Sunday 16 February 2014

राहुल गांधी फिर हारे 'कांग्रेसी व्यवस्था' से


हाथी नहीं अण्डा


हाथी नहीं अण्डा


क्रिकेटर, कमेंटेटर नवजोत सिंह सिद्धू जब रौ में होते हैं तो एक फ़िकरा कसते हैं। वह कहते है कि मुर्गी ने शोर तो इतना किया जैसे वह हाथी देने वाली है, पर अंत में निकला सिर्फ अण्डा। राजनीति खेल तो नहीं है पर सिद्धू का यह फ़िकरा आज राजस्थान में कांग्रेस पार्टी पर सटीक बैठता है।

हाल के विधानसभा चुनाव की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने कई बदलावों का वादा किया, पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन की कसमें खाईं, निचले स्तर तक के कार्यकर्ता का सुझाव लेकर प्रत्याक्षी चुनने के क्रांतिकारी बदलाव का भरोसा जताया।

लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात, या यूँ कहें किहाथी नहीं अण्डा।

पार्टी की राजस्थान में हालिया राजनीति को देख कर ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के उपदेश और विधानसभा चुनाव के सन्देश का कोई ख़ास असर नहीं हुआ है। लोकसभा की तैयारी में जुटी कांग्रेस फिर उसी ढर्रे पर लौट आई है जिस पर चलते हुए उसे दिसंबर में वीरगति नहीं, दुर्गति प्राप्त हुई थी।


वही घिसे-पिटे नाम

कहने को तो कांग्रेस ने राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन कर के यह संदेश दिया है कि हार के बाद पार्टी नए सिरे से, नए चेहरों और मोहरों के साथ लोकसभा चुनाव में उतरना चाहती है। लेकिन जिस तरह के नाम लोकसभा के लिए छंटनी के लिए सामने आए हैं उससे लगता है वंशवाद, जातिवाद और पुराने, पराजित, घिसे-पिटे चेहरों के आगे कांग्रेस अब भी नहीं सोचना चाहती।

कुछ नामों पर गौर फ़रमाएं: वैभव गहलोत, बृजकिशोर शर्मा, प्रमोद जैन भाया, गिरिजा व्यास, नमोनारायण मीणा, लालचंद कटारिया। बाबा लोगों और बुज़ुर्गों की सूची ज़रा लम्बी है, पर बिंदु बहुत छोटा सा, नए लोगों और नई सोच के लिए अभी पार्टी तैयार नहीं है।

वैभव, पराजित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नौनिहाल, अपने पिता की राजनीतिक विरासत को सहेजने के लिए जालोर-सिरोही से मैदान में कूद पड़े है। ये बात दीगर है कि वैभव का कांग्रेसी राजनीति में योगदान शून्य है, पर जालौर के माली मतदाताओं कि संख्या देखा कर उनकी भी लंबी पारी खेलने की लालसा जाग गई है।

कांग्रेस में लोग अब भी बंद कमरों में और दबी जुबां से कहते नहीं थकते कि कांग्रेस सेनापति गहलोत के नेतृत्व में दो बार रण में खेत रही और इसकी उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए, न कि पुनर्वास पैकेज। अंदरूनी आक्रोश की परिणति देखिए, वैभव का नाम एकमात्र प्रत्याशी के रूप में जालौर कि ज़िला कांग्रेस कमेटी ने ऊपर भेजा है।


आप से होगी टक्कर

कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का जयपुर में है। यहाँ पर आम आदमी पार्टी का ज़िक्र ज़रूरी है।

'आप' इन दिनों जयपुर के लिए एक कद्दावर प्रत्याशी चुनने की कवायद कर रही है। करीब 1000 लोगों ने टिकट के लिए आवेदन किया है, इनमें शामिल हैं शहर के डॉक्टर, वकील, समाजसेवी आदि।

और कांग्रेस? पार्टी कहती है कि उसके पास सिर्फ 3-4 नाम हैं जिन पर वह चर्चा करना चाहती है। नाम भी सुन लीजिए, नवलकिशोर शर्मा के पुत्र बृजकिशोर, भैरोंसिंह शेखावत के भतीजे प्रतापसिंह खाचरियावास और शहर कांग्रेस के अध्यक्ष सलीम के फ़रज़ंद अमीन कागज़ी।

ये तीनों सिर्फ वंशवाद के प्रतीक नहीं भी होते तो भी इनके नाम सुन कर दांतों तले अंगुली बरबस चली जाती। कारण- तीनों अभी ताज़ा-ताज़ा विधानसभा में अपनी मिट्टी पलीद करवा चुके हैं।


जाति का गणित

जयपुर और जालौर तो सिर्फ उदाहरण है कांग्रेस में लगी घुन के। कमोबेश सभी जगह पार्टी अब भी पुराने राजनीतिक रसूख वाले परिवारों से पटी पड़ी है और घूम फिर कर वही सामने आ जाते हैं।

यह माजरा क्या है जो परिवारवाद, चाटुकारिता और सच न बोल पाने की अक्षमता का ज़हरीला कॉकटेल चाह कर भी कांग्रेसी रगों से नहीं निकलता? राहुल भी ग़ालिबन सिर्फ यही सोच सकते हैं कि आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है!

पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट, जो स्वयं भी वंशवाद की फसल काट रहे हैं, के सामने इसका ज़िक्र करना बेमानी होगा। पर कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव अरोरा कहते हैं कि परिवारों का तंज़ सिर्फ कांग्रेस पर कसना ग़लत है।

वह कहते हैं, "वसुंधरा राजे, दुष्यंत सिंह किस व्यवस्था के प्रतीक हैं? कांग्रेस में सभी प्रत्याशी अपनी मेहनत और लगन से ऊपर आते हैं। परिवार सिर्फ पहचान देता है, काबिलियत नहीं।"

कांग्रेसी नेता शायद यह भूल जाते हैं कि वंशवाद-केन्द्रित राजनीति के पक्ष में ऐसी ही सतही दलीलों से पार्टी युवा और मध्य वर्ग में अलोकप्रिय होती जा रही है और इसी बीमारी से छुटकारा दिलाने का प्रण राहुल सार्वजनिक मंच पर ले चुके हैं।

कांग्रेस की जातिवादी सोच से मुक्ति भी फ़िलहाल असम्भव लग रही है। पायलट को अध्यक्ष बनाते वक्त लगा था पार्टी जाट-ब्राह्मण-ओबीसी के परंपरागत गलघोंटू गणित से बाहर निकल रही है।

पायलट गुर्जर हैं और इस वर्ग का कोई खास पोलिटिकल वजन नहीं है। लेकिन विधानसभा में दल के नेता का चुनाव करते समय जाट विधायक रामेश्वर डूडी को पगड़ी पहनाते ही ये साबित हो गया कि राहुल अपने गणित से जाति का बीजगणित अभी नहीं निकाल पाएंगे।


हवा के साथ बहता है राजस्थान

हवा के साथ बहता है राजस्थान

राजस्थान कांग्रेस के लिए करो, मारो या मरो का प्रदेश है। यहाँ की 25 लोकसभा सीट्स नरेन्द्र मोदी और राहुल दोनों का भविष्य बना और बिगाड़ सकती है।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 10% सीट्स से जीती थी, इस हिसाब से दो लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस अब जीत जाती है तो लगेगा कि हालात और ज्यादा नहीं बिगड़े है।

राजस्थान ऐसा प्रदेश है जो हवा के साथ बहता है तो बीजेपी या कांग्रेस को पूरा उड़ा देता है। कांग्रेस को डर है कहीं वसुंधरा राजे का मिशन-25 पूरा न हो जाये।

पुराने फ़ॉर्मूलों और चेहरों पर वापस जाने के पीछे शायद कांग्रेस के पास कारण सिर्फ ये ही है कि अभी एक-एक सीट पर उसे लड़ने के लिए सबसे उचित नाम चाहिए। अब अगर ये नाम पुराने परिवारों से आते हैं या विधानसभा के रणक्षेत्र में घायल योद्धाओं से, कांग्रेस को फर्क नहीं पड़ता।

पूर्व कांग्रेसी विधायक संयम लोढ़ा कहते हैं, "नए चेहरों पर दांव खेलने का वक़्त कुछ समय बाद आएगा, अभी तो जंग दरवाज़े पर है।"

सच है, अपने घर में राहुल का बताया सफाई अभियान रुक सकता है, अभी तो राजस्थान में सफाए से बचना है।

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