Monday 3 February 2014

केजरीवाल के 'दिल्‍ली जनलोकपाल' असंवैधानिक


संविधान विशेषज्ञ ने बताया केजरीवाल के 'दिल्‍ली जनलोकपाल' को असंवैधानिक

मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को ताबड़तोड़ तीन अहम फैसले लिए। सबसे पहले उनकी सरकार ने पूर्व मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ जांच कराने के लिए राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखा। इसके बाद केजरीवाल की कैबिनेट ने 'दिल्‍ली जनलोकपाल 2014' बिल को मंजूरी दी और दिल्‍ली इलेक्ट्रिसिटी रेग्‍युलेटरी कमीशन (डीईआरसी) को बिजली कंपनियों पर नकेल कसने के लिए चिट्ठी लिख दी। केजरीवाल और उनकी पार्टी भले ही 'दिल्‍ली जनलोकपाल' को लेकर बेहद उत्‍साहित है, लेकिन संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि यह यह बिल असंवैधानिक है।
क्‍यों असंवैधानिक है 'दिल्‍ली जनलोकपाल' 
एक निजी चैनल से बात करते हुए कश्यप ने कहा- दिल्ली के मामले में केंद्र का कानून ही सर्वोपरि माना जाता है। अगर एक कानून केंद्र और विधानसभा दोनों से पास होता है, तो केंद्र का कानून ही मान्य होगा। चूंकि केंद्र पहले ही जनलोकपाल बिल पास कर चुका है, इसलिए दिल्ली के अपने लोकपाल बिल का कोई मतलब नहीं है, विधानसभा लोकायुक्त कानून में ही संशोधन कर सकती है। उन्‍होंने कहा- संविधान के तहत दिल्ली का प्रशासन राष्ट्रपति के हाथ में होता है और उन्हीं के आधीन लेफ्टिनेंट गवर्नर दिल्ली के प्रशासक होते हैं। इसके हिसाब से बिल को पहले उप राज्यपाल के पास जाना चाहिए। उप राज्यपाल आमतौर पर बिल को राष्ट्रपति यानी गृह मंत्रालय के पास भेजते हैं, जहां से पास होने के बाद इसे राज्य में पास किया जाता है। 
तीनों फैसलों से पहले की हलचल 
ये तीनों अहम फैसले आम आदमी पार्टी से निकाले गए विधायक विनोद कुमार बिन्‍नी, निर्दलीय विधायक शोएब इकबाल और रामबीर शौकीन की ओर से रविवार को दी गई समर्थन वापसी की धमकी के अगले दिन लिए गए। हालांकि, इकबाल सोमवार सुबह केजरीवाल से मिले थे और उन्‍होंने समर्थन जारी रखने की बात कही थी। इसके अलावा सोमवार को ही 'आप' के कस्तूरबा नगर से विधायक मदनलाल ने सनसनीखेज खुलासा किया। मदनलाल ने कहा कि उन्हें पैसों का लालच देकर पार्टी तोड़ने का ऑफर दिया गया था। उन्होंने कहा कि सात दिसंबर की रात को उन्हें एक आईएसडी कॉल आई थी। खुद को नरेंद्र मोदी का करीबी बताने वाले एक शख्स ने 20 करोड़ का लालच देकर पार्टी तोड़ने की बात कही थी।
फैसलों के पीछे उठ रहे सवाल 
* सवाल उठ रहे हैं कि क्‍या केजरीवाल को यह आभास हो गया कि उनकी सरकार ज्‍यादा दिन नहीं चल पाएगी या फिर लगातार उठ रहे विवादों को शांत करने के लिए उन्‍होंने एक ही दिन में ताबड़तोड़ तीन फैसले ले डाले 
आगे इन फैसलों पर हैं 'आप' की नजर 
सोमवार को हुई दिल्‍ली सरकार की कैबिनेट बैठक में सिख दंगों की जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआइटी) के गठन और स्‍वराज के कानून पर फैसला नहीं हो सका है। मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में उपराज्‍यपाल नजीब जंग से मुलाकात करके 1984 सिख विरोधी दंगा मामले की जांच एसआईटी से कराने की सिफारिश की थी। इस मामले में ‘आप’ की सरकार को सिख संगठनों और भाजपा का समर्थन मिला था। माना जा रहा है कि 'आप' के एजेंड में ये तीनों मुद्दे प्राथमिकता पर हैं और जल्‍द ही इनके बारे में भी फैसला हो सकता है। 
केजरीवाल सरकार ने DERC को लिखी चिट्ठी- ठीक से काम न करें तो रद्द करो बिजली कंपनियों के लाइसेंस


अरविंद केजरीवाल सरकार ने सोमवार को दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) को पत्र लिखकर बिजली कंपनियों के खिलाफ सख्‍त रुख अपनाने को कहा है। सूत्रों के अनुसार, केजरीवाल सरकार ने डीईआरसी को स्‍पष्‍ट लिखा है कि बिजली कंपनियां अगर बाज नहीं आती हैं तो उनके लाइसें रद्द कर दिए जाएं। गौरतलब है कि शुक्रवार शाम को आम आदमी पार्टी की सरकार के सस्‍ती बिजली देने के फैसले को बिजली कंपनियों ने 440 वोल्‍ट का झटका दे दिया था। दिल्‍ली में बिजली आपूर्ति करने वाली बीएसईएस-राजधानी, बीएसईएस-यमुना और टाटा पावर ने क्रमश: 6, 8 और 7 फीसदी का सरचार्ज लगाने का एलान किया था। यह सरचार्ज शनिवार से लागू हो गया। इससे पहले 'बीएसईएस यमुना' ने पैसे की कमी का हवाला देते हुए बीते शनिवार से 10 घंटे की कटौती की बात कही थी, जिस पर अरविंद केजरीवाल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उन्‍होंने बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों पर सरकार को ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था। मुख्‍यमंत्री ने कहा कि अगर बिजली कंपनियों ने 8 से 10 घंटे की कटौती की तो उनके लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे।
क्‍या है पूरा मामला 
* दिल्‍ली में बिजली वितरण करने वाली कंपनियां केजरीवाल सरकार के उस फैसले का विरोध कर रही हैं, जिसमें उन्‍होंने बिजली की दरें 50 फीसदी तक कम कर दी थीं 
* दिल्‍ली सरकार ने बिजली कंपनियों का ऑडिट कराने का भी आदेश दे रखा है। इस फैसले से भी कंपनियां नाराज हैं। 
* कंपनियों का कहना है कि बिजली की दरें बिजली खरीद दर के आधार पर तय की जानी चाहिए 
अब क्‍या होगा 
*बिजली कंपनियों ने सरचार्ज लगा कर साफ कर दिया है कि वह सस्‍ती बिजली देने को तैयार नहीं। अब या तो सरचार्ज के हिसाब से सप्‍लाई होगी या फिर शनिवार से 10 घंटे बिजली कटौती
* केजरीवाल के कंपनियों के इस रवैये को देखते हुए उनके लाइसेंस रद्द कर सकते हैं 
* मौजूदा वितरण कंपनियों का लाइसेंस रद्द होने के बाद केजरीवाल सरकार को नई बिजली वितरण कंपनियों को लाना होगा, लेकिन यह काम आसान नहीं है  
क्‍या हैं केजरीवाल की मुश्किल 
* लोकसभा चुनाव करीब हैं और अगर ऐसे में बिजली आपूर्ति बाधित होती है या फिर बिजली महंगी होती है तो केजरीवाल को जनता के गुस्‍से का सामना करना पड़ सकता है 
* दिल्‍ली में बिजली की जो दरें केजरीवाल सरकार ने रखी हैं, उन्‍हें देखते हुए नई कंपनियां खोजना भी कठिन होगा


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