Tuesday 18 February 2014

क्या हनुमान आदि वानर - बन्दर थे?



वाल्मीकि रामायण में मर्यादा पुरुषोतम
श्री राम चन्द्र जी महाराज के पश्चात परम
बलशाली वीर शिरोमणि हनुमान जी का नाम
स्मरण किया जाता हैं। हनुमान जी का जब हम
चित्र देखते हैं तो उसमें उन्हें एक बन्दर के रूप में
चित्रित किया गया हैं जिनके पूंछ भी हैं। हमारे
मन में प्रश्न भी उठते हैं की
क्या वाकई हनुमान जी बन्दर थे?
क्या वाकई में उनकी पूंछ थी ?

इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं
क्यूंकि अज्ञानी लोग वीर हनुमान का नाम
लेकर परिहास करने का असफल प्रयास करते
रहते हैं।

आईये इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण
से ही प्राप्त करते हैं सर्वप्रथम वानरशब्द
पर विचार करते हैं। सामान्य रूप से हम वानर
शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते हैं की वानर
का अर्थ होता हैं बन्दर परन्तु अगर इस शब्द
का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ
होता हैं वन में उत्पन्न होने वाले अन्न
को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात
गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण
करने वाले को गिरिजन कहते हैं उसी प्रकार वन
में रहने वाले को वानर कहते हैं। वानर शब्द से
किसी योनि विशेष, जाति ,
प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।


सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते हैं
उसमें उनकी पूंछ दिखाई देती हैं, परन्तु
उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती?
नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग
में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट
होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक
चित्रकार की कल्पना मात्र हैं।


किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब
श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार
ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब
दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र
जी लक्ष्मण से बोले
न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम्
|| ४-३-२८

ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद
का जिसको बोध नहीं हैं तथा जिसने सामवेद
का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस
प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय
ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार
अभ्यास किया हैं, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में
इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण
नहीं किया हैं। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय
पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय
को हर्षित कर देती हैं

सुंदर कांड (30/18,20) में जब हनुमान अशोक
वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई
सीता जी को अपना परिचय देने से पहले हनुमान
जी सोचते हैं

यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के
समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग
करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से
संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप
को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले
ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत
हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर
भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर
देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान
परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।

इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान
जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक
भाषायों के ज्ञाता भी थे।

हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे
की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन
वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष
के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ हैं
हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से
सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और
राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।
बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना,
सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ
या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व
तत्वज्ञान।

चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद
राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान,
दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता,
दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता,
शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत
वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।

भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से
हो सकता हैं?

अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय
किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने
कहा था की
सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के
निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के
चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण हैं। जिस
कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर
करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम
अन्यथा नहीं होता।

किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम
संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी मेरे
ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार राजकीय नियन के
अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये।
किष्किन्धा कांड (26/10) में सुग्रीव
का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ
विद्वानों ने किया।

जहाँ तक जटायु का प्रश्न हैं वह गिद्ध नामक
पक्षी नहीं था। जिस समय रावण
सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था तब
जटायु को देख कर सीता ने कहाँ हे आर्य
जटायु ! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे
अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा हैं 
सन्दर्भ-अरण्यक 49/38

जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् |
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा ||
४९-३८

कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले
द्विजोत्तम || ६८-६

यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया हैं।
यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में
नहीं कहे जाते। रावण को अपना परिचय देते हुए
जटायु ने कहा -मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ
और मेरा नाम जटायु हैं 
सन्दर्भ -अरण्यक 50/4

(जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र
राजो महाबलः | 50/4)

यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य
का राजा नहीं हो सकते। इन प्रमाणों से यह
सिद्ध होता हैं की जटायु पक्षी नहीं था अपितु
एक मनुष्य था जो अपनी वृद्धावस्था में जंगल में
वास कर रहा था।

जहाँ तक जाम्बवान (जामवंत) के रीछ होने
का प्रश्न हैं। जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद
के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे तब
किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने
का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और
हनुमान जाम्बवान के पास गये तब जाम्बवान ने
हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत
और कैलाश नामक पर्वत से संजीवनी नामक
औषधि लाने को कहा था। 

सन्दर्भ युद्ध कांड सर्ग 74/31-34

आपत काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से
संकट का हल पूछा जाता हैं और युद्ध जैसे काल में
ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और
विचारवान व्यक्ति से पूछा जाता हैं। पशु-
पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय
पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं दूसरे
बुद्धि से परे की बात हैं।

इन सब वर्णन और विवरणों को बुद्धि पूर्वक
पढने के पश्चात कौन मान सकता हैं की हनुमान,
बालि , सुग्रीव आदि विद्वान एवं बुद्धिमान
मनुष्य न होकर बन्दर आदि थे।
यह केवल मात्र एक कल्पना हैं और अपने श्रेष्ठ
महापुरुषों के विषय में असत्य कथन हैं।


अन्य प्रमाण ==

१- हनुमान जी की माता जी का नाम 'अंजनी'
था. और पिता जी का नाम 'पवन' था. ये
दोनों मनुष्य थे या बन्दर ?
यदि ये दोनों मनुष्य थे. तो क्या मनुष्यों के
मनुष्य पैदा होते हैं या बन्दर ?
यदि बन्दर पैदा नहीं होते, तो विचार करें,
कि जब हनुमान जी के माता पिता मनुष्य थे,
तो उनका बेटा श्री हनुमान जी भी तो मनुष्य
सिद्ध हुआ.

२- यदि कोई छोटा बच्चा कहीं पर भीड़ में
खो जाये, तो एक बन्दर से कहो, कि वह उस बच्चे
का फोटो देख कर भीड़ में से उस बच्चे को पहचान
कर ले आये. अब सोचिये क्या वह बन्दर भीड़ में से
बच्चे को पहचान कर ले आयेगा. यदि नहीं.
तो क्या हनुमान जी सीता जी को लंका से ढूंढ
कर उनकी खबर ले आये या नहीं. यदि उनकी खबर
ढूंढ लाये, तो अब बताइये, बन्दर तो यह काम
नहीं कर सकता.

३- आपने रामायण सीरिअल में बाली, सुग्रीव
और उनकी पत्नियाँ तो देखी ही होंगी. उस
सीरिअल में बाली और सुग्रीव तो बन्दर
दिखाए गए.परन्तु
उनकी पत्नियाँ मनुष्यों वाली स्त्रियाँ दिखाई
गईं या बंदरियां दिखाईं.
यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य जाति की थी.
तो उनके पति भी मनुष्य होने चाहियें.
अर्थात बाली और सुग्रीव भी मनुष्य दिखने
चाहिए थे. परन्तु वे दोनों बन्दर दिखाए
गए.यदि वे बन्दर थे, तो सोचिये
क्या मनुष्यों की स्त्रियों की शादी बंदरों के
साथ होती है ? या आजकल भी कोई मनुष्य
स्त्रियाँ बंदरों के साथ शादी करने को तैयार
हैं ? यदि उनकी पत्नियाँ मनुष्य थीं, तो उनके
पति = बाली और सुग्रीव भी मनुष्य ही सिद्ध
हुए. और श्री हनुमान जी उनके महामंत्री थे. वे
भी उसी जाति के थे. तो श्री हनुमान
जी भी मनुष्य सिद्ध हुए.

४- वाल्मीकि रामायण में श्री हनुमान
जी की योग्यता लिखी है, कि वे ऋग्वेद, यजुर्वेद
और सामवेद के विद्वान थे. तथा संस्कृत व्याकरण
शास्त्र में बहुत कुशल थे. सोचिये, क्या बन्दर
ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद तथा संस्कृत
व्याकरण पढ़ सकता है ? यदि नहीं, तो बताइये,
श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?

५- हनुमान चालीसा के प्रारंभ में चौथे/पांचवें
वाक्य में लिखा है, कि

" काँधे मूंज जनेऊ साजे, हाथ बज्र और
धजा बिराजे "

अर्थात श्री हनुमान जी के कंधे पर मूंज की जनेऊ
अर्थात यज्ञोपवीत सुशोभित होता था. उनके
एक हाथ में वज्र (गदा) और दूसरे हाथ में ध्वज
रहता था.

अब सोचिये हनुमान चालीसा बहुत लोग पढ़ते हैं.
फिर भी इस बात पर ध्यान नहीं देते,
कि क्या बन्दर के कंधे पर मूंज की जनेऊ
हो सकती है. क्या बन्दर के एक हाथ में गदा और
दूसरे हाथ में ध्वज होता है. यदि नहीं,
तो श्री हनुमान जी बन्दर कैसे हुए ?


मेरा सभी महानुभावों से विनम्र अनुरोध है,
कृपया गुस्सा न करें और ठंडे दिल - दिमाग से
सोचें. कि वेदों के महान विद्वान, महाबलवान,
ब्रह्मचारी, तपस्वी श्री हनुमान
जी को बन्दर बना कर उनका अपमान न करें, और
पाप के भागी न बनें.

आदित्य ब्रह्मचारी, परम बलवान, चतुर और
बुद्धिमान, श्री रामचंद्र जी के परम मित्र और
सहायक , वेदों और व्याकरण के पंडित,
अंजनी पुत्र श्री हनुमान ..... बन्दर नहीं थे. वे
वेदों के बड़े विद्वान्, बलवान, ब्रह्मचारी और
तपस्वी थे.


हनुमान जी की पूछ
नहीं अपितु वह आकाश में उड़ने
का वायुयान था जिससे
हनुमान जी ने सागर को पार
किया था और हिमालय से
संजीवनी बूटी भी लाये थे।
रावण ने जब लंका में उनके
वायुयान को आग लगा कर
नष्ट करने का प्रयास
किया तो अपनी वीरता से
पूरी लंका पर बमवर्षा कर
लंका का दहन कर दिया।
और रही बात पूंछ
की तो विमान के पश्च भाग
को टेल (tail) कहा जाता ह


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