Monday 17 February 2014

कैसे और क्‍यों बनाया अमेरिका ने अरविंद केजरीवाल को, पढि़ए पूरी कहानी


कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने घोर सांप्रदायिक सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर परिवर्तन नामक एनजीओ से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो श्रीमान ईमानदार को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में परिवर्तन में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी फोर्ड फाउंडेशन  रॉकफेलर ब्रदर्स फंड ने 'उभरते नेतृत्व' के लिए रेमॉन मेग्सेसाय पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके।  इसके बाद अरविंद ने उसी पैसे से 19 दिसंबर 2006 को पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन(सीपीआरएफ) नामक संस्‍था का गठन किया और अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ कबीर से भी जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था।  

अरविंद को समझने से पहले रेमॉन मेग्सेसाय को समझ लीजिए!


अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो  ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी फोर्ड द्वारा संचालित फोर्ड फाउंडेशन एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में रेमॉन मेग्सेसाय को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। रेमॉन मेग्सेसाय के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय छवि निर्माण से लेकर उन्हें नॉसियोनालिस्टा पार्टी का  उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी एडवर्ड लैंडस्ले ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई।
ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और डर्टी ट्रिक्स के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति क्वायरिनो की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की गढ़ी गई ईमानदार छवि और क्वायरिनो की कुप्रचारित पतित छवि ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल को एक मात्र ईमानदार और नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक व एक लड़की की जासूसी कराने वाला बताकर, मीडिया जो 'डर्टी ट्रिक्‍स' का खेल, खेल रही है, वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है।
उन्हीं रेमॉन मेग्सेसाय के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को फोर्ड फाउंडेशन  रॉकफेलर ब्रदर्स फंड मिलकर अप्रैल 1957 से रेमॉन मेग्सेसाय अवार्ड प्रदान कर रही है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को वही रेमॉन मेग्सेसाय पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी फोर्ड फाउंडेशन के फंड से उनका एनजीओ कबीर और इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट खड़ा हुआ है। 


भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग! 
फोर्ड फाउंडेशन के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर को डच दूतावास से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है।
अंग्रेजी अखबार पॉयनियर में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ हिवोस के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है।  इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। हिवोस को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।
डच एनजीओ हिवोस’  दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं।  इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने पनोस नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय पनोस के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है। सीएनएन-आईबीएन  आईबीएन-7’ चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई पॉपुलेशन काउंसिल नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही रॉकफेलर ब्रदर्स करती है जो रेमॉन मेग्सेसाय’  पुरस्कार के लिए फोर्ड फाउंडेशन के साथ मिलकर फंडिंग करती है।
माना जा रहा है कि पनोस और रॉकफेलर ब्रदर्स फंड की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल सीएनएन-आईबीएन व हिंदी चैनल आईबीएन-7’ न केवल अरविंद केजरीवाल को गढ़ने में सबसे आगे रही हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को इंडियन ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। इंडियन ऑफ द ईयर के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी जीएमआर भ्रष्‍टाचार में में घिरी है।
जीएमआर के स्वामित्व वाली डायल कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सीएजी’  ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को गढ़ा है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा।

1 लाख 63 हजार करोड़ के घोटाले में फंसी कंपनी ने अरविंद केजरीवाल को बनाया इंडियन ऑफ द ईयर!

अरविंद केजरीवाल के उभार के पीछे है अमेरिका का हथियार उद्योग!

जनलोकपाल आंदोलन से आम आदमी पार्टी तक का शातिर सफर!


आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए इंडिया अगेंस्ट करप्शन का नारा देते हुए वर्ष 2011 में जनलोकपाल आंदोलन की रूप रेखा खिंची।  इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में लॉंच कर दिया। 
अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा उस वक्‍त समझ में आई समझने में जब आंदोलन का पैसा अरविंद ने अपने एनजीओ सीपीआरएफ के एकाउंट में डालना शुरू कर दिया। अन्‍ना के पूर्व ब्‍लॉगर राजू पारूलकर ने अपने ब्‍लॉग में लिखा है कि उस आंदोलन व अन्‍ना के नाम का एसएमएस कार्ड बेचकर अरविंद ने करीब 200 करोड़ रुपए इकट्ठा किया और अन्‍ना को केवल 2 करोड रुपए थमाना चाहा। इसे लेकर अन्‍ना-अरविंद के बीच काफी विवाद हुआ, जिसे उन लोगों ने कैमरे में कैद कर लिया और इसे दिखाकर अन्‍ना को ब्‍लैकमेल करने लगे कि इसके बाहर आते ही आपकी 'सर्वस्‍व त्‍याग' वाली छवि खंडित हो जाएगी। अन्‍ना चुप हो गए, हालांकि दिल्‍ली विधानसभा चुनाव के वक्‍त उन्‍होंने फिर से इस रकम की मांग के लिए पत्र लिखा, लेकिन उस निजी पत्र को भी अरविंद ने मीडिया में जारी कर 'मीडिया ट्रिक्‍स' के जरिए अन्‍ना को चुप करा दिया। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, ‘आम आदमी पार्टी के गठन के बाद वही मीडिया अरविंद का फेवर करते हुए अन्‍ना पर हमलावर हो उठी।
विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और 'कैश फॉर वोट' घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं।  
आगे बढ़ते हैं...! अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी आम आदमी पार्टी खड़ा करने में सफल  रहे।  जनलोकपाल आंदोलन के पीछे फोर्ड फाउंडेशन के फंड  को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से कबीर व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया।  लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने बिजनस स्टैंडर अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने कबीर को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया।
सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था आवाज की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था। डॉ सब्रहमनियन स्‍वामी के मुताबिक इसी आवाज ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी आवाज संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस फंडिंग का खेल खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी उसी की देन हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी आम आदमी पार्टी में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010’ के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
अमेरिकी कल्चरल कोल्ड वार के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल !


फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी सीआईए की नीति को कल्चरल कोल्ड वार का नाम दिया गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति  व उसके लोकतंत्र को अपने वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने सेक्यूलरिज्म के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से भारत माता की तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का समझा जाता है, इसलिए वामपंथी बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता साबित करने में सफल रही।  
एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों?
प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को क्रांतिकारी सेक्यूलर दल के रूप में प्रचारित करने लगी।  प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी कश्मीर में हावी हो जाएंगे।
अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र स्थापित कर सके।  यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर नजर रखने में उसे आसानी होगी।  आम आदमी पार्टी के नेता  प्रशांत भूषण अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही करते रहे हैं और अब जब उनकी अपनी राजनैतिक पार्टी हो गई है तो वह इसे राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से लिटमस टेस्ट था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी ईमानदारी और छद्म धर्मनिरपेक्षता का कॉकटेल तैयार कर रही थी।
8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला गया, वह काफी हद तक इस कॉकटेल का ही परीक्षण  है। सवाल उठने लगा है कि यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?
प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके पंजीकृत आम आदमी’  ने जब देखा कि भारत माता के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे वक्तव्य पर मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल शुरू हो चुका है तो उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, ‘इस देश में हिंदू आतंकवाद चरम पर है’, तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा कि बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष थे। इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की।
याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ। उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर सके।  वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय फतवा भी जारी कर चुके हैं। 


नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया आखिरी पत्ता हैं अरविंद! 
दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में।  मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर आम आदमी पार्टी का निर्माण कराया गया है।
दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने यह दर्शा दिया है कि उनकी मंशा कांग्रेस के भ्रष्‍टचार के खिलाफ चुनाव लड़ने की नहीं, बल्कि कांग्रेस के सहयोग से हर हाल में भाजपा को सत्‍ता में आने से रोकने की है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।’’
कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। फोर्ड फाउंडेशन ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का ब्रेन चाइल्ड बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई। अब तो अन्‍ना के पूर्व ब्‍लॉगर राजू पारुलकर ने सरकार गठन के लिए अरविंद केजरीवाल और कांग्रेसी नेता शकील अहमद, अजय माकन व अरविंदर सिंह लवली के बीच दिल्‍ली के लोधी रोड स्थित अमन होटल में गुप्‍त बैठकों का भी खुलासा कर दिया है। इस बैठक में हीरा होंडा कंपनी के मालिक पवन मुंजाल भी मौजूद थे, जिन पर अरविंद-केजरीवाल डील को संपन्‍न कराने का आरोप है। इस बैठक में भाजपा को देश भर में रोकने व कांग्रेस को सत्‍ता में लाने के लिए आम आदमी पार्टी द्वारा करीब 300 सीटों पर उम्‍मीदवार खड़े करने के लिए हामी भरने की बात भी सामने आई है।
आम आदमी पार्टी   उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने 13 दिसंबर 2013 को मेल टुडे अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था। लेकिन सूत्रों के अनुसार, प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने बाद में न केवल अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया, बल्कि एक 'नए शांतिभूषण' को भी पैदा कर दिया गया। जहां अरविंद रहते हैं, उसी गाजियाबाद से एक व्‍यक्ति खुद को शांतिभूषण बताते हुए सामने आ गया और कहा कि यह मेरा लेख है। मेल टुडे से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर टुडे ग्रुप ने भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया। वैसे भी नए शांतिभूषण को पैदा कर मेल टुडे की प्रतिष्‍ठा और अरविंद की विश्‍वसनीयता बनाए रखने का खेल तो खेल ही लिया गया था। देश का हर आम नागरिक व पत्रकार यह जानता है कि बिना जांच किए कोई अखबार किसी लेख को नहीं छापता है, लेकिन जब उसी अखबार वाली कंपनी का चैनल 'आजतक' अरविंद के सोने-खाने-कपड़े पहनने तक की खबरें लगातार दिखा रहा हो तो फिर उस कंपनी के लिए एक लेख से पल्‍ला झाड़ना कौन सी बड़ी मुश्किल है?
शांति भूषण ने लिखा था, ‘‘अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला।  वहीं खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस से उकता गए हैं।  केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।’’
‘‘आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरकिनार करते हुए आम आदमी पार्टी के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया।  केजरीवाल ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्‍टाचार की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के भ्रष्‍ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार व सेक्यूलर दिखा सकें।  एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके भ्रष्‍टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?’’
‘‘बीजेपी आम आदमी पार्टी को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और भ्रष्‍टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी मढ़ दिया।  ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।’’
‘‘दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्‍टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस का मतलब सिर्फ भ्रष्‍टाचार का खात्मा करना ही नहीं होता। कांग्रेस की कारगुजारियों की वजह से भ्रष्‍टाचार के अलावा भी कई सारी समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती कीमतें, पड़ोसी देशों से रिश्ते और अंदरूनी लॉ एंड ऑर्डर समेत कई चुनौतियां हैं। इन सभी चुनौतियों को बिना वक्त गंवाए निबटाना होगा।’’

‘‘मनमोहन सरकार की नाकामी देश के लिए मुश्किल बन गई है। नरेंद्र मोदी इसलिए लोगों की आवाज बन रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इन समस्याओं से जूझने और देश का सम्मान वापस लाने का विश्वास लोगों में जगाया है। मगर केजरीवाल गवर्नेंस के व्यापक अर्थ से अनभिज्ञ हैं। 

केजरीवाल की प्राथमिकता देश की राजनीति को अस्थिर करना और नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है।  ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर मोदी एक बार सत्ता में आ गए तो केजरीवाल की दुकान हमेशा के लिए बंद हो जाएगी।




 SOURCE


पुस्तक: साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी



लेखक: संदीप देव


प्रकाशक: कपोत पब्लिकेशन हाउस


कीमत: 250 रुपए


पृष्‍ठ- 254







गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी नि:संदेह आजादी के बाद से देश के सबसे विवादास्पद नेता रहे हैं। साल 2002 में हुए गुजरात दंगे से लेकर आज वर्ष 2014 तक, शायद ही ऐसा कोई साल रहा है जब नरेंद्र मोदी सुर्खियों में नहीं रहे हों। देश-विदेश की मीडिया नरेंद्र मोदी को लेकर पिछले 12 साल से लगातार चर्चा कर रही हैं। गुजरात दंगा हो, फर्जी पुलिस मुठभेड़ हो, गुजरात का विकास मॉडल हो या नया नवेला जासूसी प्रकरण, नरेंद्र मोदी हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। स्थानीय अदालत से लेकर देश के सर्वोच्च अदालत तक से उन्हें 'क्लीन चिट' मिल चुकी है, लेकिन उनके नाम के साथ जुड़ा विवाद थमने का नाम ही नहीं लेता। भाजपा के नेता व देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी जीवनी 'मेरा जीवन मेरा देश' में लिखा है, '' मैँने पिछले 60 साल के दौरान भारतीय राजनीति में ऐसा कोई नेता नहीं देखा है, जिसे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतर इतने घृणित व अनैतिक तरीके से बदनाम किया गया हो, जितना कि नरेंद्र भाई मोदी को वर्ष 2002 से किया गया है।''




पुस्तक 'साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी' कहने को तो नरेंद्र मोदी पर हैं, लेकिन इसके केंद्र में 'कानून' है। गोधरा और गुजरात दंगे पर अब तक आए अदालती निर्णयों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल की रिपोर्ट इस पुस्तक के केंद्र में हैं। लेकिन इस पुस्तक का यह केंद्र जिन परिधियों से घिरा है, उनमें विभिन्‍न आयोगों व समितियों की रिपोर्टों, अदालतों के संज्ञान में लाए गए पत्र व शपथ पत्रों, मानवाधिकार व गृहमंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्टों और कई ऐसे दस्तावेज शामिल हैं, जिनका कानूनी व तथ्‍यगत आधार है। इस पुस्तक में 27 फरवरी 2002 से लेकर दिसंबर 2013 तक की हर उन घटनाओं और उससे जुड़ी सच्‍चाई को शामिल किया गया है, जिसकी वजह से नरेंद्र मोदी सुर्खियों में रहे हैं।








इस किताब के आखिरी दो अध्यायों में गुजरात के विकास मॉडल को भी समझने की कोशिश की गई है और उन नरेंद्र मोदी को भी, जो रेलगाड़ियों में चाय बेचते हुए बड़े हुए और एक प्रदेश के मुख्यमंत्री से होते हुए आज देश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। 


मेरे संज्ञान में नरेंद्र मोदी पर अब तक लिखी गई पुस्तक या तो उनकी जीवनी है या फिर गुजरात के विकास मॉडल को लेकर लिखी गई है। लेकिन कानून व रिपोर्टों को केंद्र बनाकर गुजरात और नरेंद्र मोदी पर लिखी गई यह शायद पहली पुस्तक है। 11 अध्याय और करीब 200 पृष्ठों वाली इस पुस्तक में जिन विषयों को समेटा गया है, वो निम्न हैं:









1.जेहादियों और कांग्रेसियों ने मिलकर जिंदा जलाया था 59 रामभक्‍तों को: 





क. गोधरा पर स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला


ख. गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस को जलाने में शामिल वो कांग्रेसी चेहरे, जिन्हें अदालत ने फांसी से लेकर उम्रकैद तक की सजा तो दी, लेकिन मीडिया की मेहरबानी से देश का एक बड़ा हिस्सा अब भी उनके नामों से अनजान है 


ग. यूपीए सरकार व एनजीओ गिरोहों द्वारा साबरमती एक्सप्रेस में जले लोगों की मौत पर पर्दा डालने की कोशिशों पर अदालत का ब्रेक 



2.गोधरा के बाद पूरे गुजरात में दिखा कांग्रेसियों का दंगाई चेहरा: 





क.  गुजरात दंगे में शामिल कांग्रेसी नेताओं का चेहरा 


ख. एहसान जाफरी की हत्या में भी कांग्रेसी थे शामिल, लेकिन मीडिया की मेहरबानी से देश अनजान



3.आतंकवादियों के लिए कांग्रेसी 'बोल वचन', लेकिन आम मुसलमानों को मरने के लिए छोड़ दिया: 





क. गुजरात सरकार द्वारा पुलिस फोर्स की मांग के लिए पड़ोसी राज्यों को भेजे गए पत्र की कॉपी व उस पर आधारित रिपोर्ट 


 ख. दंगा समाप्त होने के करीब 9 दिन बाद मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा पुलिस फोर्स देने से इंकार वाले पत्र की कॉपी व उस पर आधारित रिपोर्ट 



4.शेर के शिकार की फिराक में लोमड़ी की चौकड़ी:


क. मोदी बनाम कांग्रेस व अफसरशाही: कांग्रेस एवं निलंबित अधिकारी संजीव भट्ट, आरबी श्रीकुमार, प्रदीप शर्मा, कुलदीप शर्मा, जीएल सिंघल के बीच गठजोड़ का खुलासा। साथ में एसआईटी रिपोर्ट की कॉपी भी संलग्न। नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए अपनाए गए 'डर्टी ट्रिक्‍स', जासूसी प्रकरण की पूरी सच्‍चाई।

ख. मोदी बनाम एनजीओ गिरोह: तीस्ता सीतलवाड़ व एनजीओ गिरोह के साजिशों का पर्दाफाश करती एसआईटी की रिपोर्ट, जिस पर 26 दिसंबर 2013 को अदालत ने भी मुहर लगा दिया। तीस्‍ता सीतलवाड़ के बैंक एकाउंट और विदेश कनेक्‍शन की पूरी डिटेल आपको इस पुस्‍तक में मिलेगी।

ग.मोदी बनाम कानूनविद: गुजरात मामले को सुनने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस आफताब आलम, जस्टिस तरुण चटर्जी सहित जस्टिस मार्कंडेय काटजू, कंसर्न्ड सिटिजन ट्रिब्यूनल गुजरात-2002, लोकायुक्त विवाद और जस्टिस आर.ए.मेहता की सच्चाई दर्शाती रिपोर्ट। गुजरात मामले की सुनवाई करने वाले सुप्रीम कोर्ट के उन न्यायाधीशों पर रिपोर्ट जिन्हें सेवानिवृत्त होते ही केंद्र सरकार ने तत्काल उपकृत किया।

घ.मोदी बनाम मीडिया व बुद्धिजीवी: पहले जस्टिस तेवतिया कमेटी ने और बाद में एसआईटी ने मीडिया को गुजरात सरकार के खिलाफ पूर्वग्रह से ग्रस्त और साजिशकर्ता बताया। मोदी के खिलाफ सुपारी पत्रकारिता, जिसे सबूत मानने से हर बार अदालत ने किया इंकार, न्यायमित्र पर दबाव बनाने के लिए खेला गया मीडिया ट्रिक्स, मीडिया की मौजूदगी और उसकी सलाह पर तीस्ता ने सबूत मिटाने के लिए कब्र खोदकर निकाले थे शव, मोदी के खिलाफ एकतरफा रिपोर्टिंग के लिए प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया की गाइडलाइंस की अनदेखी, मोदी को घेरने वाले हर बुद्धिजीवी व पत्रकार को केंद्र सरकार ने किया उपकृत।

5.वीभत्स हत्या और बलात्कार की गढ़ी गई काल्पनिक पटकथाएं: गुलबर्ग सोसायटी, बेस्ट बेकरी, नरोदा पाटिया मामले की सच्चाई दर्शाती एसआईटी रिपोर्ट। अरुंधति राय, कौसरबानो, इम्तियाज पठान जैसों की झूठ और वास्तविक सच्चाई ।

6. इतिहास गवाह है इतनी जल्दी दंगों पर नियंत्रण कभी नहीं हुआ: 27 फरवरी से लेकर 4 मार्च 2002 तक के एक-एक कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट। मोदी ने दंगे में फंसे हुए करीब 24,000 मुसलमानों को न केवल बचाया, बल्कि 6,000 हाजियों को भी सुरक्षित अपने घरों तक पहुंचाया।

7.देश में फर्जी मुठभेड़ की राजधानी है उप्र, लेकिन बदनाम है गुजरात: गृहमंत्रालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट दर्शाती है कि देश में सबसे अधिक फर्जी मुठभेड़ और उसमें भी मुस्लिम युवकों के मारे जाने की शिकायत उप्र और महाराष्ट्र से है। इसके बावजूद यहां के एक भी मामले की मीडिया में चर्चा नहीं, लेकिन उसी मीडिया की मेहरबानी से गुजरात के इशरत जहां और सोहराबुद्दीन को देश का बच्चा-बच्चा जानता है। इशरत जहां व सोहराबुद्दीन मामले की पूरी सच्चाई।
8.हिंदू-मुसलमान-सिख, सबका नरसंहार हुआ धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस के राज में: भारत और गुजरात में अब तक हुए दंगे की विस्तृत जानकारी।
9.आओ खेलें सेक्यूलर-सेक्यूलर: गुजरात-2002 के बाद देश में अभी तक हो चुके हैं 8473 दंगे। केंद्र सरकार, राज्य सरकार  व सभी राजनैतिक दलों की सेक्यूलर नीति और योजनाओं की जानकारी, जो हिंदू-मुस्लिम में भेद करते हुए मुस्लिमपरस्‍त रही हैं। अदालतों ने समय-समय पर कई सरकारों को इसके लिए फटकार भी लगाई है। नए उभरे अरविंद केजरीवाल और आम आदर्मी पार्टी की सच्‍चाई को बेनकाब करती तथ्‍यगत रिपोर्ट।
10.न्याय, विकास और सशक्तिकरण का त्रिआयामी नमो मंत्र: दंगे के बाद पीड़ितों को मिले पुलिस और अदालती न्याय, उन्हें सशक्त करने के लिए उठाए गए कदम और गुजरात के विकास की तस्वीर।


11. नमोदय: नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत जीवन यात्रा।



लेखक परिचय:   


संदीप देव पिछले 12 साल से मुख्‍यधारा की पत्रकारिता में सक्रिय रहे हैं।  दिल्‍ली में दैनिक जागरण एवं नईदुनिया जैसे राष्‍ट्रीय अखबार में एक संवाददाता के रूप में काम किया है। इनकी छवि एक खोजी पत्रकार की रही है। अब तक करीब-करीब सभी 'बीटों' (रिपोर्टिंग के लिए मिले कार्य क्षेत्र) पर निर्भीकता से कलम चलाई है, जिसकी वजह से कई बार मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा है, लेकिन सच को खोजने की इनकी जिद जारी है।

संदीप देव ने चार साल पहले हिंदी भाषा में महिलाओं को समर्पित पहला वेब पोर्टल आधीआबादी. कॉम स्‍थापित किया। सेहत से लेकर अध्‍यात्‍म तक 72 खंडों में सिमटे इस वेबपोर्टल में हर तरह की वैज्ञानिक जानकारी मुहैया कराई जाती है। साथ ही इस वेबपोर्टल से पुस्‍तकों की बिक्री भी ऑन लाइन की जाती है। संदीप देव ने वर्तमान में अपना पूरा समय आधीआबादी.कॉम व लेखन को दे दिया है।
संदीप देव ने काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय, वाराणसी से समाजशास्‍त्र में स्‍नातक की पढ़ाई की है। इसके बाद उन्‍होंने दिल्‍ली स्थित इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ ह्यूमन राइट्स से मानवाधिकार में दो वर्षीय पोस्‍ट ग्रेजुएट डिप्‍लोमा किया है। 



                                              

No comments:

Post a Comment