरत की तरह अपना प्रिय भाई माना। इससे हमें सीख लेनी चाहिए। किसी काम को करने में देर नहीं करनी चाहिएअच्छे फल अवश्य मिलेंगे।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसानारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
हनुमान जी का ऐसा व्यक्तित्व है सनक आदि ऋषिब्रह्मा आदि देव और मुनिनारदसरस्वती जी और शेषनाग जीयमकुबेर आदि दिग्पाल भी उनके यश का वर्णन नहीं कर सकते हैंफिर कवि और विद्वान कैसे उसका वर्णन कर सकते हैं। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें जितना हो सके उतना सहज और बहुउपयोगी स्वभाव का होना चाहिए।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हाराम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥
यानीतुमने(हनुमान जी ने) श्रीराम और सुग्रीव को मिलाने का काम किया जिसके चलते सुग्रीव अपनी मान-प्रतिष्ठा वापस हासिल कर पाए।

सीखः जीवन में आपको कभी ऐसा मौके मिले तो पहल करने से न चूकें।
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 तुम्हरो मंत्र बिभीषण मानालंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥
यानीहनुमान जी की सलाह ने विभीषण को लंका का राजा बनाया।

सीखः अच्छी सलाह सुनने के लिए अपने कान खुले रखिए और सलाह मानने के लिए अपने हृदय को विनम्र रखें।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानूलिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीजलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥
यानीहनुमान जी ने बचपन में ही सूर्य को मीठा फल समझकर निगलने की कोशिश की और वयस्कावस्था में श्रीराम की अंगूठी को मुंह में दबाकर लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र पार किया।

सीखः याद रखेंबड़ी जिम्मेदारियों के साथ स्वतः ही ताकत का जन्म होता है।
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 दुर्गम काज जगत के जेतेसुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारेहोत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
यानीजब हनुमान जी की जिम्मेदारी में कोई काम होता हैतो जीवन सरल हो जाता है। हनुमान जी स्वर्ग यानी श्रीराम तक पहुंचने के द्वार की सुरक्षा करते हैं। उनके आदेश के बिना वहाँ प्रवेश नहीं होता है। जब हनुमान जी आप रक्षक हैं तो डर किस बात का।

सीखः जीवन में ऐसी आत्माओं से मुलाकात होती है असंभव को संभव बनाने में सक्षम होते हैं। उन्हें पहचानें।
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सब सुख लहैं तुम्हारी सरनातुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपैतीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहि आवैमहावीर जब नाम सुनावै॥२४॥
नासै रोग हरे सब पीराजपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥
यानीहनुमान जी के तेज को वे स्वयं ही संभाल सकते हैं। उनके तेज से सारा विश्व कांपता है। सिर्फ हनुमान जी के नाम का स्मरण ही एक शक्तिशाली कवच का काम करता है। एक ऐसा कवच जो भूत-पिशाच और बीमारियों से आपकी रक्षा करता है।
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संकट तै हनुमान छुडावैमन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजातिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥
यानीरामभक्त हनुमान का ध्यान करने और मन लगाकर अपने काम करने से मेहनत का फल अवश्य मिलेगा। जो श्री हनुमान जी का मनकर्म और वचन से स्मरण करता हैवे उसके सभी संकट दूर करते हैं।
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चारों जुग परताप तुम्हारा,है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारेअसुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाताअस बर दीन जानकी माता॥३१॥
यानीहनुमान जी की छवि चारों लोकों से भी बड़ी है। आपका प्रकाश सारे जगत में प्रसिद्ध है। हनुमान जी साधु- संतों की रक्षा करने वालेअसुरों का विनाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं। लेकिनअपने ऐश्वर्य के बावजूद हनुमानजी कमजोर और दलितों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उनके लिए भी हमेशा मौजूद रहते हैं जो शैतान से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं।
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राम रसायन तुम्हरे पासासदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावैजनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाईजहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥
यानीश्रीराम तक तुम्हारी(हनुमान जी की) पहुंच मात्र तुम्हारा नाम जपने से शक्ति प्रदान करती है। आपके स्मरण से जन्म- जन्मान्तर के दुःख भूल कर भक्त श्रीराम को प्राप्त करता है और अंतिम समय में श्रीराम धाम में जाता है और वहाँ जन्म लेकर हरि का भक्त कहलाता है। दूसरे देवताओं को मन में न रखते हुएश्री हनुमान से ही सभी सुखों की प्राप्ति हो जाती है।
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संकट कटै मिटै सब पीराजो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँकृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥
यानीहनुमान जी से प्रार्थना करते ही दुख-दर्द सब खत्म हो जाते हैं। उनका दयालु हृदय नम्र स्वभाव लोगों पर हमेशा दया करता है।
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जो सत बार पाठ कर कोईछूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसाहोय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥
यानीजो सौ बार हनुमान चालीसा का पाठ करता हैवह न सिर्फ खुशी और मुक्ति का एहसास करता है। बल्किशिव-सिद्धी भी हासिल करता है और जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट जाता है।
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तुलसीदास सदा हरि चेराकीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥
यानीतुलसीदास जी ने भी अपनी इस कविता का समापन करते हुए बताया है कि वे क्या हैं?…वे स्वयं को भगवान का भक्त कहते हैंसेवक मानते हैं और प्रार्थना करते हैं कि प्रभु उनके हृदय में वास करें।
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पवन तनय संकट हरनमंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहितहृदय बसहु सुर भूप॥
यानीपवनपुत्रसंकटमोचनमंगलमूर्ति श्री हनुमान आप देवताओं के ईश्वर श्रीरामश्रीसीता जी और श्रीलक्ष्मण के साथ मेरे हृदय में निवास कीजिए।
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जय वीर हनुमान

तो देखा आपने साधारण-सी लगने वाली इस कविता में कितना ज्ञान छिपा है। हनुमान चालीसा सिर्फ हनुमान जी की छवि और व्यक्तित्व का बोध नहीं कराती बल्कि जीवन मूल्यों का दर्शन भी करवाती है। रामभक्त हनुमान का आशीर्वाद सदा सबके साथ बना रहे।

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