Friday 21 February 2014

क्या है टेलीपैथी ?



भविष्य का आभास कर लेना या किसी को देखकर उसके मन की बात भांप लेने की शक्ति कुछ लोगों के पास होती है। मोटे तौर पर इसे ही टेलीपैथी कह दिया जाता है। टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस तबादले को कहते हैं जिसमें हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता, यानी इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं होता है।

टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था। कहते हैं कि जिस व्यक्तिमें यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए गए हैं। लेकिन, इसे प्रमाणित करना बड़ा मुश्किल है। इस क्षेत्र में बहुत से प्रयोग हो चुके है

लेकिन संशय करने वालों का तर्क है कि टेलीपैथी के कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल सके हैं. कुछ लोग टैक्नोपैथी की बात करते हैं. उनका मानना है कि भविष्य में ऐसी तकनोलॉजी विकसित हो जाएगी जिससे टेलीपैथी संभव हो.
इंगलैंड के रैडिंग विश्वविद्यालय के कैविन वॉरिक का शोध इसी विषय पर है कि किस तरह एक व्यावहारिक और सुरक्षित उपकरण तैयार किया जाए जो मानव के स्नायु तंत्र को कंप्यूटरों से और एक दूसरे से जोड़े. उनका कहना है कि भविष्य में हमारे लिए संपर्क का यही प्रमुख तरीक़ा बन जाएगा.

टेलीपैथी यानी दूर रहकर भी हर बात जान लेना
=========================================

टेलीपैथी यानी दूर रहकर भी हर बात जान लेना टेलीपैथी को आज एक महत्वपूर्ण एवं सुविख्यात विधा के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। टेलीपैथी का मतलब है दूर रहकर आपसी सूचनाओं का बगैर किसी भौतिक साधनों के आदान-प्रदान। इंसान हर समय हर जगह उपलब्ध नहीं हो सकता। इसी कारण उसे सदा से ही एसी तकनीकी की आवश्यकता रही है जो दूरियों के बावजूद उसके कामों को रुकने न दे।

टेलीपैथी ऐसी ही एक मानसिक तकनीक है जो दूरियों के बावजूद हमारी बातों को इच्छित लक्ष्य तक पहुंचा देती है। टेलीपैथी यानि विचार संप्रेषण के द्वारा आज कई कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है।

टेलीपैथी के दो केन्द्र होते हैं। एक केन्द्र ब्रॉडकास्टिंग करता है और दूसरा रिसीवर की भूमिका निभाता है। हजारों मील दूर बैठे किसी व्यक्ति तक कोई संदेश बिना किसी उपकरण के मानसिक शक्ति के द्वारा ही पंहुचाया जा सकता है।

मनुष्यों को तो इस विद्या को सीखना पड़ता है किन्तु प्रकृति के सच्चे सहचर सामान्य जीव-जन्तुओं में टेलीपैथी की विद्या जन्मजात पाई जाती है। ऐसा ही एक प्राणी है कछुआ जिसे इस विद्या में महारत हासिल है।

मादा कछुआ समुद्र के किनारे अण्डे देकर दूर यात्रा पर चली जाती है। वह हजारों मील दूर से अपने अण्डों से लगातार सम्पर्क बनाए रखती है। इन अण्डों को पकने में ३० से ४० दिनों का समय लगता है। इस पूरे समय के बीच में एक बार भी वह अण्डों के पास नहीं आती। वह हजारों मील दूर से अण्डों के पकने में आवश्यक मदद करती रहती है। यदि कोई अण्डों को नष्ट कर दे तो इसकी सूचना उसेे तुरंत मिल जाती है। इतना ही नहीं यदि किसी दुर्घटना में उस मादा कछुए की मौत हो जाए तो कुछ ही समय में अण्डों के अन्दर के बच्चे मर जाते हैं और कुछ घण्टों में ही सारे अण्डे सडऩे लगते हैं।

टेलीपैथी के उदाहरण हमें अत्यंत प्राचीन काल से ही देखने को मिलते हैं। वैदिक काल के ऋषि-मुनियों में इस विद्या का प्रयोग होना एक सामान्य बात थी। ऐसा ही एक उदाहरण हमें रामायण काल में भी देखने को मिलता है। माता सीता की खोज करने का वचन देकर भी जब सुग्रीव प्रमादवश वचन नहीं निभाता है तो यह विचार श्री राम के मन में खेद उत्पन्न करता है। ठीक उसी समय यही विचार हनुमान के मन भी संप्रेषित हो जाता है। वीर हनुमान तत्काल बिना कहे ही राम का विचार सुग्रीव तक पहुंचा देते हैं

वैचारिक चोरी या टेलीपैथी!
========================

ऐसा दुर्लभ संयोग कभी देखने को नहीं मिला कि दो पत्रकारों के विचार एकदम शब्दशः एक जैसे हों. लेकिन दिल्ली और भोपाल के बीच सात सौ किलोमीटर की दूरी पर बैठे दो वरिष्ठ पत्रकारों को एक समय में एक ही आइडिया आया. दोनों ने अपनी कलम चलाई, नतीजा ऐसा निकला कि पूरा पत्रकार जगत हैरान हो सकता है. इन दोनों पत्रकारों ने जो लेख लिखे वे शब्द-दर-शब्द एक जैसे हैं.

मेंटल टेलीपैथी
==========

विचारों का प्रक्षेपण (ट्रांसमिशन) या आदान-प्रदान और प्राणिक ऊर्जा प्रक्षेपण मनुष्य का जन्मजात गुण है, जो शारीरिक इंद्रियों से पूरी तरह स्वतंत्र होता है। इसे टेलीपैथी, मानसिक पठन कहते हैं। इसे ही विचार आदान-प्रदान मानसिक विचार प्रत्यारोपण विचार अदला-बदली, प्राणिक शक्ति चिकित्सा आदि कहते हैं। उसे अतीन्द्रिय शक्ति भी कहा जा सकता है। यह आत्मिक और मानसिक शक्तियों का करिश्मा और चमत्कार है। इसे यह अच्छी तरह मालूम है कि हमारी आत्मिक और मानसिक शक्ति हमारी इंद्रियों द्वारा अभिव्यक्त और प्रकट होती है और यही इंद्रियां बाहरी ज्ञान को भी भीतर पहुंचाती हैं।

हमारी ज्ञान इंद्रियां ही हमारे विचारों, इच्छाओं और विभिन्न संवेगों तथा आत्मा की आवाज को मनुष्य के मन को एक-दूसरे पर जाहिर करती हैं ,प्रकट करती हैं। ये इंद्रियां बिना शारीरिक इंद्रियों का सहारा लिए भी विचार प्रक्षेपण में कान के माध्यम से बोलती-सुनती और देखती हैं। आत्मिक और मानसिक शक्तियों, तांत्रिक नियमों के मुताबिक काम करती हैं।

तंत्र कहता है-मनुष्य का वास्तविक स्थितत्व आत्मिक शक्तियों के अपने संगठनात्मक ढांचे में है न कि शारीरिक ढांचे में। हमारे भौतिक शरीर के स्थूल शरीर, मानसिक शक्तियों के संगठनात्मक ढांचे के कारण शरीर और आत्मिकशक्ति के ढांचे के कारण सूक्ष्म या आध्यात्मिक शरीर कहा गया है। इस प्रकार हमारे स्थूल शरीर के कारण शरीर और आध्यात्मिक शरीर के रूप में तंत्र में दर्शाया गया है जो तीन शरीर का प्रतिनिधित्व (चित्त, मन, आत्मा) करता है।

मानसिक और आत्मिक शक्तियों का संबंध ठीक उसी प्रकार है, जैसा हमारे विचार और उसकी अभिव्यक्ति का है। अगर इन शक्तियों का व्यवहार किसी व्यक्ति पर किया जाता है, तो उसमें समय और स्थान की सीमा बाधा नहीं पहुंचाती। यह आत्मिक संबंधों पर पूर्ण रूप से आधारित होता है और उस समय सार्वदेशिक और सार्वकालिक रूप उसका हो जाता है और देखने को मिलता है। इस क्रिया में भौतिक शक्तियां भी सहयोग करती हैं।

मानसिक और आत्मिक शक्तियों का प्रायः एक-दूसरे के मन पर, बिना समय और दूरी की प्रवाह किए, पड़ता है। मानसिक स्वभाव की होती आध्यात्मिक घटनाएं पूरी तरह आध्यात्मिक शक्ति का खेल होती हैं। मानसिक स्वभाव की हो रही घटनाएं अपने प्रभाव डालने की क्रिया में अचूक होती हैं।

मानसिक और अध्यात्मिक शक्ति के प्रयोग में व्यक्ति का शरीर और शारीरिक इंद्रियां पूरी तरह सम्मोहित होकर समाधि की स्थिति में चली जाती हैं और मानसिक क्रिया एक मन से दूसरे मन पर अपना काम करना शुरू करती हैं, चाहे वह टेलीपैथी हो, मानसिक विचार प्रक्षेपण हो या प्राणिक चिकित्सा हो।यह क्रिया वास्तव में मन ही मन पर नहीं होती, बल्कि मन से पूरी तरह स्वतंत्र क्रिया होती है।



No comments:

Post a Comment