Tuesday 11 February 2014

सोनिया गांधी ने कतरे राहुल के पर

कांग्रेस को नहीं राहुल पर भरोसा?


कांग्रेस को नहीं राहुल पर भरोसा


ब्रांड राहुल पर 500 करोड़ रुपए खर्च होने का असर टीवी और प्रिंट में दिखने लगा है और यह साफ हो गया‌ कि राहुल गांधी, भाजपा के सेनापति नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से लोहा लेने को पूरी तरह तैयार हैं।

राहुल और कांग्रेस, दोनों में हिचकिचाहट दिखाई दे रही थी, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आए, कांग्रेस उपाध्यक्ष ने साफ कर दिया कि वह चुनावी समर में कूदे हैं, तो आक्रामक रुख भी रखते हैं। गुजरात की रैली में उन्होंने मोदी पर करारा हमला किया।

मंगलवार को खबर आई है कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के प्रचार को लेकर एक बड़ा फैसला किया है। ऊपरी सतह देखें, तो इसमें कुछ खास नहीं दिखता। लेकिन गहराई से जांच-पड़ताल करें, तो मालूम देता है कि पार्टी में राहुल गांधी का डिमोशन हो गया है। राहुल को कांग्रेस अगले पीएम के रूप में देख रही है, ऐसे में यह खबर हैरान करने वाली हो सकती है, लेकिन सच है।


प्रचार की कमान सौंपी, फिर वापस ली

कहानी दरअसल यह है कि लोकसभा चुनावों की अगुवाई राहुल गांधी को सौंपने के तीन हफ्ते के भीतर, कांग्रेस ने चौंकाने वाला ऐलान करते हुए बताया कि प्रचार समिति की अगुवाई सोनिया गांधी करेंगी। राहुल इस पैनल के को-चेयरमैन होंगे। ऐसे में यह साफ है कि प्रचार का जिम्मा इन्हीं दोनों के कंधों पर रहेगा।मंगलवार को पार्टी की ओर से 50 सदस्यों वाले जिस बड़े पैनल की घोषणा की गई, उसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उनके कई कैबिनेट सहयोगी और पार्टी के कई दिग्गज नेता शामिल हैं।

इसमें किसी मुख्यमंत्री को शामिल नहीं किया गया है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और शीला दीक्षित को जगह दी गई है। इस समिति की अध्यक्ष के रूप में सोनिया के नाम का ऐलान हैरान करने वाला है, क्योंकि इसकी अगुवाई का जिम्मा पहले राहुल को‌ दिया गया था।


सोनिया गांधी संभालेंगी जिम्मा

प्रचार की कमान सोनिया गांधी के हाथों में देने का यह फैसला राहुल को केंद्र में रखकर बुने गए ब्रांड अभियान के बाद आया है। ऐसे विज्ञापनों में केवल राहुल गांधी को तरजीह दी गई है और कांग्रेस ने उन्हें भाजपा के पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के सामने उतारा है।
संयोग से यह फैसला ऐसे वक्‍त भी हुआ, जब मोदी सोनिया गांधी को अलग रखते हुए केवल राहुल गांधी पर हमला बोल रहे हैं। राहुल के टेलीविजन इंटरव्‍यू को लेकर भी आलोचना का सामना करना पड़ा था। इसमें 84 के दंगों का मामला उठ गया और उनकी चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े हुए।

कांग्रेस के इस पैनल में केंद्रीय मंत्री पी चिंदबरम, ए के एंटनी, सुशील कुमार शिंदे, सलमान खुर्शीद, आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल, कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा और पार्टी के सभी महासचिव शामिल हैं।

राहुल के सारे साथियों को जगह नहीं

राहुल गांधी को लेकर इसलिए भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि इस पैनल में उनकी युवा बिग्रेड के ज्यादा सदस्यों को जगह नहीं दी गई। इसमें सिर्फ जीतेंद्र सिंह और कृष्‍णा बायरे गौड़ा हैं। हालांकि मनीष तिवारी, रणदीप सुरजेवाला, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिनेश गुंडूराव और अनंत गाडगिल को शामिल किया गया है।

जनवरी के मध्य में राहुल गांधी को चुनाव प्रचार की कमान सौंपने का ऐलान हुआ था, ऐसे में सवाल उठ सकता है कि इतने कम वक्‍त में ऐसा क्या हो गया कि सोनिया गांधी को यह जिम्मेदारी अपने हाथों में लेनी पड़ी और राहुल अब डिप्टी हो गए।

उस वक्‍त पार्टी के नेता जनार्दन द्विवेदी ने कहा था, "कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष ने ऐलान किया कि आगामी चुनावों के प्रचार का जिम्मा राहुल गांधी संभालेंगे।" पार्टी उम्मीद कर रही थी कि उनका करिश्मा पार्टी का बेड़ा पार लगा देगा।

राहुल पर दांव खेलने से कतराई कांग्रेस

कांग्रेस में इस बात को लेकर भी मांग उठती रही कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया जाए, ताकि जनता को इस बात का इल्म रहे कि अगर वह सत्ता में आती है, तो उसकी अगुवाई कौन करेगा।
जब राहुल की ताजपोशी हुई, तो कॉरपोरेट मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने कहा, "पार्टी में काफी बदलाव आएगा।" दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में गांधी परिवार कांग्रेस की सियासत की बुनियाद की तरह है।

लेकिन यह मुमकिन है कि राहुल गांधी को सारा जिम्मा सौंपने के बाद चुनाव प्रचार में कुछ गड़बड़ हो सकती है, ऐसे में सोनिया गांधी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहतीं और डैमेज कंट्रोल के लिए खुद जिम्मेदारी संभालने को तैयार हैं। हालांकि, उनकी गिरती सेहत कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बनी हुई थी, यही वजह है कि राहुल को सामने रखा गया था।


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